कवि, कविता और कोरोना
सच ही कहा गया है कि ‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुचे कवि’ । आज कोरोना नामक महामारी वैश्विक स्तर पर फैल चुकी है । अमेरिका जैसी दुनिया की बड़ी-बड़ी महाशक्तियों ने इसके सामने घुटने टेक दिये हैं । ऐसी संकट की घड़ी में हमारे देश के हिन्दी, संस्कृत, उर्दू कलमकारों ने अपनी कलम के माध्यम से (लोककलाकारों ने अपने लोकगीतों के माध्यम से) लोगों को जागरुक करने का बीड़ा उठाया है । ऐसे ही कुछ रचनाकारों और लोक कलाकारों की कृतियों को इस शोधपत्र में शामिल किया गया है ।
बालीवुड के प्रसिद्ध गीतकार प्रसून जोशी लिखते हैं कि इक्कीस दिन के लाकडाउन का सभी को पालन करना चाहिए ।
इक्कीस दिन का उपवास लिए
जीवन की लम्बी साँस लिए
सीमा रेखा ना तोड़ेंगे
एक संयम एक विश्वास लिए
चलो मन को दें आदेश
हाँ घर में रहेगा देश ।
1)हिन्दी साहित्य अकादमी और संस्कृत साहित्य अकादमी के सचिव डॉ.जीतराम भट्ट ने कोरोना वायरस में लोगों को एक दूसरे से दूरी बनाए रखने की शिक्षा दी है ।
नमस्ते मे दूरतो हि विधेया हि सतर्कता ।
कोरोनां दूरीकुरु त्वं स्वयं ह्येव मृगेन्द्रता ॥
2)डॉ.निरंजन मिश्र अपनी कविता ‘कोरोनाकालयापनम्’ में लिखते हैं-
कश्चित्प्रिय: प्रियवियोगजचित्ततापं
नित्यं समुद्वमति काव्यरसच्छलेन।
तत्तापशान्तिमुपयात्यधुना न जाने
मुग्धास्तु किन्तु रसिका नितरां भवन्ति।।
3)डॉ. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर (म.प्र.) के हिन्दी एवं संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो.आनन्द प्रकाश त्रिपाठी लिखते हैं-
क्या से क्या हो गया है
अपना सगा भी दुश्मन सा नजर आने लगा है
कोरोना ने यह कैसी बिसात बिछाई है
इंसान ही इंसान के लिए खतरनाक बन गया ।
4)लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने अपने गीत के माध्यम से लोगों के दर्द को व्यक्त किया है । जो कि कोरोना के डर से अपने शहरों से अपने गाँव की ओर प्रस्थान कर चुके हैं ।
जान जोखिम में डालि केऽऽऽ
चले कवुन से देश
ए परदेशी भइया, होऽऽऽ मोरे परदेशी भइया ।
5)प्रो.ताराशंकर शर्मा पाण्डेय आचार्य साहित्य विभाग, पूर्व विभागाध्यक्ष, जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर, राजस्थान ।लिखते हैं-
रात चाँदनी महफ़िल सजी
सम्मिलित हुए कई देश
छूटे कुछ, बुलाये आ गये
देखो नये अतिथि विशेष ।
6) कभी राम बन के कभी श्याम बन के’ फेम तृप्ति शाक्या ने भी लोगों को अपने गीत के माध्यम से घर में रहने की सलाह दी है ।
बेवजह घर से निकलने की जरूरत क्या है
मौत से आँख मिलाने की, जरूरत क्या है ।।
सबको मालूम है बाहर की हवा है कातिल
यूं ही कातिल से उलझने की जरूरत क्या है ॥
7 )प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह (प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ) अपनी कविता में लिखते हैं कि बहुत दिन नहीं है । हम जल्दी ही इस महामारी से उबर जायेंगे । बस सभी मनुष्यों को थोड़े से धैर्य की जरुरत है ।
जीत रहा भारत ये विपदा ,
बस थोड़ी सी और कसर है ।
थोड़ी दृढ़ता और चाहिये, ।
8)डॉ. अलका सिंह, (असिस्टेंट प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग, डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, लखनऊ) कोरोना के लिए दैत्य शब्द प्रयोग करती हैं । वे लिखती हैं कि- हम सभी को कुछ दिन अपने-अपने घरों में रहने की जरुरत है । यह दैत्य कोरोना अवश्य ही हारेगा ।
क्वारंटाइन शब्द नहीं ,
संयम का पर्याय कह लीजिये ।
इस महादैत्य से लड़ने में ,
ऊर्जा का संचार कह लीजिये ।
एकांतवास अपनी संस्कृति है,
संघर्ष हेतु मन की स्थिति है ।
9)युवा कवि और आलोचक डॉ.अरुण कुमार निषाद लिखते हैं-
रहो कुछ दिन घरों में बंद कहना मान लो प्यारे
चलो कुछ दिन की दूरी है ये, सहना मान लो प्यारे है।
बदल जाएगा मंजर प्रभु पर रखो भरोसा सब
तुम्हीं परिवार के अपने हो गहना मान लो प्यारे ।।
10)आकाशवाणी लखनऊ के प्रसिद्ध संगीतकार केवल कुमार की पोती वेदिका श्रीवास्तव ने अशोक हमराही के गीत के माध्यम से लोगों को कोरोना में घर में रहने की सलाह दी है ।
कोरोना को भगाये बिना कैसे सपरी
कैसे सपरी हो रामा कैसे सपरी
कोरोना को भगाये बिना कैसे सपरी ।।
11)डॉ.अरविन्द तिवारी कोरोना पर लिखते हैं-
नाशयन्तो महद्ध्वान्तं वर्धयन्तो मिथो रतिम्।
ज्वालयन्तो द्विषो देशे ज्वालयन्तु प्रदीपकान्।।
12 ) कोरोनाप्रसृतिं राष्ट्राद् दूरं यातु भयावहा।
तदर्थं बन्धवः कुर्युः दीपप्रज्वालनं गृहे।।
13 )वे अपनी दूसरी कविता कोरोनारक्षास्तोत्रम्’ में लिखते हैं-
कथा कीदृशी श्रूयते हन्त मातः!
