क्यूँ बीत गया वो पल ……

क्यूँ बीत गया वो पल ……

जिसके साथ जीने की लग गई थी लत,
प्यारा ऐसे जैसे हो पिया का ख़त.
जिसके लिए मोड़ दी हर सोच,
लगा दी जान चाहे लगे लाख खरोंच .

दे कर होठों को हँसी, बीत गया वो पल ……
चाय के ख़ाली कप सी रह गई ज़िंदगी,
समय इतना की काटे नहीं कटता.
पीछा करते वो सैकड़ों बातें और आँखों में सिर्फ़ नीर
बताओ ना तुम्हीं क्या करूँ की जीने लगूँ फिर .

दे कर यादों गठरी, बीत गया वो पल ……

बैठी हूँ चुपचाप, मन ही मन करती हिसाब
कितना कुछ सिखा, पाया मैंने मिल गई जैसे दौलत बेहिसाब.
कभी मीठी कभी तीखी, देखे प्यार के रंग हज़ार,
चहल-पहल से भरा मेरा संसार, एकदम से हो गया बेज़ार .

दे कर सुनेपन का उपहार, बीत गया वो पल ……
हाथों से खिंच कर मुझसे मेरे प्राण ले जाते हैं,
मिल जाएगा सब वापस, सब मुझे ये समझाते हैं,
कैसे समझाऊँ उन्हें की मेरा क्या खोया है.
कितनी अनमोल थी वो धरोहर जो मैंने गँवाया है,

काश कोई लौटा दे, बीत गया जो पल ……
क्यूँ बीत गया वो पल…..

भाव्या भूषण
जमशेदपुर,झारखंड

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