शक्तिशाली रानी हत्शेपसुत

शक्तिशाली रानी हत्शेपसुत

वस्तुतः विश्व इतिहास में मिस्र की रानी हत्शेपसुत, ईसा पूर्व काल की एकमात्र शासिका हैं जिसके बारे में जानने के लिए हमारे पास पर्याप्त स्त्रोत मौजूद हैं। पुरातात्विक साक्ष्य के द्वारा उनके बारे में बहुत कुछ जानकारियां मिलती है। हत्शेपसुत मिस्र की 18वें साम्राज्य की पांचवी फराओ थी, जिसने 1478 B.C. से अपनी मृत्यु तक यानी 1458 B.C. तक राज्य किया था।हत्शेपसुत थुटमोस प्रथम एवं उनकी प्रधान पत्नी अहमोस की पुत्री थी।

इनके पति का नाम थुटमोस तृतीय था और पुत्री का नाम नेफ्रेरूरे था।

थुटमोस प्रथम के दो पुत्र तथा दो पुत्रियां हुईं । प्रधान पत्नी से हुए चार संतानों में एकमात्र पुत्री हत्शेपसुत ही जीवित रही। उसके जीवन काल में ही उसकी रानी का देहांत हो गया। थुटमोस प्रथम ने अपनी प्रधान पत्नी की मृत्यु के बाद गद्दी का त्याग किया था। अतः सिंहासन पर अब कौन बैठेगा, यह प्रश्न जटिल था।थुटमोस प्रथम की प्रधान‌ पत्नी के अलावा दूसरी रानियों से भी‌ पुत्र थे — थुटमोस द्वितीय एवं थुटमोस तृतीय। दूसरी रानी से उत्पन्न दोनों पुत्रों ने भी गद्दी पर अपने दावे ठोकें। लेकिन थुटमोस प्रथम के दरबारियों ने उनकी प्रधान पत्नी की पुत्री को गद्दी का हकदार बनाने के लिए बाध्य किया। थुटमोस तृतीय गद्दी पर बैठा और अपनी सौतेली बहन हत्शेपसुत से विवाह कर लिया। इस तरह उसकी शादी सौतेले भाई थुटमोस तृतीय के साथ कर दी गई और उसे राज सिंहासन पर बिठाया गया। क्योंकि वह उम्र में छोटा था, अतः अपनी पत्नी को सह शासक (रीजेंट) बनाया और जब तक रानी जीवित रही, फराओ की शक्ति रानी के हाथों में ही केंद्रित रही। थुटमोस तृतीय तब तक नाममात्र का ही शासक था। रानी हत्शेपसुत एक महत्वकांक्षी एवं प्रभावशाली महिला थी। अपने जीवन काल में वही वास्तविक शासक थी ।सभी अधिकार उसके ही हाथों में थे।रानी हत्शेपसुत के अनेक प्रशंसक, समर्थक एवं कृपा पात्र थे,जो शासन कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे।थुटमोस तृतीय शासन कार्य में नगण्य था क्योंकि उसे गद्दी पत्नी हत्शेपसुत से विवाह के कारण ही प्राप्त हुई थी। रानी हत्शेपसुत विश्व इतिहास की प्रथम महान महिला थी जिसके बारे में हमें पूरी जानकारी प्राप्त होती है। कई साक्ष्य हैं जिससे पता चलता है कि वह पुरुषों की पोशाक पहनकर दरबार जाती थी और शासन कार्य करती थी। उसके द्वारा बनवाए गए इमारतों में उसे पुरूष के पोशाक में दिखाया गया है। वह हमेशा अपने समर्थकों से घिरी रहती थी। अतः सभी समर्थक एवं प्रशंसक महत्वपूर्ण पदों पर आसीन किए गए थे। रानी का सबसे प्रिय पात्र हापुसेनेव था जो उसका प्रधानमंत्री और प्रधान पुरोहित था। वह एक नए ढंग से संगठित पुरोहित पद पर विराजमान था तथा प्रशासकीय एवं धार्मिक दोनों क्षेत्रों का शक्तिशाली व्यक्ति था। चूंकि समस्त प्रशासनिक ढांचा रानी हत्शेपसुत एवं उसके प्रिय पात्रों के हाथ में था, इसलिए थुटमस तृतीय अपनी पत्नी के सम्मुख मात्र एक कठपुतली के समान था। रानी की शक्ति एवं मर्यादा की रक्षा में उसके कृपा पात्र पूर्ण रूप से प्रयत्नशील रहते थे। क्योंकि उनकी भी शक्ति रानी की प्रधानता पर ही निर्भर करती थी।

