लॉकडाउन और कोरोना वारियर्स की चुनौतियां
हम होंगे कामयाब,हम होंगे कामयाब एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास,हम होंगे कामयाब एक दिन
आज पूरा विश्व कोरोना नामक प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है, और इस पर विजय पाने के लिए संघर्षरत देशों के लिए एक कठिन चुनौती बन गया है, चीन से निकल कर पूरे विश्व को संक्रमित करता हुआ यह वायरस आज साक्षात मृत्यु बन कर तांडव कर रहा है,यद्यपि भारत ने इस चुनौती को बहुत पहले ही स्वीकार कर इससे लड़ने की तैयारियां प्रारंभ कर दी थीं, लेकिन पश्चिमी देशों में जहां शिक्षितों की संख्या ज्यादा है,वे इसकी भयावहता को समझ रहे हैं और उसकी लड़ाई में शामिल हो गए हैं, परंतु भारत जैसे देश में जहां अशिक्षा भी है और जानकारी का अभाव भी, वहां इस से जूझना कठिन हो रहा है,न चाहते हुए भी यह कहना पड़ रहा है कि कट्टर धार्मिक स्थलों एवं संस्थाओं ने भी इसकी गंभीरता को नहीं समझा और देखते ही देखते यह हमारे देश को भी तेजी से ग्रसित करने लगा, दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात,यूपी, में जहां इसकी भयंकरता अधिक तेजी से फैली, सरकार की कोशिशों के बावजूद इसकी जड़ें तेजी से जमती चली गई,,इन प्रमुख शहरों एवं प्रदेशों में जनसंख्या अधिक है और आवागमन के लिए ट्रेनों, बसों का ही सहारा लेना पड़ता है,जब तक सरकार सचेत हो कर जागरूकता अभियान छेड़ती,तब तक देर हो चुकी थी, और हजारों लाखों की संख्या में लोग संक्रमित हो गए,, धीरे धीरे यह लगभग पूरे देश को अपनी चपेट में लेने लगा,डॉ लव कुमार अग्रवाल कहते हैं कि इससे बचने का एकमात्र उपाय है सामाजिक दूरी यानि सोशल डिस्टन्सिंग, मास्क का प्रयोग और बाजारों, संस्थाओं से दूरी बनाए रखना, क्योंकि यह वायरस लोगों की छींक, खांसी, और सर्दी जुकाम होने से निकली तरल बूंदों से दूसरों को संक्रमित करता है,तेज बुखार भी इसका लक्षण है। डॉ साहब ने बहुत ही जरूरी जानकारी दी, लेकिन इसका जनता के बीच जाकर समझाना और पालन करवाना ही एक बड़ी चुनौती बन गया है,, अधिकांश लोग यह समझ ही नहीं पाते कि यह कैसी बीमारी है जो दिखाई नहीं देती, सर्दी ज़ुकाम तो पहले भी होते थे।इस अज्ञानता से निपटना कठिन है, मैं जहां रहती हूं वहां नजदीक ही आदिवासी मजदूरों कामगारों की दो बस्तियां हैं जो न तो चेहरा ढ़कते है न सामाजिक दूरी का ही पालन करते हैं,, हां जब यह पता लगा कि सरकार मुफ्त राशन, ज़रूरत की वस्तुएं बांट रही है तो सड़कों पर लगी लंबी कतारें, बिना सोशल डिस्टन्सिग का पालन किए हुए,,जो सरकार के लिए बड़ी कठीन परीक्षा की घड़ी है आज के सन्दर्भ में,, हमारे यहां तो पुलिस से बचने के लिए हाथों में, गाड़ी में हैल्मेट टांग कर चलना, और पुलिस को देखते ही पहन लेने की परंपरा बन गई है, लोग ये नहीं सोचते कि इसमें किसकी सुरक्षा है,, उनकी या पुलिस की?आज यही स्थिति कोरोना के संदर्भ में बन रही है लोग गले में मास्क लटका कर चल रहें हैं औपचारिकता के लिए,,अतः इसका एकमात्र उपाय था लॉकडाउन का पालन करना,सोशल डिस्टन्सिग,,जिसे अनिवार्य आदेश के रुप में जारी किया गया था।
