सम्मान

सम्मान

कुली ने मनोरमा से रुपये लिए और अपनी पहली बोहनी को मस्तक पर लगाकर ट्रेन से नीचे उतर गया | खुशी के कमल मन में सजाए मनोरमा पहली बार छब्बीस जनवरी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए इलाहाबाद से दिल्ली जा रही थी | पास वाली सीट पर बैठा युवक मोबाइल में न जाने क्या देखकर मुस्करा रहा था | कुछ देर बाद मनोरमा ने चाय वाले से एक चाय ली और खिड़की के सहारे बैठकर बाहर के नजारों में खो गयी |
हरी-भरी प्रकृति की शोभा अनूठी लग रही थी | गुनगुनी सी धूप में खेतों की छटा देखते-देखते मनोरमा अपने अतीत में डूबती गई, क्योंकि सबसे पहली बार वह देवेंद्र सिंह से अपने पिता विक्रम सिंह के खेत पर ही तो मिली थी | उस बाँके नौजवान को देखकर पहली ही नजर में वह अपना दिल दे बैठी थी | जब उसे पता चला कि देवेंद्र से उसके रिश्ते की बात चल रही है, तो वह शर्मा गयी | देवेंद्र तो पहली नजर में ही उस पर मोहित हो गया | देवेंद्र की माँ रोहिणी देवी ने बड़े प्यार से पूछा, “बेटी, क्या यह फौजी तुम्हें विवाह के लिए पसंद है?”
फौजी की पत्नी बनने की कल्पना मात्र से ही मनोरमा का मन झूम उठा था | उसने मुस्कराकर सबको अपनी मौन स्वीकृति दे दी | लम्बा, चौड़ा, खूबसूरत, बलिष्ठ फौजी देवेंद्र सिंह परिवार में सभी के मन को भा गया | उसके मुख पर शौर्य का एक अलग ही तेज था | चार दिन में ही दोनों का विवाह करवा दिया गया, क्योंकि देवेंद्र के पास छुट्टियाँ अधिक नहीं थीं |
स्मृतियों के कैनवास पर उभरे मधुर पलों के चित्रों ने मनोरमा को रोमांचित कर दिया | विवाह के बाद मनोरमा अपने पति के साथ इलाहाबाद आ गयी | देवेंद्र और मनोरमा के जीवन में अनूठा मधुमास छा गया था | प्यार के महुए ने उनके जीवन को अपनी मदमाती सुगंध से भर दिया | देवेंद्र ने मनोरमा के तन-मन पर अपना नाम सदा के लिए अंकित कर दिया |
अचानक मनोरमा की स्मृतियों में वह दिन उभर आया, जब पहली बार देवेंद्र उसे छोड़कर सीमा पर जा रहे थे | खतरों की आशंकाओं से भरा उसका मन रो उठा था | आँखें भर आईं | देवेंद्र ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा था,
“मनु, यदि तुम रोओगी तो मैं कैसे ड्यूटी पर जा सकूँगा | तुम एक फौजी की पत्नी हो | तुम्हें अपना दिल कड़ा करना होगा | यदि मैं एक वीर हूँ तो, तुम मेरी प्राण हो, मेरी प्रेरणा हो | मनु, सैनिक की पत्नी का जज्बा भी कम नहीं होता | उसकी हिम्मत की भी सब दाद देते हैं |”
मनोरमा ने रोते-रोते साड़ी के पल्लू से आँसू पोंछ लिए | वह पति की शक्ति बन मंद-मंद मुस्कराने लगी थी | अपनी नव विवाहिता पत्नी को छोड़कर जाते समय रोने का मन तो स्वयं देवेंद्र का भी कर रहा था, पर उसने अपने आँसू पी लिए थे | उसने मनोरमा के हाथों में लगी मेहंदी को चूम लिया | देवेंद्र मनोरमा को कुछ देर चुपचाप देखता रहा, फिर एकदम से जाने के लिए तैयार हो गया | रोहिणी देवी तथा मनोरमा ने दिल पर पत्थर रखकर उसे हँसते-हँसते विदा कर दिया था | उसके जाने के बाद न जाने कितनी देर उसकी यादों में खोयी हुई मनोरमा अकेली बैठी रोती रही थी |