स्वदेशे विदेशे करोनाविषाणुः।
जनान्मारयन्वर्द्धते सूक्ष्मरूपो
यथा वानलो वर्द्धते हा तथायम्।।
14)इलाहाबाद डिग्री कालेज के संस्कृत प्रोफेसर डॉ,राजेन्द्र त्रिपाठी रसराज लिखते हैं कि हम सभी लोगों को ईश्वर से कोरोना नामक दैत्य को भगाने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ।
दैवजामापदां विश्वव्याप्तव्यथाम्।
कोरनां नाशितुं साम्प्रतं कामये ।।
15)इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्रा नेहा सिंह और भी अपने गीत के माध्यम से कोरोना से बचाव का उपाय बता रही हैं ।
धधकेला सगरी नगरिया हो कोरोना महामार हो गइल-2
दिन-रात साबुन से हाथ धोआत बा
सिनटाइजर और मास्क खूब बिचात बा
डर लागे दिन दुपहरिया हो, कोरोना महामार हो गइल ।
16)अपने दूसरे गीत में वे विरहिणी नायिका की पीड़ा इन शब्दों में व्यक्त करती हैं कि अब तो कल-कारखाने भी बन्द हो गये पर न जाने मेरा प्रियतम अभी तक घर क्यों नहीं पहुचा । अनहोनी की आशंका से वह अन्दर-ही-अन्दर काँप जाती है ।
कारखाना बन्द होई गइले, हमार पिया घरे न अइले हो-2
दिल्ली शहरिया में पिया के नोकरिया
भोरे से साँझ होई गइले, हमार पिया घरे न अइले हो ।।
17)काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रो.वशिष्ठ अनूप लिखते हैं कि इस समय प्रत्येक व्यक्ति को एक-दूसरे से शारीरिक बना लेना ही अच्छा है । हम सही सलामत बचे रहेंगे तब न प्रेम प्रकट कर पाएँगे ।
दिल से सुन लेंगे, दिल से कह लेंगे
दर्द चुपचाप सारे सह लेंगे
दूर रहने से प्यार बढ़ता है
चंद रोज़ और दूर रह लेंगे ।।
18)नवयुग कन्या इण्टर कालेज की संस्कृत प्रवक्ता डॉ. मंजुलता कुण्डलियॉ छन्द में कोरोना पर लिखती हैं-
भारत बढ़ पायेगी न कोरोना की मार
जागृत हम सब हो गये, घर ही है संसार
घर ही है संसार न निकलेंगे हम घर से
भोजन औषधि हेतु गये भी यदि मुश्किल से
धोयेंगे फिर हाथ बहुत मल-मल साबुन से
ऐकान्तिक हो वास सहन संकल्पित मन से ।
19)इलाहाबाद (प्रयागराज) की डॉ.शिल्पी श्रीवास्तव लिखती हैं-
हैं सभी मजबूर इस मुश्किल घड़ी में
काटना है वक्त ये झुकना नहीं है
बेबसी को देखना भी बेबसी है
दहलीज के बाहर कदम रखना नहीं है ।
20)लखनऊ के वैज्ञानिक और व्यंग्यकार पंकज प्रसून लिखते हैं-
कोई पाना समझता है कोई खोना समझता है
बचा रहता है वो जो हाथ का धोना समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूं तू मुझसे दूर कैसी है
इसे हम दोनों से बेहतर ये कोरोना समझता है ।
21 )तुझे आती है खांसी यह बता देती तो अच्छा था
मेरा तू आइसोलेशन करा देती तो अच्छा था
तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन
इसे कटवा के गर तू मास्क बनवाती तो अच्छा था ।
22)कवि हरिनारायण सिंह हरि लोगों अपनी कविता माध्यम संदेश देते हैं कि इस आपसी मनमुटाव को हम बाद में सुलझा लेंगे । पहले हमें कोरोना जैसी महामारी से बचना है ।
यह कोरोना का रोना छोड़ो, डट जाओ,
इससे लड़ना है मित्र! आज झटपट आओ ।
आपसी मनोमालिन्य, बोध कर लेंगे हम ।
रे अभी साथ दो,फिर विरोध कर लेंगे हम ।
23)इसी बात को और स्पष्ट करते हुए इलाहबाद (प्रयागराज) के कवि बद्री प्रसाद मिश्र मधुकर कहते हैं ।
संकट की घड़िया छाई है