केन्द्र एवं राज्य स्तर की सरकारों के आदेश का पालन करवाना स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी होती है और वहीं चूक हो जाती है,सब्जी और दूध की दुकानों पर लगी नियंत्रण हीन भीड़,मास्क का प्रयोग करवाना और इसकी भयावहता को समझाना ,ये भी एक बड़ी चुनौती और जिम्मेदारी है,जिसका पालन शाय़द उतनी सक्रियता से नहीं किया गया जैसी ज़रूरत थी,,,इस लॉकडाउन के दौरान जब हजारों छोटी बड़ी कंपनियां बंद हो गई, और स्कूल कॉलेज संस्थानों के बंद होने से घर लौटने वाले मजदूरों, छात्रों के प्रति भी संवेदनशील भावना रखते हुए, उन्हें समझाने की कोशिश की जाती तो शायद उनके साथ घटने वाली घटनाएं नहीं होती, ट्रेनों, बसों के बंद होने पर वे पैदल ही अपने अपने गृह राज्यों की ओर निकल पड़े थे, बिना किसी सुरक्षा के,, सरकार ने हर संभव व्यवस्था तो की, परंतु लागूं नहीं करवा पाई, क्योंकि रोजी रोटी छिन जाने पर, आक्रोशित लोग किसी नियम कानून का पालन करने की अपेक्षा जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाहते थे,, परिणाम सोशल डिस्टन्सिग के अभाव में वे सभी तेजी से संक्रमित होते चले गए, भूखे प्यासे नंगे पांव परिवार के साथ गरम तपती सड़कों पर लंबी दूरियां तय कर रहे हैं, हादसों का शिकार हो रहे हैं, दुर्घटनाए भी हो रही है,काम छिन जाने पर रोटी की आशा भी नहीं है, घर लौटने का ही एकमात्र विकल्प बचा है जिनके लिए, उनके हौसले बुलंद रहें, उम्मीदें जिंदा रहें,यही कामना करती हूँ,,
इस संदर्भ में मैं उन बुद्धिजीवियों बुद्धिमान जनता और जागरुक नागरिकों की सराहना करती हूं जिन्होंने न केवल लॉकडाउन का पालन किया बल्कि प्रधानमंत्री एवं केन्द्र सरकार का अनुकरण करते हुए थाली बजाकर, तालियों से कोरोना वारियर्स को सम्मान दिया,, ज्ञान करुणा और मानवता के नाम एक प्रतीकात्मक दीप जलाकर , महीनों से घर में कैद लोगों के आत्मबल और मानसिक दृढ़ता को मजबूती प्रदान की,,ये भारत की भावना प्रिय जनता है,जो हर चुनौती से लड़ना जानती है और कठिनाइयों पर विजय पाना भी,, मैं उनको नमन करती हूँ।
परंतु बात जब कोविड-19 के मरीजों से दिन रात लड़ते हुए, लोगों की जान बचाने के लिए सन्नद्ध–कर्मवीरों की आती है तो मन उनके प्रति श्रद्धा से भर जाता है,जो अपने घर परिवार से दूर रह कर केवल मानवता की रक्षा के लिए अपने जान की भी परंपरा नहीं कर रहे हैं,मेरा हृदय से शत-शत नमन उनके लिए,,ऐसे कठिन समय में गीतकार गुलजार के शब्द मन को छू जातें हैं – इस वक्त हमारें डॉक्टर्स व नर्सेज वही काम कर रहे हैं जो हमारे सिपाही जंग के वक्त अपने देश के लिए करते हैं।
