जेन गुडाल – एक विचारविज्ञानी

जेन गुडाल – एक विचारविज्ञानी

‘एक मशहूर शायर ने कहा है –

“पत्थरों के शहर में दूब ना तलाशो

इन्हीं पत्थरों पर चल के आ सको हो तो आओ”

सच है ! महिलाओं को सफल होने के लिए पत्थरों पर ही चलना होता है। विश्व की सभी महिलाओं के लिए यह पंक्तियां लागू होती हैं। विश्व के सभी महिलाओं के बढ़ते कदम के सामने संभावनाएं तो हमेशा रहीं लेकिन उन्हें बहुत सारी चुनौतियों से जूझना पड़ा। अभी हाल में ही भारतीय सेना ने 5 महिला अधिकारियों के अपने पहले बैच को आर्टिलरी रेजिमेंट में शामिल किया, जो सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इन अधिकारियों को उनके पुरुष समकक्षों के समान अवसर और चुनौतियां दी जाएंगी। लेकिन यह तय है,ये उपलब्धियां उन्हे चतुर्दिक संघर्ष के बाद ही प्रप्त हुई होगी इन महिलाओं की उपलब्धियां याद दिलाती हैं देश-विदेश की अनेको स्वनामधन्य सशक्त – सफल महिलाओं की, जिन्होंने न जाने कितने संघर्ष झेलकर अपना मुकाम हासिल किया और वे आज की पीढ़ी के लिए अनुकरणीय बनीं, उनका संबल एवं सहारा बनीं।

विश्व की महान महिलाएं… मैरी वॉलस्टोनक्राफ (अंग्रेजी लेखक और दार्शनिक) रमाबाई सरस्वती (भारत की संस्कृतविद, अध्येता , कवयित्री एवं महिलाओं के उत्थान के लिये सतत कार्यरत) सावित्री बाई फुले (भारत की प्रथम महिला शिक्षिका ,समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री) क्लारा जेटकिन (महिलाओं के अधिकारों के लिए कॉमरेड लेनिन से बातचीत की), मैरी कॉम, प्रसिद्ध मुक्केबाज (भारत), मेरी स्क्लाडोवका क्यूरी, विख्यात भौतिकविद और रसायन शास्त्री, जिन्होंने रेडियम की खोज की। विज्ञान की दो शाखाओं में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वह पहली वैज्ञानिक हैं। मैरी बर्रा (अमेरिका), मर्केल (जर्मनी) सहित अनेकानेक महिलाओं ने विश्व में, सभी क्षेत्रों में , अपने दम पर एक से बढ़कर एक कार्य किया और इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाया।

इतिहास में दर्ज इन्हीं महान महिला विभूतियों में से एक हैं जेन गुडाल, जो विज्ञान के क्षेत्र में अपने शोध के कारण प्रसिद्ध हैं और अपने सतत संघर्ष तथा शोधकार्य के द्वारा एक बहुत ऊंचा मुकाम हासिल किया।

विश्व इतिहास की महान हस्तियों में से एक हैं जेन गुडाल, जो दरअसल किसी भी परिचय की मोहताज नहीं हैं । उनका पूरा नाम वैलेरी जेन मॉरिस गुडाल है तथा वे एक अंग्रेज इथोलोजिस्ट , मनुष्य-शरीर-रचन शास्त्री, चरित्रशास्त्री तथा यू एन से भेजी गई शान्ति-दूत हैं। जेन गुडाल का जन्म 3 अप्रैल 1934 को हुआ था। उनकी आयु अभी 89 वर्ष के करीब है तथा वे लंदन, इंग्लैंड (यूके) में रहती हैं। उन्होंने चिंपैंजी का अध्ययन एवं संरक्षण किया तथा पशु कल्याण के लिए बहुत कार्य किये।

