इन्तजार
गत चार सालों से उर्मि रांची के मानसिक चिकित्सालय में जिन्दगी के मनहूस दिन काट रही है । हर शाम उसे किसी न किसी का इन्तजार रहता है । आँखें दरवाजे पर लगी रहती हैं शायद कोई आ जाय । किसी मरीज के घरवाले आते हैं किसी के रिश्तेदार मिलकर जाते हैं , पर उसे देखने , उससे मिलने कोई नहीं आता । जैसे – जैसे शाम ढलती है , निराशा का अन्धकार घिरने लगता है , वह भागने – दौड़ने लगती है और बड़बड़ाती है – ” आज भी कोई नहीं आया , किसी को मेरे लिये प्रेम नहीं है । सबके घरवाले मिलने आते हैं , हालचाल पूछने आते हैं , मेरे घरवालों को अपने काम से फुर्सत नहीं । मुझे देखने की इतनी ही चाह होती तो वे यहाँ भर्ती करके क्यों चले जाते ? मैं पागल नहीं हूँ । नहीं हूँ मैं पागल” ।
वह सोचने लगी – भैया मुझसे कितना प्यार करते हैं । मुझे अपनी बेटी की तरह पाला पोसा पर शादी के बाद मैं इतनी पराई हो गई ? वे मेरे लिये कितने खिलौने लाते थे । कितने प्यार से कहानी सुनाते थे । आज मैं किस हालत में हूँ यह भी जानना नहीं चाहते ? यहाँ आकर इतनी मीठी – मीठी बातें करते हैं फिर घर जाकर क्यों भूल जाते हैं ? हाँ , भैया ऑफिस के काम से बाहर जाते रहते हैं , पर भाभी तो आ ही सकती हैं । पिछली बार आई थीं तो उर्मि ने उन्हें झकझोरते हुए कहा – ” मुझे घर ले चलो न भाभी । मैं यहाँ नहीं रहूँगी । मैं कभी किसी को भी तंग नहीं करूँगी . . . . बस मैं शैला के साथ रहूंगी . . . मैं उसकी माँ हूँ । मुझे उससे अलग न करो । मैं उसे गोद में लेकर बहुत प्यार करना चाहती हूँ . . . इतना प्यार करूँगी . . . . इतना प्यार करूँगी कि कोई माँ इतना प्यार नहीं कर सकेगी – बस ले चलो मुझे । ले चलो न भाभी । ससुराल से कोई मिलने नहीं आते क्यों..?
उर्मि की बहन शिवानी और मायके से लोग महीने में एक बार आकर उससे मिलते थे । उसे ‘ यूरोपियन ‘ वार्ड में रखा गया था ताकि अच्छा भोजन मिले , विशेष देखभाल हो । उर्मि के तीन भाई थे , पर कोई भाभी उसे अपने घर रखने को तैयार नहीं थी । घर की सुख शांति सबको प्यारी होती है । घरवाले इसलिये आना नहीं चाहते थे कि वह हर एक के साथ घर जाने की जिद करने लगती थी ।
पिछली बार जब भाभी शिवानी के साथ उर्मि से मिली वहाँ के पागलों की मानसिक हालत को देखकर वे डर गई थीं। सबकी अपनी पीड़ा थी , अपना संसार था , अपनी सोच थी । जैसे ही शिवानी आई . एक पागल औरत ने उसे कसकर पकड़ लिया – ” तुम इतनी सुंदर क्यों हो ?तुम क्यों इतनीसुन्दर ? बताओ , मैं तुम्हें मार डालूंगी . तुम्हें देखकर वह हमें छोड देगा । मीता भी सुन्दर थी , इसलिये उसने मीता से शादी कर ली । तुमसे भी शादी कर लेगा । भाग जाओ यहाँ से . . . . भाग जाओ , मैं कहती हूँ न । भाग जाओ ” , और वह उसका गला दबाने लगी । लोगों ने किसी तरह शिवानी को बचाया । वह रोने लगी , भाभी ! भाभी !! चिल्लाने लगी थी|