ट्रेन में बैठे-बैठे मनोरमा को भूख लगने लगी | उसने खाना खाया और सीट पर आराम से लेटकर एक पत्रिका पढ़ने का प्रयास करने लगी, पर उसका मन तो पुरानी यादों में ही डूबा हुआ था | उसे याद आया, जब देवेंद्र को पहली बार पता चला कि वह माँ बनने वाली है, तब उसने अपार खुशी से मनोरमा को आलिंगन बद्ध कर लिया था और कहा था, “मनु, हमारी संतान भी अपने पापा और दादा कर्नल महेंद्र सिंह जी की तरह भारत माँ की सेवा करेगी |”
मनोरमा ने भी मुस्कराते हुए कहा था- “क्यों नहीं, सिंह परिवार का वारिस जो है |”
जब बेटा हुआ, तो उसका नाम बड़े चाव से उन्होंने शैलेंद्र सिंह रखा | शैलेंद्र अपने पापा का दुलारा और सबकी आँख का तारा था | बचपन से ही वह सैनिक बनकर शत्रुओं को मारने के खेल खेला करता |
ट्रेन की गति की तरह मनोरमा के विचारों की रील भी अपनी पूरी रफ्तार में चल रही थी | मनोरमा अपनी यादों के उस दौर में एकदम सहम गयी | उसे वह दिन याद आया जब सन १९९९ में पाकिस्तानी सेना ने अचानक ही कारगिल क्षेत्र में बमबारी शुरू कर दी थी | भारत को भी युद्ध की घोषणा करनी पड़ी थी | कारगिल युद्ध के लिए मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध भारतीय सेनाएँ कारगिल कूच कर रही थीं | कर्नल देवेंद्र सिंह को भी कारगिल की उन ऊँची चोटियों पर पाकिस्तान से युद्ध करने के लिए भेजा गया था | जहाँ पर मई के महीने में भी बर्फ होती है | कर्नल देवेंद्र सिंह अपने भारतीय सैनिकों के साथ अत्यधिक कठिन परिस्थितियों में पाकिस्तानी सेना का डटकर मुकाबला कर रहे थे | उन्हें कई बार तो भूखे-प्यासे रहकर घंटों रेंगते हुए आगे बढ़ना पड़ता था | बर्फीले ऊँचे पहाड़ों पर जहाँ जाना भी दुरूह था, वहाँ “ऑपरेशन विजय” के तहत भारतीय सैनिकों ने अपनी वीरता के झंडे गाड़ दिए थे | कितना कठिन और कितना भयंकर युद्ध था | दूरदर्शन पर रणबाँकुरे सैनिकों की वीरता के समाचारों को देखकर देशवासी भारतीय सेना के प्रति नतमस्तक हो जाते | उनका हृदय गर्व से भर उठता | सच, स्वदेश पर मर मिटने का कैसा जज्बा होता है, इन सैनिकों में | राष्ट्रप्रेम, त्याग, बलिदान और शौर्य के साक्षात दर्शन होते हैं, इन रणबाँकुरों में |
कर्नल देवेंद्र सिंह भी देश के गौरव और रक्षा के लिए इस युद्ध में रक्त की आखिरी बूँद तक दुश्मनों का संहार करने के लिए तत्पर थे | मनोरमा हर समय समाचार सुनती रहती | हर पल चिंता का पल था | हर समय सिर पर तलवार लटकी रहती | वह अपने पति और देश के सैनिकों के लिए भगवान से प्रार्थना करती रहती | उस कठिन परिस्थिति में सभी देशवासी एक थे |
एक दिन जब टाइगर हिल को जीतने के लिए युद्ध चल रहा था, कर्नल देवेंद्र सिंह बड़ी वीरता से युद्ध लड़ रहे थे | उन्होंने कई पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर कर दिया था, पर उसी समय उन पर किसी पाकिस्तानी सैनिक ने पीछे से गोली चला दी | वे लहूलुहान होकर गिर पड़े | कर्नल देवेंद्र सिंह ने अपना हाथ उठाकर पूरे जोश से बोला, “भारत माता की जय” और फिर घायल अवस्था में ही उठकर उन्होंने दुश्मनों पर गोलियों की वर्षा कर दी | कई पाकिस्तानी सैनिक वहीं मौत की नींद सो गए | युद्ध जारी था | उन्हें पेट पर पाँच गोलियां लगीं | वे गिरे और भारत माँ की रक्षा के लिए शहीद हो गए थे | अखबार, रेडियो और टीवी पर यह समाचार प्रकाशित, प्रसारित हुआ | पूरा देश अपने बहादुर सैनिक की मृत्यु से व्यथित था, पर उनकी वीरतापूर्ण शहादत पर सबको फ़क्र भी था | उनकी वीरता की गाथा पूरा देश गा रहा था |
