आत्मिक प्रेम
राजमहल का उद्यान- प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण, रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियों से होती हुई तितलियों की परिक्रमा, मधुप का गूँजन, सरोवर की शीतलता और शीतल मंद सुरभित वायु उस रमणी को याद करने पर मजबूर कर दिया, जिसकी चर्चा तीनों लोकों में है।
निषध देश का राजकुमार नल अंतःपुर के उद्यान में दमयन्ती की यादों में खो गये- क्या सचमुच विदर्भ देश की राजकुमारी तीनों लोकों में अद्वितीय है? जो भी उस दिशा से आता है राजकुमारी के अलौकिक सौन्दर्य का वर्णन करता है।
उसी समय राजकुमार नल की दृष्टि उद्यान में विचरण कर रहे गगनचारी धवल हंसो पर पड़ी। नल ने उन हंसों का पीछा किया।आखिर एक हंस उनके हाथ आ ही गया। अपने प्राणों का अंत सोचते हुए हंस ने राजकुमार से याचना की-
‘राजन्! मुझे छोड़ दीजिए। मैं आपकी प्रसंशा विदर्भ देश की राजकुमारी से करूँगा, जिससे वह आपके सिवा किसी और को अपने हृदय में स्थान नहीं दे सकेगी। राजकुमारी दमयन्ती रूप, तेज, यश, श्री और सौभाग्य में अद्वितीय है।’
राजकुमार ने उस हंस को छोड़ दिया। हंस के द्वारा भी उसके रूप सौन्दर्य का वर्णन सुन राजकुमार नल बिना देखे ही उसके प्रेम में गिरफ्त हो गये।
हंस सीधे विदर्भ नगर में दमयन्ती के निकट उतरा। दमयन्ती ने भी उस अद्भुत स्वर्ण पंख वाले हंस को देखकर उसे पकड़ने की कोशिश की। तभी हंस मनुष्य की भाषा में बोला-
‘ राजकुमारी दमयन्ती! निषध देश में नल नाम का एक प्रतापी राजा है, जो अश्विनी कुमारों के समान सुन्दर हैं। मनुष्यों में उनके जैसा दूसरा कोई नहीं है। रूप की दृष्टि से वह कामदेव सा प्रतीत होते हैं। यदि तुम उनकी पत्नी बन जाओ तो तुम्हारा जन्म और यह मनोहर रूप सफल हो जायेगा। तुम नारियों में रत्न के समान हो और वह पुरुषों में मुकुटमणि है।’
राजकुमारी दमयन्ती ने उसे छोड़ दिया और नल के पास भी जाकर इसी तरह की बातें करने को कहा।
हंस दोनों तरफ सौन्दर्य एवं पौरूष की गाथा गाता रहा। इधर बिना देखे,मिले ही प्रेम का दीपक दोनों के हृदय में प्रज्ज्वलित हो उठा। हंस उनका नखशिख वर्णन कर दर्पण भी भाँति दिखा दिया। प्रेम पुष्पित-पल्लवित होता रहा।
दमयन्ती ने अपने भवन से निकलना बंद कर दिया। हंसो के अतिरिक्त वह किसी से बातें नहीं करती थीं। दिन-रात नल की यादों में खोई रहती थी। उसका शरीर क्षीण हो गया और चेहरे का रंग फीका पड़ गया। वह अस्वस्थ रहने लगी। सखियों ने इसकी सूचना राजा भीम तक पहुँचाई। राजा भी अपनी पुत्री के लिए चिन्तित रहने लगे। अन्ततः राजवैद्य के परामर्श से राजकुमारी का स्वयंवर कराने का निर्णय लिया गया।
धरती के सभी प्रतापी राजाओं को निमंत्रण भेजा गया। भव्य आयोजन की तैयारी होने लगी। राजकुमार नल उस स्वयंवर में विशेष रूप से आमंत्रित थे। इस स्वयंवर की सूचना नारद जी द्वारा इन्द्र, अग्नि, वरुण और यम को मिली। ये देव भी स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए चल पड़े। रास्ते में नल को देखकर उन्हें कामदेव का आभास हुआ। ये सभी अपना वाहन बीच में ही छोड़कर धरती पर आए।नल को देखकर उन्हें संदेह हुआ कि राजकुमारी नल के होते किसी और का वरण करे। घटना चक्र और संयोग ऐसा बना कि इन देवताओं ने नल का रूप ही धरण कर लिया। स्वयंवर में पाँच नल को देखकर दमयन्ती अचम्भित हो उठी। भगवान से प्रार्थना की कि- हे प्रभु! यदि मेरा प्रेम सच्चा है तो मेरा नल ही मुझे दिखाई दे। आँखें बंद की और हंस द्वारा किया गया नखशिख वर्णन को याद करने लगी। ज्यों ही आँखें खोली उसे उस सभा में राजकुमार नल के अतिरिक्त कोई दिखा ही नहीं। गले में जयमाल डालते ही आकाश से पुष्पवृष्टि होने लगी।
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।