जेन गुडाल को बचपन से ही जीव-जन्तुओं के व्यवहार (एनिमल बिहेवियर) में बहुत दिलचस्पी थी। उन्होंने 18 वर्ष की उम्र में ही स्कूली शिक्षा छोड़ दी। जब तक उन्हें अफ्रीका जाने का मौका नहीं मिला, वे एक सेक्रेटरी की तरह और फिल्म-प्रोडक्शन में असिस्टेंट की तरह काम करती रहीं। अफ्रीका जाने पर जेन की मुलाकात जीवाश्मविज्ञानी (पैलेन्टोलॉजिस्ट) ‘लुइस लीकी’ से हुई। वे जीवाश्मों (फासिल्स) में अतिप्राचीन मृत जीवों का अध्ययन करते थे। साथ ही वे मानव विज्ञानी (एन्थ्रोपोलॉजिस्ट) भी थे, यानि मनुष्य के भूत और वर्त्तमान समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, दार्शनिक आदि विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करते थे। लुइस लीकी के साथ काम करते हुए, आखिरकार लीकी ने उन्हें ‘‘गौम्बे स्ट्रीम गेम रिर्सव’’ में जून 1960 में स्थापित करवा दिया, ताकि जेन उस क्षेत्र के चिंपैंजी के व्यवहार का अवलोकन और अध्ययन कर सकें। वह रिजर्व अब एक ‘‘नेशनल पार्क’’ (राष्ट्रीय उद्यान ) कहलाता है।

1964 में जेन गुडाल ने एक डच फोटोग्राफर बैरोन हृयूगो वान लॉविक से शादी की , । जेन के कार्य का फिल्म बनाने के लिय उनके पति वान लॉविक को 1962 में तंजानिया भेज दिया गया। यहाँ जेन दम्पति को 1967 में एक पुत्र हुआ और बाद में जेन का अपने पति से उनका तलाक हो गया।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने सन् 1965 में जेन गुडाल को ईथोलॉजी में पीएच.डी की उपाधि से विभूषित किया । बगैर ए.बी. डिग्री प्राप्त कुछ ही कैंडिडेटस थें जिन्हें यह उपाधि मिली थी। जेन भी उनमें से एक थीं।

अपने तलाक के बाद जेन गुडाल ने डेरेक ब्राइसेसन से शादी की जो उस समय तंजानिया के पार्लियामेंट के मेम्बर थे, साथ ही तंजानिया नेशनल पार्क सिस्टम के डायरेक्टर भी थे। 1980 में डेरेक की कैंसर से असमय मृत्यु हो गई, लेकिन उसके पहले उन्होंने गौम्बे स्ट्रीम नेशनल पार्क की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डा.जेन गुडाल बहुत कम समय के लिये गौम्बे से अनुपस्थित रहीं। ज्यादातर समय वे गौम्बे में ही रहीं तथा दूसरे डॉक्टोरल कैंडिडेटस को उनके फील्ड वर्क में मदद करती रहीं। सन् 1977 में उन्होंने कैलिफॉर्निया में ‘‘जेन गुडाल इंस्टीच्यूट फॉर वाइल्डलाइफ रिसर्च, ऐजुकेशन एंड कंसर्वेसन’’ नामक संस्था की स्थापना की। इसे कैलिफॉर्निया में साधारणतया जेन गुडाल इंस्टीच्यूूट भी कहा जाता था। बाद में इस सेंटर को वाशिंगटन डी.सी. ले जाया गया। जेन ने बाद में कुछ और शुरूआत की। जैसे उन्होंने ‘‘जेन गुडाल द रूटस एंड शूटस’’, जो कि युवाओं की सहायता के लिये एक कार्यक्रम था।

डा.जेन गुडाल करीब-करीब 15 वर्षों तक गौम्बे में रहीं और इस लम्बी अवधि में इन्होंने जो डेटा जमा किया वो आज भी वैज्ञानिकों के लिए बहुत महत्व की है।

1967 में गौम्बे स्ट्रीम रिसर्च सेंटर पार्क में चिंपैंजी के उपर किये जाने वाले शोध (रिसर्च) को समन्वय किया जाता था, जिसे प्रशिक्षित तंजानियन लोग संचालित करते थे। लगभग 60 वर्षों से GSRC, एक जन्तु के स्पीसीज पर, उनके प्राकृतिक रहन-सहन के बीच किया जाने वाला सबसे बडी फील्ड स्टडी है। इस दीर्घकालीन डेटा ने चिम्पैंजियों के डेमोग्राफिक पैटर्न, मेल पॉलिटिक्स, शिकार करने, उनकी संस्कृति, माँ और पशु के बीच के आपसी संबंधों के दुर्लभ और महत्वपूर्ण आँकड़े उपलब्ध कराये।

वहाँ चलने वाले शोध से आज भी चिम्पैंजियों पर होने वाले खतरों, जैसे- बीमारी, गैर कानूनी ढंग से इनके शिकार, इनके वास-स्थान में दिक्कतें इत्यादि पर नजर रखी जाती है।

