ढ़ाई आखर प्रेम
प्रेम शाश्वत है।इसे परिभाषित करना कठिन है।प्रेम ही जीवन का आधार है।मानव जीवन का अन्तहीन सफ़र है।मानवीय मूल्यों का निकष है प्रेम।प्रेम ही रसों का उद्गमस्थल है। बिना प्रेम दुनिया में जीना असंभव है।
प्रेम स्त्री पुरुष में ही नहीं सीमित है।यह कभी कहीं किसी से हो सकता है।
यहाँ पति पत्नी या प्रेमी प्रेमिका के अनादि काल के प्रेम के विषय में कुछ तथ्यों से अवगत करवाने का प्रयासमात्र है।इसकी निष्ठा ,त्याग और समर्पण की ओर उन्मुख कर श्रेष्ठ प्रेम को उद्भासित की हूँ।मेरी दृष्टि में हर दिन प्रेमी प्रेमिका के लिए “वैलेन्टाइन डे” है।मात्र फरवरी माह नहीं हर माह प्रियतम प्रियतमा के लिए विशिष्ट माह है। परा पूर्व काल से ही पति पत्नियों के पवित्र प्रेम आज भी हमारे लिए मिशाल है।कितने जोड़ों ने इतिहास रच दिया है। महाकवि कालिदास का पत्नी प्रेम अद्भुत है। ऐसा उत्कट प्रेम युग युगान्तर तक अमर है और रहेगा।विद्योतमा से अपमानित होने पर भी मुकाम हासिल करने के पश्चात् यानी विद्वान् बनने के बाद पत्नी से मिलने आये तो विद्योतमा के पूछने पर
“अस्ति कश्चिद् वाग्विशेष:”(कोई विद्वान् लगता है)
यह सुन महाकवि ने तीन ग्रन्थ रच डाले।वह कौन दिवस था, निश्चय ही १४ फरवरी तो नहीं था!
ऐसा अनूठा प्रेम किसी दिवस का मोहताज हो सकता है क्या?
रत्नावली और तुलसीदास जी का अनन्य स्नेह और त्याग अन्यत्र दुर्लभ है। तुलसी दास और रत्नावली दोनोें का बहुत सुन्दर जोड़ा था। दोनों में अटूट स्नेह था।
एक बार रत्नावली मायके गई हुई थीं।उनके वियोग में तुलसीदास जी को रहना दुष्कर प्रतीत हो रहा था।वे घनघोर अंधेरी रात में धुआंधार बारिश में ही’ एक लाश को लकड़ी का लट्ठा ‘समझ कर उफनती यमुना नदी को तैरकर पार कर गये। वहाँ रत्नावली के मायके घर के समीप वृक्ष पर लटके सर्प को रस्सी समझ कर ऊपर चढ़ उनकेे कमरे में पहुंच गये।
यह देख रत्नावली ने बहुत फटकारा और भाव भरे मार्मिक लहज़े में कहा कि-“लाज न आई आपको,दौरे आएहु नाथ।
अस्थि चर्म मय देह मम,
तासों ऐसी प्रीति
नेकु जो होती श्रीराम से काहे भवभीत?”
तुलसीदास जी को पत्नी के उपदेश से वैराग्य उत्पन्न हो गया और श्री राम के प्रति अति अनुराग।
ऐसा पति प्रेम जो पति को प्रभु श्रीराम के परम भक्त की श्रेणी में ला दे ,प्रेम की पराकाष्ठा ही तो है।
मंडन मिश्र और भारती का प्रेम भी तो अद्वितीय और उल्लेखनीय है।
शंकराचार्य से पति को पराजित होते देख उन्हे चुनौती देकर कहना कि “अभी आपकी आधी जीत हुई है।उनकी अर्द्धांगिनी यानी हमसे शास्त्रार्थ करके देखें। उन्होंने पति का स्वाभिमान लौटा दिया। ऐसा प्रेम कहाँ मिलेगा।
सावित्री सत्यवान का प्रेम,”राधा कृष्ण ” आदि विशिष्ट प्रेम क्या किसी विशेष तिथि का मुहताज हो सकता है?
लैला मजनू,शिरि फरहाद आदि ने जान की भी परवाह न कर आगामी पीढ़ी के लिए एक मिशाल कायम कर दिया था।
असंख्य उदाहरणों से इतिहास भरे हुए हैं।
इन महान् प्रेमियों को ‘चाकलेट डे ‘,प्रौमिस डे या वैलेन्टाइन डे की आवश्यकता थी? इन जोड़ों के लिए हर क्षण महत्त्वपूर्ण था।ये तो प्रेम का अंग्रेजी संस्करण है।
वास्तव में ‘ ढ़ाई आखर प्रेम ‘ ही जीवन का सार है।रहस्य है जीवन का।
प्रेम पर ही संसार अवस्थित है।हर दिन वैलेन्टाइन डे है।
इतिहास के पन्नों में अंकित प्रेमी की जोड़ियों के पावन प्रेम से अवगत हो हर पल को प्रेममय करना चाहिए न कि किसी खास तिथि को अंग्रेजों की अनुकरण कर प्रेम दिवस मनाना चाहिए।
हर दिवस प्रेमियों के लिए प्रेम दिवस है अतः भारतवर्ष में “वेलेन्टाईन डे” का कोई औचित्य नहीं है।
डॉ रजनी दुर्गेश
हरिद्वार, उत्तराखंड