हर दिन वह पागल औरत अपना श्रृंगार करती रहती थी । कभी संवारती , चूड़ी बदलती , सिर पे आंचल रखती , बिंदी लगाती और मांग में सिंदूर भरकर कहती – ” मैं सुन्दर लगती हूँ न ? पहले तुम मुझे कितना प्यार थे । अब क्या मैं सुन्दर नहीं लगती ? मीता क्या ज्यादा सुंदर है ? तुम क्यों मिलने जाते हो ? वह चुडैल है ।उसने तुम्हें मुझसे छीना है ।मार डालूंगी । मैं उसे नही छोडूंगी ‘ , यह कहते कहते जो औरत सामने मिलती उसका गला दबाने लगती थी ।
। सब उससे डरते थे , कोई उससे बात नहीं करता था । वह रात दिन बड़बड़ाती रहती थी । बाल नोचने लगती और चीखने चिल्लाने लगती थी । इससे उसे बन्द करके रखा जाने लगा है ।
इस घटना के बाद शिवानी ने आना छोड़ दिया । वह घर पर शैला की देखभाल करती थी । उसे सजाती संवारती खाना खिलाती और उसकी हर जिद पूरी करती थी । शैला भी शिवानी को ही माँ समझती थी । जब कभी शैला सो जाती , वह एकटक उसका चेहरा निहारती और सोचती -‘यह कितनी भोली है , पर साथ ही कितनी अभागन है । इसे न पिता का प्यार मिला , न माँ की ममता । पिता इसे याद भी नहीं करते और यह एक साल की हुई तो माँ पागल – सी हो गई । दरअसल वह पागल नहीं थी पर हालात ने उसे पागल बना दिया था । दीदी को न जीजा ने समझा , न ससुराल वालों ने । सबों ने उसे बस पागल करार दिया और पागलखाने भेज दिया ।
अभी छ : साल पहले दीदी की शादी कितनी धूमधाम से हुई थी । वह जीजाजी का फोटो तकिया के नीचे रखती और बार – बार निकाल कर देखती । शिवानी से पूछती – ” देख न शिवानी ! कितने सुंदर लग रहे हैं ! मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने बड़े घर में मेरी शादी होगी । ये मुझे प्यार करेंगे न शिवानी ? मैं उन्हें क्या कहकर बुलाऊँगी ? उनसे क्या बातें करूँगी ? कैसे बातें करूँगी , बता न । ” दिन रात दीदी सपने में खोई रहती थी ।
जीजाजी कॉलेज में प्रोफेसर थे अंग्रेजी के , और चाहते थे कि उनकी पत्नी भी खूब पढ़ी लिखी हो , पर दीदी अभी इन्टर में ही पढ़ रही थी । देखने में भले बहुत सुंदर न थी पर मन की भोली , बड़ी हसीन और चंचल थी । शादी के मंडप में जब गहने चढ़ाये गये तो लोगों की आँखें फटी की फटी रह गई थीं । अकेला बेटा था , सब कुछ इसी का तो था । माँ ने हंसी खुशी डोली में बेटी को विदा किया और कहा – “ मेरी बेटी इतने बड़े घर में गई है , राज करेगी वहाँ ! ”
शादी के बाद उर्मि जब ससुराल गई तो अपने मधुर स्वभाव से सबका मन मोह लिया । सास की दुलारी , पिया की प्यारी उर्मि अपनी किस्मत पर फूली नहीं समायी थी ।
जब शैला का जन्म हुआ तो घरवाले खुश थे , पर सास की इच्छा थी कि बेटा होता तो कुल का चिराग होता , बेटी से कहीं वंश चलता है ? हमारी तीन – तीन बेटियाँ हैं पर शादी के बाद सब पराई हो गईं । बेटी तो पराया धन होती ही है । बेटे की चाह ने न जाने समाज में कितनी बहुओं की ज़िंदगी तबाह कर दी।कितनों को तलाक़ का दंश भोगना पड़ा ।क्या केवल इसके लिये औरत एकमात्र ज़िम्मेदार है? पर हर सास को वंश चलाने के लिए बस केवल बेटा चाहिए पर यह औरत के बस की बात नहीं है,एक औरत होकर भी क्या वह नहीं जानती ?