शोध कार्य: अवलोकन

जेन गुडाल सर्वप्रथम 1960 में 26 वर्ष की उम्र में तंजानियाँ गईं। उस समय उनके पास कॉलेज का कुछ खास प्रशिक्षण नहीं था। उस समय यह माना जाता था कि मनुष्य चिम्पैंजी के समान थे,इसमें कोई शक नहीं था क्योंकि इन दोनों के जेनेटिक कोड करीब 98 प्रतिशत से ज्यादा एक समान थें। फिर भी चिम्पैंजी के व्यवहार या उनके सामुदायिक संरचना के विषय में लोगों को बहुत कम जानकरी थी ।जेन गुडाल का कहना है कि जिस समय उन्होंने यह शोध शुरू किया, उस समय जानवरों के दिमाग के विषय में बात करने का प्रचलन नहीं थी। ऐसा माना जाता था कि मष्तिष्क सिर्फ मनुष्यों के पास होता। न ही जानवरों के विषय में बात करना उचित माना जाता था। हालांकि जिन लोगों ने भी कभी पालतू कुत्ते या दूसरे जानवर (पेट) पाले थे, वे उनके व्यवहार के विषय में जानते थे । लेकिन इस कठिन विज्ञान पर काम करने से सब कतराते थे या यूँ कहें कि शर्म महसूस करते थे। लेकिन जेन गुडाल के शोध ने आखिरकार यह साबित कर दिया कि गैर मानव जातियों, खासकर चिम्पैंजी में भी बौद्धिकता होती है और वे भावुक भी होते हैं।

इसप्रकार डा. गुडाल द्वारा स्थापित रिसर्च स्टेशन (शोध संस्था) में हमारे सबसे नजदीकी संबधी के विषय में जानकारियाँ मिलने लगीं। वहाँ वे महीनों गुजारती थीं तथा चिम्पैंजी के झुंड पर, खासकर कासेकेला समुदाय के चिम्पैंजियों पर नजर रखती थीं, उनके दैनिक क्रिया-कलापों पर नजर रखती थीं। धीरे-धीरे एक झुंड द्वारा और बाद में चिम्पैंजियों के समाज द्वारा इन्हें स्वीकार कर लिया गया जिसके स्वरूप जेन गुडाल को उनकी दुर्लभ और अंतरंग झलकियाँ मिलती रहीं।

इस तरह आचारविज्ञान के क्षेत्र में अपने कठिन परिश्रम, दूरदार्शिता और गहन शोध के कारण विश्व की महानतम महिला विभूतियों में उनका नाम दर्ज हुआ।

उन्होंने यह भी पाया कि चिंपैंजी सर्वाहारी हैं, शाकाहारी नहीं। उन्होंने स्वयं उन्हें टरमाइटस खाते हुए देखा। मनुष्य की तरह वह भी छोटे-छोटे उपकरण बना सकते हैं।

डा. जेन गुडाल को चिंपैंजी पर अपने विशिष्ट कार्यों के लिए 2021 में टेम्पलटन पुरस्कार मिला।

2022 में उन्हें ‘‘स्टीफेन हाकिंग मेडल’’ साइंस कम्यूनिकेशन के लिये मिला। 2017 में इनके जीवन और कार्य पर ‘‘जेन ए डॉक्यूमेंट्री बनी “। डा.गुडाल ने अपने शोध के विभिन्न पहलुओं के विषय में कई किताबें लिखीं और आलेख भी लिखें। उनकी लिखी किताब ‘‘इन द शैडो ऑफ मैन’’ (1971) बहुत चर्चित हुई। उन्होंने ‘‘द चिंपैंजी ऑफ गौम्बे पैटर्न्स ऑफ बिहेवियर’’ (1986) में अपने अवलोकन के वर्षों को प्रस्तुत किया। 21वीं सदी की शुरूआत में पर्यावरण और संरक्षण के मुद्दों पर लिखना जारी रखा और व्याख्यान देती रहीं। 2022 में जेन गुडाल संयुक्त राष्ट्र की शांति दूत बनीं।

