“तुमको हमारी उमर लग जाए”
दिन-भर भूखी प्यासी रह रात गए चांद को देख व्रत तोड़ने का नाम है ‘करवा चौथ’। लंबी उम्र पा सकने की धार्मिक घुट्टी पिला पति को आत्मबल प्रदान करने का नजरिया है इसके पीछे।
लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। महिलाएं स्वभाव से ही श्रृंगार प्रिय होती हैं। आभूषणों का शौक भी प्रत्येक महिला को होता है, इसलिए अपने विवाह के दिन की तरह सोलहों श्रृंगार के दोहराव की चाह भी इस व्रत के पीछे एक और छुपा हुआ कारण हो सकता है, ऐसा मेरा मानना है। यह महिलाएं ही हैं जो सोने की नथ और झुमके पहनने का लालच मन में लिए लिए नाक,कान छिदवाने का दर्द भी बड़े शौक से सह लेती हैं।
और वाकई जब सारे गहने और सुंदर सी साड़ी पहन वो छत पर आती हैं तो पति तो पति ! चांद भी पानी भरता हुआ नजर आता है उनके आगे।
मेहंदी लगाने वाले, चूड़ी पहनाने वाले, ब्यूटी पार्लर वाले या कपड़ों की दुकान वाले व्यापारी और सुनार बंधु ! सबको एहसानमंद होना चाहिए महिलाओं का, क्योंकि
अपने पति की जेब भले ही खाली हो जाए लेकिन उनके सिंगार-पिटार के शौक पर निर्भर कारोबारियों को वह बिल्कुल निराश नहीं करतीं।
भला हो एकता कपूर और ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ जैसी फिल्मों के निर्देशकों का जिन्होंने छोटे पर्दे और बड़े पर्दे के माध्यम से इस त्यौहार को इतना ग्लैमराइज कर दिया कि देश के घर-घर,गांव-गांव में इसकी धूम मची हुई है।
पहले यह त्यौहार सिर्फ पंजाबियों तक सीमित था, लेकिन अब तो हर प्रांत की महिलाएं इसे बड़ी खुशी और उत्सुकता के साथ मनाने में जुटी हुई हैं। इसमें हमारी पहाड़ी बहनें भी पीछे नहीं है।
अपने हरेला, बुढ़दिवाली,तुलसी विवाह, संकटचौथ जैसे पारंपरिक त्योहारों को दकियानूसी और पिछड़ा समझ उन्हें चुपके से एक किनारे खिसका, करवाचौथ अब सबका केंद्रीय त्यौहार बन गया है।
जिन्होंने पहले कभी नहीं रखा, उन उम्रदराज महिलाओं को भी सब्जी धोई जाने वाली छलनी की ओट से चांद देखने और पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ते हुए देखा जा रहा है।
अपनी ही जान-पहचान में दो-तीन साल पुरानी एक विवाहिता को कहते हुए भी सुना है- “सुनो ! कोक ले आना मेरे लिए। आपको पता है ना करवा चौथ के दिन पानी नहीं पीते ।”
अब तो बहुत सारे पति भी ऑफिस से जल्दी छुट्टी लेकर घर आ जाते हैं कि उन्होंने भी करवा चौथ का व्रत रखा है अपनी पत्नी के लिए।
इस तरह करवा-चौथ की रीति और परंपरा दिनोंदिन खूबसूरत होती जा रही है।बेहतरीन के साथ-साथ यादगार भी बन जाए अगर लॉकडाउन में मंदी के कारण आर्थिक विवशता के चलते कोई पति नयी साड़ी या उपहार न ला पाए तो भी पत्नी की मुस्कुराहट में एक इंच की बढ़ोतरी ही दिखाई दे, घटोतरी नहीं। जान लीजिए कि सुख- दुख के सच्चे साथी से बड़ा और कोई गहना नहीं। यही सच्ची खुशी है और इसी में दांपत्य की इज़्ज़त है।
प्रतिभा नैथानी
देहरादून