जब मनोरमा ने यह समाचार सुना तो वह चुपचाप नीचे बैठ गयी | उसका संसार उजड़ चुका था, उसे अपने वीर पति की मृत्यु पर विश्वास ही नहीं हो रहा था | अपने प्यारे देवेंद्र की आवाजें उसके कानों में गूँज रही थीं | घर के हर कोने में उसे मुस्कराते हुए देवेंद्र की छवि दिखायी दे रही थी | शैलेंद्र ने अपनी माँ की ऐसी स्थिति देखी तो वह भी सहम गया | टीवी पर समाचार सुनकर बहुत से लोग रोहिणी देवी तथा मनोरमा को सांत्वना देने उनके घर पहुँच गए थे |
दो दिन बाद के दृश्य की याद आते ही मनोरमा की आँखें भर आईं | उसकी आँखों से मोती झरने लगे, जिन्हें वह ट्रेन में बैठी छुपा रही थी | तिरंगे में लिपटी देवेंद्र की लाश की याद आते ही दुख का पहाड़ टूट पड़ा था | वह अपना करुण क्रंदन रोक नहीं सकी थी | उस दिन वह अपने आपे में ही नहीं थी | देवेंद्र की माँ रोहिणी देवी अपने पुत्र के शव को देखकर निःशब्द सी बैठी थीं | दुखों से तो जैसे उनका पुराना गहरा नाता था | अपने पति कर्नल महेंद्र सिंह की शहादत के बाद उन्हें यह दूसरा झटका लगा था | उन्हें अपने सपूत को खोने की गहन पीड़ा थी, पर अपने लाल पर गर्व था, जिसने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था |
पूरा शहर कर्नल देवेंद्र सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़ पड़ा था | उनके दस वर्षीय पुत्र शैलेंद्र ने जब अपने पिता को श्रद्धांजलि दी तो आँसुओं का सैलाब उमड़ आया था | रिश्ते-नातेदार देवेंद्र की माताजी, मनोरमा को और शैलेंद्र को संभाल रहे थे | मनोरमा की माँग का सिंदूर उजड़ चुका था | कुछ औरतों ने उसे चूड़ियाँ तोड़ने और बिछुए उतारने के लिए कहा था, पर उसी समय मनोरमा की सासु माँ में न जाने कहाँ से इतनी शक्ति आ गई, कि उन्होंने जोर से कहा,
“मेरी बहू अपना कोई सुहाग चिन्ह नहीं उतारेगी | मेरा बेटा मरा नहीं है, वह सदा के लिए अमर हो गया है | वीर कभी मरते नहीं हैं |”
रूढ़िवादी औरतें अपना सा मुँह लेकर पीछे हट गईं |
गहन दुख के उन क्षणों में भी अपने शहीद पति कर्नल देवेंद्र सिंह पर मनोरमा को गर्व था | दुख के सागर में उठती हुई शहादत के सम्मान की लहरें उसे हौसला दे रही थीं | देवेंद्र की अंतिम यात्रा में पूरा शहर एकत्रित हो गया था | “भारत माता की जय” और “वीर शहीद अमर रहे” की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान था | भारत माँ के लिए अपना बलिदान देने वाले कर्नल देवेंद्र सिंह की वीरता का सभी गुणगान कर रहे थे | कर्नल देवेंद्र सिंह का अंतिम संस्कार पूरे सम्मान से किया गया | उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया था | उस समय सेना के परिधान में खड़े जवान भी भावुक हो उठे थे |
