चाँद जाने कहाँ खो गया
ग़ुल खिले और कलियाँ हँसीं,बाग फिर ये जवां हो गया
तितलियों की जो देखी अदा भँवरों को फ़िर नशा हो गया
तेरे होठों ने कुछ न कहा , मुझसे भी तो कहा ना गया।
क़िस्सा तेरे मेरे इश्क़ का ख़ुद ब ख़ुद ही बयां हो गया।।
एक अहसान मुझ पे तेरा , जाने कैसे ये कब हो गया ।
मेरी रूह के लिये दिल तेरा ख़ुशनुमा आशियाँ हो गया।।
इश्क़ का ज़िक्र जब भी हुआ, हर इशारा इधर हो गया ।
बस हमें ही ख़बर न हुई और सबको पता हो गया ।।
ये असर उर्मि है इश्क़ का ,सारा आलम कहीं खो गया।
छुप के बादल में देखे हमें ,चाँद को जाने क्या हो गया ।।
चांदनी भिगोकर हमें, चांद जाने कहां खो गया ।
उर्मिला देवी उर्मि ,
साहित्यकार
छत्तीसगढ़,भारत