संग में कोरोना लाई है
सावधान सबको रहना है
यही बात सबसे कहना है ।
24)सुल्तानपुर के प्रसिद्ध शायर अरशद जमाल कहते हैं कि आदमी को इस लाकडाउन में तन्हा महसूस नहीं करना चाहिए । उस समय का सदुपयोग करना चाहिए । अच्छे-अच्छे साहित्य पढ़ना चाहिए । कोई मन पसन्द कार्य करना चाहिए ।
कहां हूं तनहा मैं
ये किताबें
ये ‘होरी ‘ ये ‘धनिया’
अभी लिपट पड़ेंगे मुझसे
गांव की सोंधी महक के साथ
कहां हूं तनहा मैं ।
25)डी.ए.वी. कालेज देहरादून के संस्कृत प्रोफेसर और कवि डॉ.राम विनय लिखते हैं ।
मोहब्बत को बहुत मज़बूर करने आ गयी है,
हिदायत को यहाँ मशहूर करने आ गयी है,
बड़ी ही बदगुमां है, बदनज़र है, बदबला भी
कॅरोना दिल को दिल से दूर करने आ गयी है।
कॅरोना अहले दुनिया के लिए सौगात ले आयी
बड़ी बदनीयती से मौत की बारात ले आयी ,
उठाकर लाश कंधों पर हुलसती प्रेतिनि-सी वह
हयाते आदमीयत पर बुरे हालात ले आयी।
26)सुप्रसिद्ध गीतकार सुनील जोगी भी अपनी कविता द्वारा लोगों को यही संदेश दे रहे हैं कि इस संकट की बेला में आदमी को थोड़े दिनों के लिए दूरी बना लेनी चाहिए ।
हम को दूरी बनाए रखनी है
अपनी दुनिया सजाए रखनी है
क़ैद में रखिए ख़ुद को थोड़े दिन
ज़िन्दगी है, बचाए रखनी है ।
27)लखनऊ के मशहूर कवि मुकुल महान शहरों से गाँवों की तरफ पलायन करने वाले मजदूरों की पीड़ा को कुछ इस तरह व्यक्त किया है ।
अपनी जीवन डोर थाम कर
होकर के मजबूर चल पड़े ।
शहरों की आपाधापी में
गाँवों को मजदूर चल पड़े ।।
28)शायर प्रदीप साहिल भी यही कहते हैं कि –मित्रों बात अधिक दिनों की नहीं है कुछ दिन की ही बात है । फिर सब कुछ सामान्य हो जाएगा तब तक हम सरकार द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन करें ।
सहमा हुआ जहान है, दो चार हफ़्ते और
हम सबका इम्तिहान है, दो-चार हफ़्ते और ।
इज़्हार-ए-जज़्बा-ए-जुनूँ करना सकून से
पाबन्द हर उड़ान है, दो-चार हफ़्ते और ।
29)कवि राम किशन शर्मा भी कहते हैं कि सभी लोगों को सरकार की बात पर अमल करना चाहिए और इक्कीस दिनों तक मेल-जोल कम कर देना चाहिए ।
इक्कीस दिन के लॉक-डाउन को सफल यूँ बनाना है
घरों में रह कर अपने,’कोरोना’ को हर हाल हराना है |
‘सोशल-डिस्टेंसिंग’ के अलावा उपाय कोई और नहीं है
प्रकोप से ग़र ‘कोरोना’ के, देश अपने को बचाना है |
30) इसी प्रकार कवि हरि मोहन यादव शास्त्री (भदोही) भी सभी को घर में रहने की बात करते हैं ।
तूफान के हालात है ना किसी सफर में रहो
पंछियों से है गुजारिश अपने शजर में रहो
ईद के चाँद हो अपने ही घर वालों के लिए
ये उनकी खुशकिस्मती है कि उनकी नजर में रहो
तुमने खाक छानी है हर गली चौबारे की
थोड़े दिन की ही तो बात है अपने घर में रहो ।।
31)इस प्रकार हम देखते हैं किसी कवि ने इस संकट की घड़ी में दूरी बनाने की सलाह दी है, किसी ने घर में रहने की सलाह दी है, किसी ने सरकार के निर्देशों का पालन करने की सलाह दी है । तो किसी-किसी ने मजबूर लोगों के लिए अपनी शोक संवेदना व्यक्त की है ।
डॉ.अरुण कुमार निषाद
कवि, लेखक और समीक्षक
असिस्टेण्ट प्रोफेसर (संस्कृत विभाग)
मदर टेरेसा महिला महाविद्यालय,
कटकाखानपुर, द्वारिकागंज,सुल्तानपुर |