रानी हत्शेपसुत ने निर्माण कार्य में बहुत अभिरुचि दिखाई तथा कला को भी बहुत ही प्रोत्साहित किया। उसने बहुत से इमारत, महल एवं स्मारक बनवाए। उसने करनाक‌ के मंदिर को और भी संवारा तथा पश्चिमी थीब्स में उसने एक शानदार मंदिर बनवाया जिसे दर‌ एल बहरी कहा जाता है ।‌ इस मंदिर को राज्य के प्रमुख कारीगरों तथा वास्तुकारों ने बनाया था। यह मंदिर एमन‌ देवता तथा उसके पिता की स्मृति को समर्पित किया गया है। यह उसके शासन काल के शान शौकत का प्रतीक है। लाल सागर के किनारे स्थित पुण्ट प्रदेश का विजय अभियान के चिन्ह दीवारों पर चित्रित हैं।इस पुण्ट प्रदेश को मिश्र वासी अपने देवताओं के आदि निवास स्थान मानते हैं। अपने निर्माण शैली के कारण यह मंदिर अति विशिष्ट, अद्वितीय एवं विलक्षण था। इस मंदिर के निर्माण की योजना इसकी वास्तु कला तथा तक्षण कला की सुंदरता मिश्र कला के इतिहास में अपना अद्वितीय स्थान रखता है। इसकी स्थापत्य एवं मूर्तिकला उन्नत है। इसकी वजह से राज्य में सोना, हाथी के दांत तथा अन्य बहुमूल्य धातुएं काफी मात्रा में आए, जिससे राज्य की समृद्धि तथा रानी की प्रतिष्ठा में अत्याधिक वृद्धि हुई। इसी कारण रानी हाशेपसुट ने विजय यात्रा के लिए इस मंदिर के दीवारों पर उस स्मृति को अंकित करवाया।

प्रोफेसर नेबिल ने इस मंदिर को खोज निकाला तथा इसके संबंध में विस्तृत जानकारी दी। इस मंदिर का सही एवं विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया जा सकता है। रानी हत्शेपसुत का शासनकाल शांतिपूर्ण निर्माण कार्यों के लिए भी प्रसिद्ध है।जिस तरह से भारत में मुगल काल में शाहजहां के काल में वास्तुकला अपने चरमोत्कर्ष पर था,उसी तरह से प्राचीन काल में मिस्र में रानी हत्शेपसुत के कार्यकाल में वहां की वास्तुकला, मूर्तिकला अपने चरम शिखर पर थी।

उसके विकास कार्यों से साम्राज्य की आर्थिक दशा में काफी सुधार हुआ। आंतरिक आय के अलावा राज्य के अधीनस्थ राजाओं से भी बड़ी संख्या में कर वसूले जाते थे ।इस आय का सदुपयोग इस उत्साही रानी ने मंदिरों और महलों के निर्माण में और पुरानी इमारतों के जीर्णोद्धार करने में किया।

थुटमस तृतीय को रानी हत्शेपसुत के कार्यकाल में हीन भावना का दंश झेलना पड़ा था, जिसके कारण उसे अपनी पत्नी से घृणा सी हो गई थी। अतः जब हत्शेपसुत की मृत्यु हुई, वह पूर्णरूपेण राज सिंहासन का अधिकारी बन गया और मिस्र का फराओ बना। तब उसने कई मंदिरों एवं इमारतों से रानी हत्शेपसुत के प्रमाण या नाम को मिटवा दिया। यदि आज वह होते तो शायद हम विश्व की पहली और सबसे शक्तिशाली रानी के बारे में और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते थे।उसकी मृत्यु के बाद, थुटमोस III ने 33 वर्षों तक अकेले, मिस्र पर शासन किया। अपने शासनकाल के अंत में, हत्शेपसुत के शासन के सभी निशानों को हटाने का प्रयास किया था। उसकी मूर्तियों को तोड़ दिया गया, उसके स्मारकों को विरूपित कर दिया गया और उसका नाम आधिकारिक राजा सूची से हटा दिया गया। प्रारंभिक विद्वानों ने इसे प्रतिशोध कार्य के एक रूप के तौर पर व्याख्या किया, लेकिन ऐसा लगता है कि थुटमोस यह सुनिश्चित कर रहा था कि उत्तराधिकार का इतिहास, थुटमोस I से थुटमोस II और फिर थुटमोस III तक महिला शासक के नामोंनिशान के बिना चले ।

हत्शेपसुत के विषय में 1822 तक अस्पष्टता रही, जब चित्रलिपि लिपि के डिकोडिंग ने पुरातत्वविदों को दयार अल-बहरी शिलालेखों को पढ़ने की अनुमति दी,तब सभी कुछ सामने आना शुरू हुआ। प्रारंभ में महिला नाम और पुरुष छवि के बीच विसंगति ने भ्रम पैदा किया, लेकिन आज थुटमोस उत्तराधिकार अच्छी तरह से समझा जाता है।

हम कह सकते हैं कि कोई भी समाज हो या विश्व का कोई भी देश हो, महिलाओं को दोयम दर्जे का ही माना जाता है। अगर उसके हाथ में शक्ति आ गई तो पुरुष वर्ग को अंदर ही अंदर खलबली बनी रहती है। जैसे हर हाल में रानी के हाथ से अधिकार छीनने की पुरजोर कोशिश की गई। जिस तरह से सल्तनत काल में भारत में रजिया सुल्तान के साथ हुआ, कमोबेश इस तरह की घटना, महिलाओं के साथ विश्व के हर कोने में होती रही है। मिस्र के अति प्राचीन इतिहास में करीब ईसा पूर्व 1475 के इतिहास में हत्शेपसुत सबसे अधिक शक्तिशाली फाराओ थी, जिसने पहली बार अपने हाथों में राज्य की शक्ति अर्जित की थी।

डॉ अनीता निधि

लेखक परिचय

डॉ अनीता निधि ,जमशेदपुर(झारखंड ) से अवकाश प्राप्त शिक्षिका और सह संपादिका हैं झारखंड केसरी मासिक पत्रिका की।

अनुगूंज काव्य संग्रह और ओस की बूंदें कथा संग्रह तथा कई साझा काव्य संग्रह एव॔ कथा संग्रह में इनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं।

 

 

 

 

 

 

 

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