हम आये दिन समाचारपत्रों में टीवी पर जो पढ़ सुन रहे हैं कि किस तरह गोलियों की बौछार और उन्मादी जनता द्वारा फेंके गए पत्थरों की परवाह न करते हुए भी देशवासियों की सुरक्षा के लिए हमारे ये कर्मयोद्धा महामारी की इस ख़तरनाक और जानलेवा परिवेश में भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं,,ये धरती के भगवान हैं जो केवल देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को कोरोना यानि कोविड-19, से बचाने के लिए जूझ रहे हैं, जिसकी अभी तक कोई दवा नहीं बनी और न वेक्सीन ,,न ही कोई अन्य विकल्प, लेकिन सुरक्षा सेवा और देखभाल में हुई जरा सी भी चूक किसी की जान ले सकती है तो उनकी निस्वार्थ सेवा हजारों की जान बचा भी सकती है,, मानवता हित में जुटे हुए हमारे महान कर्मवीरो को देने के लिए हमारे पास सिर्फ दुआएं है,, शुभकामनाएं है और जो हम उनकी जिंदगी की रक्षा के लिए दे सकते हैं, ईश्वर से प्रार्थना ही कर सकते हैं, हमारे प्रधानमंत्री जी ने इसलिए लाकडाउन में उनके उत्साह बढ़ाने और कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए जनता से तालियां शंख नाद स्वरम बजवाया था,,दूसरी तरफ हमारे सफाई कर्मी जो घर परिवार से दूर हमारे परिवेश को,भर्ती हुए मरीजों की रक्षा के लिए अस्पतालों, सड़कों इमारतों को सुरक्षित करने के लिए साफ सफाई में व्यस्त हैं हमारा शत-शत नमन उनके लिए भी है, देश इन कर्मयोद्धाओ के लिए नतमस्तक हैं जिनकी सेवा का कोई प्रतिदान नहीं हो सकता,,इस संदर्भ में मैं देश की मीडिया, प्रकाशन समूहों, चैनलों में काम करने वाले तमाम कर्मियों को कैसे भूल सकती हूं ,हम इस कठिन समय में जहां अपने परिवार के साथ समय बिता रहे हैं वहीं ये लोग अपने घरों से बहुत दूर रहकर हमें कोरोना संबंधी हर जानकारी,हर समाचार, विश्लेषण, वार्ताएं प्रस्तुत कर रहे हैं,,ये वारियर्स संक्रमित भी हो रहें हैं जो कि स्वाभाविक भी है, फिर भी अपनी कर्तव्य भावना से विचलित नहीं होते हैं,,
आज इस देश में यदि ऐसे कर्मवीरों को भी अशिक्षित अल्पशिक्षित जनता के क्रोध का सामना करना पड़ता है तो हमारा सिर शर्म से झुक जाता है,क्यों? आखिर क्यों?,, इसमें उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं है,वे तो जनता को बचाना चाहते हैं,वे आपकी सुरक्षा के लिए अपनी सुरक्षा की चिंता नहीं करते, यहां तक कि खुद भी संक्रमित हो जाते हैं और कभी कभी मौत की नींद भी सो जाते हैं,,अब तो इनमें पुलिस और सेना के जवान भी शामिल हो गए हैं, मेडिकल स्टाफ,नर्से, डाक्टरों की टीम लगातार अपने काम में निरत है, हमारे देश को, उसकी जनता को आभारी होना चाहिए,जो देवदूत बनकर उनके लिए संघर्षरत हैं,उन पर पत्थर बरसाना, अपमान करना, अत्यंत निंदनीय है,,हम विश्व के सम्मुख एक आदर्श देश के नागरिक का उदाहरण प्रस्तुत करें, ताकि हमारा देश इस संकट काल से बाहर निकल आए, मैं उन महान कर्मवीरों के नाम कुछ पंक्तियां समर्पित करना चाहतीं हूँ–
है नमन तुम्हे मानवता हित जीवन अर्पित करने वालों
सेवा से संकट मोचक बन हमको गर्वित करने वालों
हर जंग जहां जीती हमने दुश्मन को धूल चटाई है
संक्रामकता -निशिचर के दमन की कसम उठाई है
है नमन तुम्हे खतरों से भी आंधी बन टकराने वालों
है नमन तुम्हे मानवता हित जीवन अर्पित करने वालों
स्वच्छता रहे,एकता रहे, यह भाव नहीं मिटने देना
हम रहें सुरक्षित देश रहे संकल्प नहीं डिगने देना
हारेगी संक्रामकता जब ,हारेगा विषधर कोरोना
पद्मा मिश्रा
स्वतंत्र लेखन, कवयित्री, कथाकार और गृहिणी
जमशेदपुर,झारखंड