एक वट वृक्ष : साहित्यकार शार्लेट ब्रोंटे
शार्लेट ब्रोंटे के जीवन संघर्ष को पढ़ते हुए अभिनेत्री मीना कुमारी की पंक्तियां स्मरण हो आईं …
“टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली।
जिसका जितना आंचल था उतनी ही सौगात मिली।।”
अंग्रेजी क्लासिक साहित्य में शार्लेट ब्रोंटे का नाम उल्लेखनीय है। शार्लेट ब्रोंटे एक उपन्यासकर, कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में जानी जाती हैं। 21 अप्रैल 1816 को पैट्रिक ब्रोंटे व मरिया ब्रऐनवएल के घर पुत्री शार्लेट का जन्म थॉर्नटन, यॉर्कशायर इंग्लैंड में हुआ।
सन् 1830-1831 में शार्लेट ब्रोंटे ने 14 वर्ष की आयु में रो हेड स्कूल में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए दाखिला लिया। शार्लेट की दो बड़ी बहनें, मारिया एवं एलिजाबेथ और दो छोटी बहनें और एक भाई था। बड़ी दोनों बहनों की मृत्यु तपेदिक रोग से और भाई ब्रैनवेल की मृत्यु अफीम की लत लगने से हुई ।
शार्लेट ने अपनी बहनों एमिली और एनी को घर पर स्वयं ही पढ़ाती थी। इन्होंने सिडगविक परिवार के पास गवर्नेंस की नौकरी भी कुछ समय तक की। तत्पश्चात अपनी बहनों व अन्य बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोला। लेकिन स्कूल में अधिक विद्यार्थियों के न आने के कारण स्कूल से नाता तोड़ शार्लेट की रुचि लेखन की ओर मुड़ गई।
शार्लेट का प्रारंभिक लेख क्यूररवेल, एलिस और एक्टर बेल आदि छद्म नाम से प्रकाशित हुए। दो सौ अधिक कविताएं रचने वाली शार्लेट ब्रोंटे ने अपनी पहली कविता मात्र तेरह वर्ष की आयु में लिखी। उनकी अधिकांश कविताएं ब्रैनवेल्स ब्लैकवुडस मैंगनीज में प्रकाशित हुईं। शार्लेट की कविताओं में सदैव ग्लास टाउन की काल्पनिक दुनिया और रोमांटिक सेटिंग्स, भावुक रिश्तों और उच्च समाज के विरुद्ध आवाज रही।उदास कविताओं को अपने दुख को आश्रय देते हुए रचीं।
सन् 1835 में रची कविता ‘ मॉर्निंग इज इटस् फ्रेशनेस स्टील” में उन्होंने माना काल्पनिक दुनिया इस यथार्थ दुनिया से बेहतर है ” तीस कड़वा कभी-कभी याद करने के लिए भ्रम एक बार उचित माना जाता है।” राबर्ट पेन वारेन ने कहा है, ” A poem to be good, must earn itself.” शार्लेट ब्रोंटे की कविताएं भावात्मक प्रत्ययों को सहज सामान्य रूप में व्यक्त करती हैं।शार्लेट ब्रोंटे का काव्य सर्जक के व्यक्तित्व भावों की विशिष्टता का समीकरण है।
साहित्यकारा शार्लेट ब्रोंटे का प्रथम उपन्यास ‘ द प्रोफेसर ‘ का हाल कृष्णा सोबती के उपन्यास ‘चन्ना’ की भांति अप्रकाशित ही रहा। (जोकि बहुत वर्षों के बाद कृष्णा सोबती के अंतिम क्षणों में अंतिम उपन्यास के रुप में राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ)। शार्लेट ब्रोंटे का ‘ द प्रोफेसर ‘ उनके मरणोपरांत प्रकाशित हुआ।
सन् 1847 में प्रकाशित शार्लेट ब्रोंटे के दूसरे उपन्यास ‘ जेन आइरे ‘ ने प्रसिद्धि की सीमाएं लांघी।यह उपन्यास उनके छ्द्म नाम ‘ क्यूरर बेल’ नाम से 19 अक्टूबर 1847 को लंदन के प्रकाशन स्मिथ ने, एल्डर एंड कंपनी द्वारा प्रकाशित किया।38 अध्यायों वाला यह उपन्यास तीन खंडों में प्रकाशित हुआ, जिसमें पहला खंड एक से पन्द्रह तक अध्याय, दूसरा खंड 16 से 27 तक अध्याय और तीसरा खंड 28 से 38 तक अध्याय थे। जेन आइरे में लोवुड स्कूल के आधार पर अपने स्कूल और तपेदिक से प्रभावित अपनी ही परिस्थितियों की चर्चा शार्लेट ने की है। वैसे सभी अध्यायों का आधार शार्लेट ब्रोंटे के जीवन में घटित घटनाओं और संघर्षों के तानेबाने से बुना है।
सन् 1833 में “वेस्ले” नाम का उपयोग करते हुए उपन्यास ‘ द ग्रीन डार्फ’ लिखा जोकि यथार्थवादी धारणा से पल्लवित था। सन् 1835 में “वी धूल ए वेब चाइल्डहुड’ में एक शिक्षक के दयनीय जीवन और अपने बहन-भाईयों द्वारा बनाई गई काल्पनिक चरित्रों को चित्रित किया।
