वट वृक्ष
स्नेह बीज
विशाल वट वृक्ष सा
बोया गया
प्रथम मिलन में
हृदय की जमीं पर
सिंचित स्नेह रस से
पल पल लेता खाद
नयनों की भाषा से
अधरों से दुलार
प्रस्फुटित अंकुर
नन्ही सी कोंपल
ताके टुकुर टुकुर
कोमल अहसास
हाथों में हुई सिहरन
छूने को आतुर
नेह का प्रतिबिंब लेता आकार
पल पल पनपता
शाखाओं का बढ़ता स्वरूप
नित फैलता सृष्टि का रूप
स्वविस्मित सृष्टि डूबी नेह में
खुश और संतुष्ट निरख स्वयं का रूप
बरगद की तरह विशाल
विकसित सभी दिशाओं में
देने को सब को छांव
समर्थ और रसयुक्त
उसके नेह का बीज
धारण करके नवीन रूप
पल्लवित हो लहराता है
देख उसे मुस्काता है
और वो खोकर स्वयं को
धारण करती है एक नवीन देह
सृष्टि से बीज तक
ये सफ़र यूँ ही जारी है अनवरत…
मीतू मिश्रा
लखनऊ, उत्तर प्रदेश