आरज़ू तुम ज़िंदगी की

आरज़ू तुम ज़िंदगी की

राज तुमको गर बता दूँँ क्या कहोगे,
हाल दिल का मैं सुना दूँ क्या कहोगे।

नाज़ है हमदम तुम्हारे उल्फ़त करम पर
नर्म पलकों पर बिठा लूँ क्या कहोगे।

इश्क़ में हो इम्तिहां क्या सब्र की भी,
हर सितम हँस के उठा लूँ क्या कहोगे।

चाँद तारों की तमन्ना है कहाँ ही,
फिर तुम्हें दिल में छुपा लूँ क्या कहोगे।

बन गये हो आरज़ू तुम ज़िंदगी की,
इक इबादत ही बना लूँ क्या कहोगे।


सुनीता अभय
वाराणसी,उत्तर प्रदेश

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