उर्मि को जब शैला हुई तब काफी परेशानी हुई थी और लेडी डॉक्टर ने उसके पति महेन्द्र से , कह दिया था कि इस बार तो उसकी जान बच गई पर अब माँ बनने पर उसकी जान को खतरा हो सकता है ।
महेन्द्र ने यह बात माँ को नहीं बताई क्योंकि वह जानता था कि माँ पर इस बात की कैसी प्रतिक्रिया होगी । पर जैसे खैर , खून , खाँसी और खुशी नहीं छुपती वैसे ही यह बात भी नहीं छिपी । एक दिन महेन्द्र की माँ को इस बात का पता चल ही गया और उर्मि की भाग्यलिपि पर कलिमा छा गई । –
माँ गुस्से से पागल हो गईं कि यह बात जान बूझकर उनसे क्यों छिपाई गई ? यह षड़यन्त्र क्यों किया गया ? इतनी बड़ी बात हो गई और उनसे इसकी चर्चा भी नहीं की गई । उनके कुल का तो भविष्य ही अंधकार मय है । उनका वंश कैसे चलेगा ?
उर्मि के जीवन में दुर्भाग्य के बादल छाने लगे । घरवालों का रुख बदल गया । हर बात पर सास ताने देती , उसे अभागन कहती । वह इस चिंता में रहने लगी कि कैसे इसे घर से हटाकर महेन्द्र की दूसरी शादी कर सकें ,जिससे उनके घर का चिराग पैदा हो सके ।
सास इसे पागल करार के हटाना चाहती थी ।
ससुराल वालों के व्यवहार से उर्मि बहुत दुखी रहने लगी , ।
कितना प्यारा बचपन था , भैया भाभी कितना प्यार करते थे । उर्मि जब चार साल की थी तब बड़े भैया की शादी हुई थी । शहनाई बज रही थी । भैया दुल्हा बने थे । बहुत से लोग घर पर आये थे । जो आता वही उर्मि के लिये चाकलेट एवं खिलौने लाकर देता था । भाभी को देख उसने पूछा – ” माँ । ये कौन है , कहाँ से आई है? चुपचाप क्यों बैठी है , ?
कमरे में भाभी के आते ही वह गोद में बैठ गई । कभी ,घू्ंघट उठाती, कभी टीकादेखती छूकर नथिया देखती , कंगन उतारकर खुद पहनती और भैया को देख भाभी के आँचल में छिप जाती थी । भाभी के साथ रहती ,खेलती और रात में उन्हीं के पास सो जाती थी । सवेरे दूसरे कमरे में अपने आप को पाकर खूब रोती थी । “ भाभी ने मुझे क्यों यहाँ भेजा बताओ ?
” एक दिन भाभी उसके लिये पायल लेकर आई । अब वह सारे दिन भाभी के कमरे में बैठी श्रृंगार करती और कहती – ” मेरी भी शादी करा दो न । मैं भी दुल्हन बनूंगी , मेरा दुलहा कहाँ है ? ” भाभी ने कहा – ” वह अभी पढ़ रहा है । ” उसने कहा – “ उसे पढ़ने दो ,मैं दूसरे से . . . . तब तक शादी कर लेती हूँ ।”
समय बीतता गया । अब वह स्कूल की पढ़ाई पूरी करके बहुत खुश थी । कॉलेज में दाखिला लेने पर उसकी दोस्ती शेखर से हुई । बड़ा ही सीधा , सादा ,नेक इन्सान था । धीरे – धीरे दोस्ती बढ़ने लगी । अब वह अपने मन की सारी बातें उससे कहती
और वह भी बड़े गौर से सुनता । शेखर की माँ भी उर्मि से बहुत प्यार करती थीं । दरअसल शेखर की बहन शीला , उर्मि की सहेली थी । वह भी चाहती थी कि उर्मि उसकी भाभी बनकर घर में आती तो कितना अच्छा होता ।
शेखर के साथ बढ़ती दोस्ती देख भैया भाभी ने अंकुश लगाया । उर्मि की दुनिया में शेखर ने जगह बना ली थी पर उच्च शिक्षा प्राप्त करने वह अमेरिका चला गया ।
। भाभी की आँखों ने उर्मि के हृदय की उदासी ताड़ ली और उर्मि की शादी के लिये उन्हें महेन्द्र जैसा सुंदर सजीला इकलौता लड़का भी मिल गया । उर्मि ने भी अपनी जिन्दगी से समझौता कर लिया । शादी हो गई , माँ भी बन गई ।
