प्रेम कहानी
प्रेम कहानी अपनी साजन
कैसे तुम्हें बताऊँ रे।
तू बैठे हो पास जो मेरे,
मैं कुछ कह ना पाऊँ रे।
नयना जो बतिआये साजन,
अधरों से लग जाऊँ रे।
मैं देखूँ जो दर्पण में तो,
जाने क्यों शरमाऊँ रे।
रहूँ अकेले में जो साजन,
खुद से क्यों बतियाउँ रे।
पता नहीं क्यों हुई बाबरी,
प्रेम के गीत सुनाऊँ रे।
जब भी कोई योगी गाये,
प्रेम विरह रस पाऊँ रे।
भूल भुलैया जंतर मंतर,
मन कैसे बहलाऊँ रे।
मेरी सखी सहेली बोले,
बाबरी मैं कहलाऊँ रे।
मुझे पता ना रोग कौन सा,
दिल किसके बस जाऊँ रे।
स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या ‘
कटिहार, बिहार