महकता बसंत

महकता बसंत

महक रहा है हलका – हलका ,
बालों में गूँथा जो गजरा ।
बहक रहा है छलका – छलका ,
नयनन में हँसता वो कजरा ।

बिजुरिया सम दमके बिंदिया
आँचल में मुखड़ा रही छिपाय ।
सजी धजी थिरके है सजनी ,
आस दीप नैन में चमकाय !
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बोल रही है बहकी – बहकी ,
हिना हथेली की मुस्काई ।
ढ़लक गई थी ढ़लके – ढ़लके ,
चुनरी माथे पर थी छाई ।

पीकर प्याला पिया नाम का ,
मंद-मंद प्यार से मुस्काय !
सजी धजी थिरके है सजनी ,
आस दीप नैन में चमकाय !
3
चूड़ी कंगन करते पागल ,
छनक – छनक कर गाते जाएं ।
पाँवों में पहनी जो पायल ,
रुनझुन स्वर भरमाते जाएं ।

यादों के मधुमास लिए है ,
देखती दर्पण रही लजाय ।
सजी धजी थिरके है सजनी ,
आस दीप नयन में चमकाय !
4
सजनी मचले बहकी – बहकी ,
घर आये परदेसी साजन ।
बिंदिया खिली चमकी – चमकी ,
सजा गई विरहन का सावन ।

पिया मिलन की आस लिए है
देखती दर्पण रही लजाय ।
यादों के मधुमास लिए है ,
आस दीप नयन में चमकाय !

निवेदिता श्रीवास्तव ‘निवी’
साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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