प्रेम रंग

प्रेम रंग

तोड़ देंगें सभी दीवार नफ़रतों वाली
होगी खुशियों की बौछार रंगों वाली
रंग में अपने रंग लेंगे हम बहाने इसी
तेरा चेहरा मेरा गुलाल होगा साथी
नफ़रतों को जहाँ में और अब मत बांटो
अपनी शाखों को तरू से अब मत काटो
जीतना ही है तो जीत लो दिलों को तुम
लहू से अपनों के धरा को ऐसे मत पाटो
माना कि दौर सियासत का है चारों तरफ
बडी मुश्किल में इंसानियत है शामो सहर
घोंटकर दुश्मनों को पिलाएंगे प्रेम की भंग
छोड़ हथियार बजाएंगे सिर्फ ढोल मृदंग
रंग गुलाल का तो साथी बस बहाना है
तुम भी मेरे हो तुम्हें आज समझाना है
प्रेम के रंग में रंगेंगे हम दुनिया सारी
कान्हा संग जैसे रंगी हो राधा प्यारी
धर्म जाति का यहाँ हो कोई भेद नहीं
सबके हाथों में हो बस प्रेम पिचकारी ।

डॉ0 तारिका सिंह ” तरु ”
कवयित्री, कथाकार, पर्यावरण
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

0
0 0 votes
Article Rating
10 Comments
Inline Feedbacks
View all comments