प्रेम का पथ

प्रेम का पथ

प्रकृति ने सिखाया प्रेम
समर्पित भाव से बंधन
मानव से मानव करे प्रेम
हृदय देखो बने चंदन।

नेह से बने रिश्तों का
महकता है सदा प्रकाश
प्रेम जोत जगे हृदय में
हो जाता मन वृंदावन।

ममता के पलने में झूले
प्रेम आनंदित हो संतान
मात पिता , गुरू सखा
प्रेम ही है सबका वंदन।

सत प्रेम का पथ कठिन है
जाने स्वयं प्रभु ही ईश
राधा कृष्ण प्रेम है अनुपम
दोनों विरही हुए मनमोहन।

अंग अंग में कान्ह बसे हैं
राधा बसी विश्वास समान
मीरा के मन मोहन बसे हैं
प्रेम पथ मे किया विषपान।

सुख त्याग कर की है तपस्या
विरहा पीड़ा से भरा है मार्ग
बिना प्रेम जीवन क्या जाने
भटकन करता है जो मन

हृदय से ह्रदय जुड़े हैं देखो
लौकिक और अलौकिक बंधन
मार्ग है दुर्गम जाने फिर भी
बढ़ता पग पग बढ़ता तन मन।

प्रभु प्रेम की चाह रखती हूं
ख़ुद को करती हूँ समर्पित
प्रेम का पथ प्रभु की कामना
स्वयं को करती हृदय से अर्पण।

डॉ आशा गुप्ता ‘श्रेया ‘

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