‘जेन आइरे’ उपन्यास शुरुआती अध्याय की प्रेरणा उस समय से उद्धृत है जब सिडगविक एक बच्चा था जिसने एक अवसर पर शार्लेट पर बाइबिल फेंकी।वैसा ही अंश जॉन रीड युवा जेन पर एक किताब फेंकता है।इसी तरह अपने उपन्यास ‘द प्रोफेसर और विलेट में ब्रेसलेट्स में अपने बिताए गए क्षणों और अनुभवों को शार्लेट ने लिखा है।
जेन आइरे की कथावस्तु व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर रचा उपन्यास था जिसमें जेन साधारण परिवार से थी जिसे अपने जीवन में हर पग पर संघर्ष का सामना करना पड़ता है। और उसे एक ऐसे व्यक्ति रोचेस्टर से प्यार होता है जिसकी पहली पत्नी पागल थी और बाद में घर में आग लगने से उसकी मृत्यु हो जाती है। जेन को रोचेस्टर के जीवन की इस घटना के बारे में कोई जानकारी न थी।अत: उपन्यास में एक महिला के संघर्ष व भावनाओं की गहराई और पीड़ा को कुशलतापूर्वक शार्लेट ब्रोंटे ने उकेरा। जिस कारण इस उपन्यास को व्यावसायिक सफलता, अनुकूल समीक्षाएं और अस्मत लेखन संबंधी आलोचनाएं भी मिलीं।शार्लेट ब्रोंटे ने इसी उपन्यास के दूसरे संस्करण के चित्र भी बनाए थे| जिन्हें रॉयल नॉर्दर्न सोसायटी की प्रदर्शनी में दिखाया गया। जेन गिरे की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर प्रकाशक ने लंदन जाने का प्रस्ताव रखा। जिसे शार्लेट ने स्वीकार करते हुए अपना सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में परिचय दो लेखों द्वारा दिया जो नस्लीय संबंधों और उन्मूलनवादी आंदोलन के प्रति उनका रुझान बताते थे।
सन् 1848 में शार्लेट ब्रोंटे ने अपने पिता, बहन एमिली और एनी की मृत्यु के दुख से उभरने के लिए उपन्यास ‘शर्ली’ का लेखन का आरंभ किया।यह उपन्यास उस समय औद्योगिक क्रांति से हो रही सामाजिक समस्या में महिलाओं की भूमिका से संबंधित था।
शार्लेट ब्रोंटे का आखिरी उपन्यास ‘ विलेट’ सन् 1853 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास की मुख्य पात्र लुसी स्नो, विलेट हैं जो एक काल्पनिक शहर के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाने के लिए विदेश यात्रा करती है। इस शहर की अपनी एक अलग संस्कृति और धर्म है। उसे इस शहर के ऐसे व्यक्ति से प्यार हो जाता है जिससे वह विवाह एक अलग संस्कृति और धर्म होने के कारण नहीं कर सकती। उसके मनोभावों को रोचकता से लेखिका ने चित्रित किया है। अपनी भावनाओं और संवेदनाओं को टूटता बिखरता देख वह अपना स्कूल चला कर स्वतंत्रता और पूर्णता प्राप्त करती है।इस उपन्यास की भाषा में अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रेंच भाषा के अनगिनत शब्दों का प्रयोग उपन्यास की भाषा को सौंदर्य प्रदान करता है।शार्लेट ब्रोंटे ने अपने उपन्यासों में सब्जेक्ट, कंटेंट, और सब्सटेंस के प्रसंगों में कथा वस्तु के समन्वयक उतार कर लयबद्धता दी है।
तीसरा और अंतिम उपन्यास ‘विलेट’ के प्रकाशित होने से पहले ही शार्लेट ब्रोंटे ने अपने लम्बे समय से चले आ रहे प्रेम को विवाह बंधन में परिणत किया।गर्भवती होने पर शार्लेट अस्वस्थ रहने लगी। सदा मिचली और कभी-कभी बेहोशी होने का कारण कुपोषण माना गया।31 मार्च 1855 शार्लेट अपने 39वें जन्मदिन के तीन सप्ताह पहले ही गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ दुनियां को अलविदा कह दिया।
महानायिका साहित्यकारा एक वट वृक्ष शार्लेट ब्रोंटे को कैसे अश्रुपूर्ण विदा करूं? संघर्षो से जूझती काया कब आराम करने चली गई, किसी को खबर तक न लगी।
शशि कपूर,
लेखक परिचय
लेखिका मुंबई, भारत में रहती हैं जो कि बैंकिंग कार्यक्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं।