तामील

तामील

 

हुक्मे नज़रबंदी है ये फ़रमाया आला पीर ने

तू बहुत नाचीज़ बन्दे तू हुक्म की तामील कर

 

वक्त की पाबंदगी का है यह फ़रमान प्यारे

तू बहुत ख़ुदगर्ज़ बन्दे फरमां यह क़बूल कर

 

तू रहेगा आज से पिंजरे में ज्यूँ पंछी कोई

तू बहुत आज़ाद बन्दे पिंजरे से ना परहेज़ कर

 

तेरा निवाला खाएगा अब इस जमीं पर कोई और

तू बहुत बेसब्र बन्दे सब्र का इम्तिहान कर

 

तूने नहीं समझा किसी का रंज ग़म औ’ हादसा

तू बहुत दिलज़ोर बन्दे अपने दर्द का ना ज़िक्र कर

 

तूने नहीं की ख़्वाब में भी पुरसी किसी मिज़ाज की

तू बहुत नादान बन्दे रहमत की ना उम्मीद कर

 

भर लिये बैठा है तू पैमाना गुनहगारी का अब

तू बहुत हैरान बन्दे अब जैसा है इत्मिनान कर

 

नाम 

 

कई बार मुझे लगता है

मेरा नाम मेरा नहीं है

जैसे ये हो किसी और का

अजनबी सा !

 

जब कोई पुकारता है

मुझे मेरे नाम से

लगता है किसी और को

देना है उत्तर !

 

हैरान सी होती हूँ

अपने ही नाम को सुन

क्या मैं ही हूँ

सोचती चौंक कर !

 

देह है तो नाम है

साँस ही प्रमाण है

फ़िर मेरा क्या नाम

कौन पुकारेगा !

 

यह जो कोई और है

साँस और देह के बीच

यह मुझे मुझ से

जुड़ने नहीं देता !

 

डॉ ज्योति राज 

हरियाणा,भारत

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