गाड़ी के दो पहिए
शोभा रसोई में से आवाज़ दे कर पीयू को बुला रही थी कि “बेटा, रसोई में आकर थोड़ी मेरी काम में मदद कर दे। थोड़ी सी बदाम काट कर दे दे।” पीयू रसोई में अपनी मस्ती में उछलते हुए पहुंची और बोली “क्या मां, आप क्या कर रही हो?” शोभा ने बड़ी खुशी के साथ मुस्कुराते हुए बोला “आज तेरे पापा रिटायर हो गए हैं और विदाई समारोह से घर आने वाले हैं तो, मैं उनके लिए गाजर का हलवा बना रही हूं। तू भी सीख ले ससुराल में काम आएगा। तुझे अब घर का सब काम ठीक से सीख लेना चाहिए, तुझे भी आगे जाकर अपना घर संभालना है। तभी पीयू हाथ में बदाम के टुकड़े लेकर उछालते हुए घूम घूम कर खेल रही थी। शोभा ने उसके हाथ से बदाम के टुकड़े लेते हुए उसे समझाया “देख बेटा गृहस्ती की बागडोर शादी के बाद महिला को ही संभालनी होती है और इसके लिए तुझे अभी से ही तैयार हो जाना चाहिए।” तभी पीहू मुंह उचकाते हुए बोली “मैं किसी के लिए फ्री में क्यों काम करूं?” तभी शोभा ने कहा “छी, ऐसे नहीं कहते। अपने घर की देखभाल करना किसी और के लिए काम करना नहीं होता। और तू यह सब के लिए इसलिए कर पाएगी क्योंकि तू सभी से प्यार करेगी।”
पीहू लापरवाही के साथ बोली “अच्छा मां” और हाथ में गाजर के हलवे की कटोरी लेकर बाहर सोफे पर आकर बैठ गई। तभी दरवाजे पर घंटी बजी।
शर्मा जी ऑफिस से आ गए थे। आज शर्मा जी की आंखों में अलग ही चमक थी, उनका चेहरा खुशी से दमक रहा था। वे ऑफिस द्वारा उनके रिटायरमेंट पर रखे गए ‘विदाई समारोह’ से वापस आए थे। जूते मोज़े खोलकर और हाथ धो कर वे भी पीयू के पास सोफे पर बैठ गए तभी शोभा उनके लिए पानी लेकर आयी और वही साथ में बैठ गई। शर्मा जी अपनी बढ़ई के किस्से सुना रहे थे। उन्होंने बताया कि किस तरह से उनका मान सम्मान हुआ और उनके करियर के लिए, अभी तक की हुई पदोन्नतियों के लिए उनकी कितनी सराहना हुई। कितनी बड़ी पार्टी रखी हुई थी, उन्हें फूलों का गुलदस्ता दिया गया, पेंशन का चेक मिला, शॉल उड़ाई गई और सभी कर्मचारियों ने उनका बहुत अभिवादन किया। उन्हें अपने आप पर बहुत गर्व हो रहा था। अपने परिवार को यह सब बताते हुए उनके चेहरे पर गर्व और घमंड के मिले-जले भाव थे । पीहू की मां और पीहू बड़ी खुशी के साथ उनकी यह सब बातें सुन रहे थे, उनके भी चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कुराहट थी। शर्मा जी पीयू की तरफ देख कर बोले “मैं अपनी मेहनत के दम पर यह सब हासिल कर पाया।” पीयू ने कहा “पापा आपकी सफलता में मम्मी को भी श्रेय है ना?” उसकी बात सुनकर शर्मा जी के चेहरे के भाव एकदम बदल गए और उन्होंने बड़ी ही हिकारत भरी भाव से कहा कि “इसमें तेरी मम्मी कहां से आ गई? उनका क्या योगदान है? जो किया है सब मैंने किया है सारी मेहनत मेरी है तो उसका श्रेय भी सिर्फ मेरा ही है। तेरी मम्मी के तो दिन भर घर में बैठकर मज़े होते थे।” इतना कहकर वह शोभा के बनाए हुए समोसे और गाजर का हलवा मजे से खाने