धीरे-धीरे सभी रिश्तेदार चले गए | मनोरमा को ऐसा लगता, जैसे दुख और परेशानियों के कैक्टस उसके इर्दगिर्द उग आए हों | मनोरमा अपनी सास और बेटे शैलेंद्र को संभालती | वह स्वयं अगरबत्ती की तरह तिल-तिल जलती, पर अपने परिवार को खुशियों की महक से भरने का प्रयास करती रहती | जब वह अन्य शहीदों के परिवारों के समाचार सुनती तो उसका हृदय द्रवीभूत हो उठता | घर-घर में पीड़ा व्याप्त थी | युद्ध की विभीषिका ने न जाने कितने परिवार उजाड़ दिए थे | न जाने कितनों को दिव्यांग बना दिया था | अनेक युवक, जिन्होंने युवावस्था में पदार्पण मात्र किया था, उन्हें युद्ध ने निगल लिया | भारत माँ के ये लाल भारत को विजय दिलाकर सदा के लिए अमर हो गए थे |
मनोरमा जान गयी थी कि जिंदगी कभी नहीं थमती | मृत्यु एक सत्य है तो जीवन दूसरा | मनोरमा घर की जिम्मेदारियों को निष्ठा से पूरा करने लगी थी | समय बीतता जा रहा था | उसने परिवार और देश की सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था | वह युवाओं को सैनिक बनने के लिए राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत प्रेरणात्मक भाषण देने विविध सभाओं और विद्यालयों में जाने लगी थी | वह अन्य शहीदों के परिवारों की भी सहायता करती | उसका गरिमामय व्यक्तित्व सभी को आकर्षित कर लेता था |
मनोरमा ने शैलेंद्र को सैनिक स्कूल में प्रवेश दिला दिया | जीवन की उस अकेली डगर में न जाने कितने उतार चढ़ाव आए | अनगिनत परेशानियों की नागफनी उसके सुख-चैन में काँटों से वार करती रहीं | जब कभी वह दुखी होती, तो वह अपनी व्यथा लेकर देवेंद्र के चित्र के सामने बैठ जाती | उसे लगता जैसे देवेंद्र पहले की तरह ही उससे कह रहे हों,
“तुम एक सैनिक की पत्नी हो, रोती हुई बिल्कुल अच्छी नहीं लगतीं | मैं तुम्हें हर परिस्थिति में मुस्कराते हुए देखना चाहता हूँ | परेशानियों से कायर डरते हैं और तुम कायर नहीं हो मनु |”
मनोरमा झट से अपने आँसू पोंछ लेती थी और एक असहज सी मुस्कराहट अपने होंठों पर ले आती थी | ट्रेन में भी उसने तौलिये से आँसू पोंछ डाले |
मनोरमा की सासु माँ बड़ी ही हिम्मत वाली आधुनिक विचारों की महिला थीं | वह छाया की तरह हमेशा मनोरमा के जीवन में सुख की शीतलता लाने का प्रयास करतीं | उन दोनों ने मिलकर बड़े प्रेम से शैलेंद्र को पाला था | जैसे-जैसे शैलेंद्र बड़ा होने लगा, जिम्मेदार और समझदार होता जा रहा था | वह अपनी दादी तथा माँ का खूब ध्यान रखता | बचपन से ही माँ और दादी ने वीरता की कहानियाँ सुनाकर उसमें देशभक्ति के संस्कार कूट-कूटकर भर दिए थे | देश के शत्रुओं और आतंकवादियों की बात चलते ही उसका खून खौल उठता था | उसमें भी अपने दादा और पिता की तरह सैनिक बनने की ललक जाग गयी थी | वह सीमा पर तैनात होकर देश की सुरक्षा करना चाहता था |
शैलेंद्र पढ़ाई में हमेशा अव्वल आया करता | वह अपने पिता की तरह ही हृष्ट-पुष्ट था | जिस दिन उसने आर्मी का अति कठिन शिक्षण-प्रशिक्षण पूरा किया, उस दिन मनोरमा और रोहिणी देवी के सारे सपने पूरे हो गए थे | शैलेंद्र ने अपने दादा तथा पिता का अनुसरण किया था | मनोरमा शैलेंद्र की याद आते ही गर्व की अनुभूति से खिल उठी | उसके मुख पर मानो सूरज ने तेज बिखेर दिया हो |
पैंट्रीकार से चाय वाला आया | मनोरमा ने उससे चाय ली और अपने बैग से कुछ नाश्ता निकाला | उसने पास वाली सीट पर बैठे युवक से भी नाश्ते के लिए आग्रह किया | एक बिस्किट लेते हुए वह युवक बोला,
“आंटी, आप दिल्ली किसी विशेष काम से जा रही हैं क्या?”
