परदेशी

परदेशी

प्यास के मारे राजन का गला सूखा जा रहा था। दूर-दूर तक देखा किसी मनुष्य की छाया तक नजर नहीं आ रही थी और ना ही आसपास कहीं पानी का अता पता था। वह थककर बैठ गया पर बैठने से भी आखिर कब तक काम चलने वाला था। उठकर फिर चलना शुरू किया पर प्यास से उसका गला सूख रहा था। इस प्यास का क्या करे वह?
धूप पेड़ों की शाखाओं से छन छन कर सड़क पर पड़ रही थी। सूर्य अपनी यात्रा का आखिरी चरण पूर्ण करने में लगा था। न जाने वह गांँव जिसमें उसकी ससुराल है कब आएगा?जिस बस मैं वह आ रहा था वह अचानक खराब हो गई और दूसरी कोई सवारी मिली नहीं इसलिए पैदल ही चलने की ठान ली पर गाँव आशा से अधिक दूर था ।
सोचते सोचते राजन सड़क पर से उतरकर पेड़ों के नीचे चलने लगा अचानक राजन ठिठक गया। पेड़ों के पास से एक पगडंडी अंदर की ओर जाती हुई दिखाई दी शायद वहाँ पानी हो यह सोच कर वह बढ़ने लगा पर रास्ता तो मानो खत्म ही नहीं होना चाहता था। उसने दूर तक नजर डाली। दूर कहीं से आते हुए प्रकाश ने किसी बस्ती के होने का आभास दिया। ‘शायद वहाँ कहीं पानी मिल जाए’ यह सोच राजन बढ़ता गया एक थके हुए यात्री की तरह। सामने बहुत से पेड़ों का झुरमुट था वह मुड़कर उसी ओर जाने लगा।


अचानक उसके कदम रुक गए सामने एक युवती मंथर गति से चली आ रही थी। कितना अप्रतिम सौंदर्य। हाथों में एक जल भरा कलश लिए वह मधुर जल की झील की तरह प्रतीत हो रही थी। सौंदर्य की अगाध राशि लिए हुए भी वह उदासी की मूरत नजर आ रही थी। कुछ रूखे रूखे से बाल जो कई दिनों से सँवारे ना गए हो पर फिर भी आदत के अनुसार ढल गए थे। आंँखें मानो समंदर की गहराई लिए अपने आप में किसी को उढ़ेल देने को आतुर थीं। सूखे से होंठ कुछ इस तरह तड़प रहे थे मानो सदियों से उन्होंने जल बूंद का स्पर्श ना किया हो। इस तरह चल रही थी जैसे बिरह व्यथा का बोझ उससे उठाए ना उठ रहा हो। राजन अपलक उसे देखता रह गया। वह शायद इसी तरह उसे देखता रहता पर सहसा उसी की निगाहें उसकी और उठ गईं ।कुछ देर तक वह उसे इसी तरह देखती रही और न जाने क्या सोचकर अपनी पानी भरी गगरी पानी पिलाने के लिए आगे बढ़ा दी। राजन ने झुक कर उसकी गगरी से बहते हुए पानी को पीना शुरू किया और पीता गया। प्यास बुझना ही नहीं चाहती थी कि अचानक उसको अपने हाथों पर तप्त बूंदों का एहसास हुआ। उसने चौंक कर नजरें ऊपर उठाई तो पाया कि आँखों में सागर आँसुओं के रूप में लहरा रहा था। ये तप्त बूंदे उन्हीं की देन थीं। राजन सीधा खड़ा हो गया और फिर कुछ रुक के पूछने लगा तुम रो क्यों रही हो? इससे पहले कि वह और कुछ कह पाता वह तेजी से गाँव की तरफ चल दी। राजन कुछ देर मूर्ति बना खड़ा रहा और फिर वह भी गाँव की ओर बढ़ने लगा। गांँव पहुंच कर उसने पाया यह तो वही गाँव था जहाँ वह आ रहा था। उसने एक मकान के सामने रुक कर दरवाजा खटखटाया। राजन को सामने देखकर उसकी सास आश्चर्य से देखती रह गई राजन ने उनके पैर छुए और इसके पहले कि वह कुछ कहता उसके ससुर जी भी आ गए। वे दोनों उसे देख कर बहुत प्रसन्न हुए और उसे गले लगा कर बोले पहले खबर दे दी होती तो तुम्हें यह तकलीफ नहीं उठानी पड़ती। राजन से उनकी बेटी का विवाह बहुत पहले हो गया था जब वह बहुत छोटी थी इतने दिनों से वह परदेश में रहकर पढ़ाई कर रहा था फिर व्यवसाय में लग गया और अब गौना करवाने आया था।
ससुराल की सब रस्में पूरी हो चुकी थीं। चाँद बदली में से निकलकर मानो उन्हें बधाई दे रहा था। राजन ने अपने चाँद को देखा जो अभी तक घुंघट की ओट में अपना मुख छुपाए हुआ था। राजन ने आगे बढ़कर धीरे से घुंघट उठा दिया ।
“आज पानी नहीं पिलाओगी” मुस्कुराकर राजन ने कहा
मीना ने चौंक कर अपनी पलकें उठाईं पर शर्म के मारे वे अपना बोझ न सह सकीं और झुक गईं जैसे एक घुंघट हटने पर दूसरा अपने आप गिर गया हो।

आनंद बाला शर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

0
0 0 votes
Article Rating
546 Comments
Inline Feedbacks
View all comments