वैज्ञानिक कैरियर

1. मुक्त रहने वाले चिंपैंजी का व्यवहार (1966)।

2. वह जेन गुडाल संस्थान और रूट्स एंड शूट्स कार्यक्रम की संस्थापक हैं।

3. उन्होंने संरक्षण और पशु कल्याण के मुद्दों पर बड़े स्तर पर कार्य किया है।

4. 2022 तक जेन गुडाल ‘‘अमानवीय अधिकार परियोजना’’ के बोर्ड में रही है।

5. 26 जनवरी 2010 को ‘‘वुमन आवर’’ कार्यक्रम में उन्होंने बी.बी.सी. पर वक्तत्व दिया।

6. अप्रैल 2022 में उन्हें ‘‘संयुक्त राष्ट्र शांति दूत’’ नामित किया गया था।

7. डा. जेन गुडाल ‘‘वर्ल्ड फ्यूचर काउंसिल की मानद सदस्य भी हैं’’

पुरस्कार

1. क्योरो पुरस्कार (1990), जापान

2. हबर्ड मेडल (1995)

3. टायलर पुरस्कार (1997)

(पर्यावरणीय उपलब्ध्यिों के लिये)

4. डेम कमांडर ऑफ द आर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (2004)

5. टेम्पलटर पुरस्कार (2021)

6. फ्रेंच लीजन ऑफ ऑनर

7. जेन गुडाल ने 2022 में जंगली चिंपैंजी के सामाजिक और पारिवारिक संबंधों के अपने दीर्घकालीक अध्ययन के लिये ‘‘विज्ञान संचार के लिए स्टीफन हॉकिंग मेडल प्राप्त किया’’

8. मेडल ऑफ तंजानिया

9. जापान का बहुप्रतिष्टित बेंजामिन फैंकलिन मेडल इन लाइफ साइंस

10. गांधी किंग अवार्ड।

अहिंसा और स्पेनिश प्रिंस

ऑफ ऑस्टुरियस अवार्ड्स के लिये।

11 जेन गुडाल ‘‘बीबीसी वाइल्डलाइफ’’ पत्रिका के सलाहकार बोर्ड की सदस्य और पॉपुलेशन मैटर्स की संरक्षक भी हैं।

12. जुलाई, 2010 में न्यू स्टेट्समैन के लिये एलिस मैकडॉनल्ड द्वारा साक्षात्कार लिया गया।

जेन गुडाल को ‘‘द वाल्ट डिजनी कंपनी द्वारा ‘वाल्ट डिजनी वर्ल्ड’ के ‘एनिमल किंगडम थीम पार्क’ में ट्री ऑफ लाइफ पर एक पट्टिका के साथ सम्मानित किया गया। जेन गुडाल अमेरिकन सोसाइटी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज और अमेरिकन फिलोसोफिकल सोसाइटी, दोनों की सदस्य हैं।’

विशिष्ट

1. लेगो

3 मार्च, 2022 को ‘‘महिला इतिहास माह’’ और ‘‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’’ के अवसर पर ‘‘द लेगो ग्रुप’’ ने सेट नंबर 40530 जारी किया, जो एक जेन गुडाल ट्रिब्यूट था, जिसमें एक अफ्रीकी वन दृश्य में जेन गुडाल मिनीफिगर और तीन चिंपांजी को चित्रित किया गया है।

2. ‘‘शांति दूत’’

अप्रैल, 2022 में उन्हें ‘‘संयुक्त राष्ट्र शांति दूत’’ नामित किया गया।

3. मानद सदस्य

जेन गुडाल ‘‘वर्ल्ड फ्यूचर कांउसिल’’ की मानद सदस्य भी हैं।

अन्त में मैं आदरणीय डा. जेन गुडाल को, उनके व्यक्तित्व को, उनकी सरलता को ,उनकी दूरदर्शिता ,उनके संघर्ष और उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों को सैल्यूट करती हूँ।

वे हम सभी महिलाओं की गौरव हैं और हम उन्हें सैल्यूट करती हैं तथा उनके लम्बे और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं।

“छू लिया आकाश को

लेकिन पैर रहें जमीं पर

सुध ली उन जीवों की

जिनपर हम

करते भी नहीं बातें ।”,

डा॰ रानी श्रीवास्तव 

पटना,बिहार

लेखक परिचय

साहित्यकार और ऐसोसिएट प्रोफेसर

(जन्तु विज्ञान , विभागाध्यक्ष बी.एम.डी. कॉलेज, दयालपुर, वैशाली)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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