मनोरमा ने बड़ी खुशी और गर्व से बताया, “मेरे पुत्र लेफ्टिनेंट शैलेंद्र सिंह को राष्ट्रपति के हाथ से पुरस्कार मिलने वाला है |”
“अरे, आप लेफ्टिनेंट शैलेंद्र सिंह की माताजी हैं | उनकी वीरता के चर्चे तो सब जगह हैं | देखिए न, अकेले ही उन्होंने पाँच खूंखार आतंकवादियों को ढेर कर दिया | मैं सुबह मोबाइल पर उनके जीवन के विषय में ही पढ़ रहा था |” युवक अत्यधिक उत्साहित होते हुए बोला |
मनोरमा की छाती गर्व से फूल गयी |
“आंटी आपके पति भी कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे न | आप महान हैं | हिम्मत वाली हैं, जो आपने अपने पति को खोकर भी, अपने पुत्र को सेना में भेजा |” युवक ने बड़े ही सम्मान पूर्वक कहा |
“बेटा, भारत माँ की सेवा का सौभाग्य तो हिम्मतवालों को ही मिलता है |” मनोरमा ने गर्व से कहा |
युवक ने दुखी मन से कहा, “आंटी, मैं भी सैनिक बनना चाहता हूँ, पर मेरे माता-पिता तैयार नहीं हैं | उन्हें अपने पुत्र को खो देने का बहुत डर है |”
मनोरमा ने समझाते हुए कहा, “यदि सब ऐसा सोचेंगे तो, भारत माँ की रक्षा कौन करेगा ? बेटा, मृत्यु तो अवश्यंभावी है | भारत माँ और देश वासियों की रक्षा के लिए तुम्हारे जैसे वीर सपूतों की बहुत जरूरत है |” युवक ने मनोरमा को अपना मोबाइल नंबर देते हुए कहा, “आंटी क्या आप मेरे माता-पिता को भी समझा देंगी |”
मनोरमा ने कहा, “हाँ , मैं उन्हें प्रेरित करने का पुण्य काम अवश्य करूँगी | आज देश को सैनिकों की बहुत अधिक आवश्यकता है |”
बातों का सिलसिला तब टूटा जब किसी ने कहा, “दिल्ली स्टेशन आने वाला है |” कुछ देर में ही गाड़ी दिल्ली स्टेशन पहुँच गयी | लेफ्टिनेंट शैलेंद्र माँ को लेने ए.सी. प्रथम श्रेणी के डिब्बे में ही आ गया | माँ-बेटे के मिलते ही दोनों की आँखों में खुशी की चमक बिखरने लगी थी | जल्दी से वे सामान लेकर स्टेशन पर उतर आए | शैलेंद्र ने माँ के चरण स्पर्श किए और माँ ने उसे गले लगा लिया |
छब्बीस जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस के उत्सव में जब लेफ्टिनेंट शैलेंद्र सिंह का नाम पुकारा गया तो मनोरमा की आँखें खुशी से छलक पड़ीं | उसे लग रहा था, जैसे उसके जीवन की तपस्या संपूर्ण हो गयी | उसके जीवन की बगिया में बहुत से फूल खिल उठे थे | गणतंत्र दिवस के उस यादगार कार्यक्रम में मनोरमा को पल भर के लिए ऐसी अनुभूति हुई कि मानो शैलेंद्र के दादा कर्नल महेंद्र सिंह और पिता कर्नल देवेंद्र सिंह भी उसके समीप बैठकर इस गौरवमय पल को साक्षात जी रहे हैं | उसे लग रहा था, जैसे यह सम्मान मात्र शैलेंद्र को ही नहीं बल्कि उसके दादा, पिता और समस्त सैनिकों को मिल रहा हो | उस दिन भारत माँ स्वयं अपने पुत्रों की वीरता पर गौरवान्वित हो रही थी |

सुनीता माहेश्वरी
नाशिक,भारत

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