लगे और शोभा को बोले “एक कप चाय बना कर ले आओ।” यह सब सुनकर शोभा के आंखों में आंसू आ गए। अपने लिए इस तरह के व्यवहार कि उसे अपेक्षा ना थी। एक साथ उसके दिमाग में कई बातें घूम रही थी। आज तक उसने कभी इस पर गौर नहीं किया कि उसने कितना योगदान दिया है, पर आज उसे हर एक बात याद आ रही थी। उसका रोज सुबह पांच बजे उठना, जल्दी-जल्दी शर्मा जी के लिए नाश्ता चाय बनाना, दोपहर के खाने का टिफिन बना कर देना, पीयू की देखभाल, उसकी स्कूल से लेकर बाकी सारी जिम्मेदारियां निभाना, बाजार से सारे सामान की खरीदी, बिजली का बिल भरना, सास-ससुर को दवा खाने जाने से लेकर उनकी हर जरूरत का ख्याल रखना और ऐसे अनगिनत कार्य जिसमें वह सुबह से लेकर शाम तक पूरी तरह से व्यस्त होती थी। इतना सोचते हुए उसकी नजर पीयू पर पड़ी। वो अपनी मां को बड़ी ही सवालिया नजरों से देख रही थी कि “मां, इसके लिए तुम मुझे समझा रही थी कि मैं घर का काम करूं ताकि एक दिन मेरा पति भी मुझे यही कहे कि तुम घर में ही तो रहती हो क्या करती हो?”
शोभा ने सोचा “बस नहीं, यह सही नहीं होगा। मैं अपनी बच्ची को ऐसी परवरिश नहीं दे सकती।” बस, इसी सोच के साथ उसने बड़े ठहराव के साथ एक लंबी सांस ली और खुद को संभाला। तभी शर्मा जी फिर से बोले “अरे, कब से कह रहा हूं एक कप चाय ला कर दो।”
तभी शोभा उठ कर खड़ी हुई और बोली “मैं भी आज रिटायर हो गई हूं।” इतना कहकर वह दूसरे कमरे में जाकर एक पुस्तक लेकर बैठ गई।
कुछ देर तक घर में सन्नाटा छाया रहा, जैसे कि तूफान के बाद की शांति हो। कुछ देर बाद शर्मा जी ट्रे में दो कप चाय लेकर शोभा के पास पहुंचे। टेबल पर चाय रखने के बाद, शोभा का हाथ अपने हाथ में लेकर बोले, “शोभा, मुझे माफ कर दो, मुझे मेरी गलती का एहसास हो गया है।” “पति-पत्नी गाड़ी के दो पहियों की तरह होते हैं, दोनों शादी की गाड़ी एक साथ मिलकर चलाते हैं, मैं अपने ही घमंड में यह बात भूल गया था। सच तो यह है कि, तुमने बाकी सभी जिम्मेदारीयां बखूबी संभाल ली और उनकी चिंता से मुझे सदा मुक्त रखा,तभी तो मैं ऑफिस में अपना काम ठीक तरीके से कर पाया। तुम हमेशा मेरा बराबर का सहयोगी बनकर रही हो तो फिर मेरी सफलता में तुम्हारा श्रेय भी बराबर का हैं। मुझसे भूल हो गई, मैंने तुम्हारे प्रेम पूर्ण समर्पण को ध्यान नहीं दिया। आज से हम दोनों मिलकर एक साथ घर का सब कुछ काम संभाल लेंगे।” शर्मा जी की आंखों में प्यार और पश्चाताप एक साथ दिखाई दे रहा था।
तभी शोभा बोली “बस भी कीजिए, मैं जानती हूं कि आप ह्रदय से बहुत ही अच्छे इंसान हैं। अच्छा यह सब छोड़िए, मुझे बताइए शाम को क्या बना दूं? क्या खाना है?”
शोभा के हाथ में चाय का कप देते हुए शर्मा जी मुस्कुराते हुए बोले “हम साथ मिलकर बनाएंगे।”
स्मिता माहेश्वरी
पुने, महाराष्ट्र
शिक्षा – चार्टर्ड अकाउंटेंट,एम.कॉम
लेखन की विधाएं – कविता, लघु कथा, कहानी, लेख
YouTube channel – “सौगात by स्मिता माहेश्वरी”