लता मंगेशकर: मानवता को उपहार
लता मंगेशकर जैसी विभूतियाँ इस धरा पर कभी-कदा ही अवतरित होती हैं। वे मानवता को मिला दैवी उपहार हैं। स्वर साम्राज्ञी ने आम और खास सबके दिल पर राज किया। उन्हें कई पुरस्कार मिले पर वे किसी पुरस्कार की मोहताज नहीं रहीं। चार पीढ़ियों को अपने सुर से उपकृत करने वाली गायिका की सुर साधना पर उनके जीते-जी कई सहृदय ने लिखा है, आज उनके जाने पर मेरी भी उन्हें एक छोटी-सी श्रद्धांजलि!
उनकी आवाज, उनके गीत उनकी पहचान हैं। उनके एक गीत के बोल हैं, ‘नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा। मेरी आवाज ही पहचान है…’। मैं दावे के साथ कहना चाहती हूँ, उनका नाम कभी गुम नहीं होगा, उनका चेहरा कभी नहीं बदलेगा। वे सदा हमारे हृदय में अमर-अजर रहेंगी। सदियों तक उनका नाम और उनका स्वर गूँजेगा। उनका मुस्कुराता हुआ चेहरा कौन भूल सकता है। भारतीय फ़िल्मों के गीतों का सफ़र उनके बिना कभी पूरा नहीं होगा। वे ‘रहें या न रहें’…सदा महकती रहेंगी।
किस भाव के गीत उन्होंने नहीं गाए! किस भाषा में नहीं गाए! जब मलयालम में गाया उनका गीत ‘कदली चैंगकदली’ सुना तो ताज्जुब होना ही था क्योंकि मलयालम भाषा गैर-मलयाली के लिए काफ़ी कठिन है। और उन्होंने भारत की इस भाषा में कई गीत गाए। एक सच्चा कलाकार दूसरे कलाकार को सदैव आदर देता है। प्रसिद्ध गायक येशुदास उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते हैं। लता भी येशुदास का बहुत सम्मान करती हैं। दोनों ने मिल कर कई युगल गीत गाए हैं। एक बानगी देखिए, ‘जिंदगी महक जाती है…’। जब 2011 में येशुदास की गायकी के 50 साल हुए तो लता मंगेशकर ने उन्हें अपनी हस्तलिपि में एक बधाई-पत्र लिखा। उस मढ़े हुए पत्र को वे बड़े गर्व के साथ दिखाते हैं। येशुदास जब मात्र तेरह साल के थे तो स्कूल जाते हुए एक चाय की दुकान में एक गीत, ‘छुप गया कोई रे दूर से पुकार के, दरद अनोखे हाय दे गया प्यार के….’ बजता था। युवा येशुदास खड़े हो कर सुनते और स्कूल देर से पहुँचते, टीचर की डाँट सुनते। मगर गाने का जादू ऐसा था कि वे स्वयं को खड़े हो कर सुनने से रोक न पाते। बहुत बाद में उन्हें पता चला कि यह गाना लता मंगेशकर ने फ़िल्म ‘चम्पाकलि’ (1957) के लिए गाया है।
सच तो यह है कि लता जी और गायन एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं l जावेद अख्तर का उनके बारे में यह कथन निर्विवाद रूप से सत्य है l ‘दुनिया में एक सूर्य है, एक चंद्रमा और एक ही लता मंगेशकर l’ उनकी मखमली आवाज कानों में गूँजती रहेगी। कौन-सा गाना याद करूँ? प्रेम का, विरह का, खुशी का, दु:ख का या देशभक्ति का? सावन का, बारिश का, बसंत का या उनकी गाई लोरी? ‘ए मेरे वतन के लोगों’ गाया तो सुनने वालों की आँख की कोर भींग गई। कहते हैं 30 साल के बाद व्यक्ति अपना चेहरा खुद कमाता है। चेहरा मन का आईना होता है। लता मंगेशकर उम्र के साथ खूबसूरत होती गईं। उनके चेहरे की लुनाई दिन-पर-दिन बढ़ती गई। हमारी स्मृति में सदा उनका यही सौंदर्य बसा रहने वाला है और कानों-दिलों में उनके गीत मिठास घोलते रहने वाले हैं। वे भले ही भौतिक रूप से हमारे साथ न हों मगर उनकी दैविक उपस्थिति सदैव बनी रहेगी। इस स्वर कोकिला को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि!
डॉ. विजय शर्मा
जमशेदपुर,भारत