नवसृजन
“प्रकृति जैसे बदला ले रही है” टेलीविजन पे उद्घोषिका बारबार यह वाक्य बोले जा रही थी। यह सुनकर नियति सोच में पड़ गई “क्या माँ अपने संतानों से बदला लेती है?” परंतु परिस्थिति ऐसी तो ज़रूर है कि माँ अपने संतानों को मिल रहे कुकर्मों के फल को सकपकाकर, मूकदर्शक बन देख रही है।
नियति और उसके पति दोनों ही कॉविड पोज़िटिव पाए गए थे। एक दो दिन साँस लेने में परेशानी की वजह से अस्पताल में भर्ती हुए थे। शुरूआती दौर में भर्ती होने से उन्हें सारी सुविधाएं मिल गई थी और दोनों ठीक भी हो रहे थे।
परंतु इस दरम्यान मौत का तांडव दोनों ने अपनी आँखों से देखा और कर्णोपकर्ण महसूस किया। हमारे इर्दगिर्द सिर्फ़ हवा है अपितु लोगों को एक एक साँस का मोहताज देखा। उसके पासवाले बेड़ में निशा थी, उसकी चार महिने की बेटी को आया के भरोसे छोड़कर आई थी। पति की एकदिन पूर्व ही मौत हो चुकी थी।
” जीने की या जीवन के लिए जो मैं कर रही हूँ, यह संघर्ष, इसकी वजह एक ही है, परी, मेरी बच्ची। देखना मुझे कुछ ना होगा, ईश्वर माँ और बाप दोनों को थोड़ी छीन लेगा, चार महीने की बच्ची अनाथ नहीं होगी”। आँखों में खौफ़ और आशा के मिश्रित भाव लिए बड़बड़ा रही थी निशा।
” मुझे तो बच्चें सदैव बाधा लगें, मेरे विकास के पथ पर। परंतु जब तुम्हें अपनी बेटी के लिए कुदरत से लड़ता देख रही हूँ, जाने क्या अजब सा भाव मन में उमड़ रहा है।” नियति की आँखों में आँसू थे।
” देखो ना यहाँ ईश्वर ने मुझे मेरी सखी मिला दी, ये लो मेरी सारी डिटेल्स। डिस्चार्ज होने के बाद हम मिलेंगे और मेरी गायनेकोलॉजिस्ट से मिलेंगे। और मेरी परी से भी।” निशा धीरे धीरे बोल रही थी।
पता नहीं क्यों उस पहली रात नियति को गहरी और सुकून की नींद आई। उसने सपने में देखा निशा उसकी परी को उसकी गोद में डाल रही थी। परी के कोमल हाथों का स्पर्श उसके चेहरे को हो रहा था।
” संभालना मेरी परी को” निशा चिल्लाई और अचानक नियति की आँखें खुल गई। सहसा देखा तो पासवाले बेड़ पर कोई नहीं था। नर्स ने बताया कि रात के दो बजे अचानक से निशा को हार्टअटैक हुआ, वो चल बसी।
स्तब्ध रह गई नियति, उसके कानों में बारबार गूँज रहा था, संभालना मेरी परी को।
एक हफ़्ते बाद, वो और उसके पति होस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर घर आ गए। नियति बड़ी गुमसुम सी रहने लगी थी। राज उसे देख सहम सा गया और पूछने लगा ” क्या बात है नियति, जी में क्या है?” उसने बड़े प्यार से सहलाया उसे।
” राज, मुझे परी को संभालना है, निशा मुझे हिदायत देकर गई है।” कहकर फूटफूटकर रो पड़ी नियति।
और तुरंत ही राज ने बड़ी फूर्ती से निशा की डिटेल्स के सहारे ले कर परी को ढूंढ निकाला।अनाथ बच्चों के बालविकास केन्द्र में रखा गया था उसे। सारी विधि पूरी करने के बाद दोनों ने परी को गोद ले लिया।
और गोद में लेते ही, परी के कोमल और निर्दोष स्पर्श से नियति में सृजन हुआ एक माँ का। ईश्वर कभी छोटे बच्चों को अनाथ नहीं रखता और जहाँ विध्वंस होता है वहीं माँ प्रकृति करती है नवसृजन।
जिग्ना मेहता
शिक्षा:- बी.एस.सी
प्रकाशित पुस्तकें:- उनका एकल संग्रह ” आविर्भाव” तथा “पंचरश्मि”,”सागर के मोती”, “इश्क़ ए वतन”, “झरोखा” “बाउन्डेड एहसास” इत्यादि है।
लेखन की विधाएँ:- छंदोबद्ध, मुक्त छंद, लघुकथाएं, बहर में ग़ज़ल, हाइकू,तांका आदि।