जीवन का अगला मोड़ वह नहीं जानती थी कैसा होगा । उर्मि के भाग्य पर वज्रपात हुआ । महेन्द्र के जीवन में भी एक लड़की आ गई । वह बड़ी शोख चंचल और चालाक थी , उसने अपने प्रेम जाल में महेन्द्र को फंसाना चाहा और वह भी उसके रूप जाल में फंसता गया । उर्मि अपनी बिटिया की देखभाल में इतना लगी रहती थी कि पति से धीरे-धीरे दूर होने लगी।
इधर सास के ताने से परेशान , उधर महेन्द्र का रुख भी बदला हुआ था । उसका जीवन बस शैला पर केंद्रित हो गया । उसे पता ही नहीं चला कि उसके आशियाने में कब आग लग गई , खुशियों ने कब उसका दामन छोड़ दिया ! शैला ही अब सबकुछ थी , वह उसी के साथ हंसती – बोलती , गाती थी । प्यार करते – करते वह उसे इतने जोरों से दबा देती थी कि वह नन्ही सी जान रो पड़ती । चीखने पर उसे और गुस्सा आता था , वह उसे पटक देती और कहती ” चुप रहो ।”जब शैला सोयी रहती तो उसे निहारती रहती थी और कहती“ घर में कोई हमसे बात नहीं करता तुम भी सो जाती हो ? ” वह उसे लेकर निकल जाती और घंटो पार्क में बैठी रहती थी । उसका मुख चूमती , छाती से लगाती ।
अचानक उर्मि के छोटे भाई की मृत्यु कार दुर्घटना में हो गई । यह दुखद समाचार पाकर उर्मि शैला को लेकर मायके चली गई । छ : महीने बीत गये । उर्मि की माँ किसी के यहाँ सत्यनारायण पूजा में गई थीं , वहाँ उन्हें पता चला कि महेन्द्र की माँ बेटे की अब दूसरी शादी कराना चाहती हैं क्योंकि वे कुल का वारिस चाहती हैं ।यह सुन मॉं अवाक् रह गईं । क्या करें , क्या न करें , कुछ समझ में नहीं आ रहा था । घर आईं तो देखा उर्मि महेन्द्र को तन्मय होकर खत लिख रही है । उसने बहुत से खत लिखे पर कोई जवाब नहीं आता था । सोचा महेन्द्र अपने काम में व्यस्त होगा पर शैला के जन्मदिन पर भी जब वह नहीं आया तब उसे चिन्ता होने लगी थी। उसकी माँ बात की गहराई जाने बिना उससे कुछ कहना नहीं चाहती थीं ।
जब बड़े भैया ने यह सुना तो उर्मि को उसके ससुराल पहुंचा दिया । उर्मि ने यहाँ देखा कि घर का माहौल ही बदला हुआ है सब कानाफूसी करते हैं पर उसे देखते ही चुप हो जाते हैं । महेन्द्र भी उससे कटा – कटा रहता है । समझ में नहीं आता कि उसका कसूर क्या है !
जवान भाई की आकस्मिक मृत्यु से उसके दिल में सदमा सा बैठ गया था । वह अकेले कमरे में खूब रोती पर कोई उसे सांत्वना देनेवाला नहीं था । वह अपने ही घर में इतनी पराई कैसे हो गयी ? जैसे पतझड़ में पेड़ के सारे पत्ते झड़ जाते हैं वैसे ही बदनसीबी की बयार ने जिन्दगी के सारे रिश्ते तोड़ डाले । पिता तो बहुत पहले चल बसे थे । । मायके में इज्जत माँ – बाप के रहते ही होती है । एक शैला ही थी जिसे छाती से चिपकाकर घंटो रोती रहती । उसकी सास शैला को हमेशा अपने पास रखती ताकि बहू घर का काम करे । वह जानती थी कि शैला उर्मि की कमजोरी है उसके लिये वह कुछ भी कर सकती है ।
शैला सास के पास थी । रात में उर्मि को लगा कि वह किसी तूफान में घिर गई है । इस तूफान में उसका घर खो गया है , उसका सबकुछ लुट गया है । वह शैला ! शैला ! चिल्लाने लगी । उसे याद आया उसकी सास उसे उठाकर अपने पास ले गई थी , महेन्द्र आफिस के काम से गये थे । वह सास का दरवाजा पीटने लगी – ” शैला को मुझे दीजिये । मेरी बेटी है । आप शैला को भी मुझसे छीन लेना चाहती हैं , पर क्यों ? ” जोर – जोर से चिल्लाने लगी” आवाज सुनकर पड़ोसी जग जाते . पूछते ” क्या बात है ? ” सास कहती – ” भाई के गम में पागल हो गई है एक पागल औरत बच्चा कैसे संभालेगी ? ”
अचानक माँ की बीमारी की खबर पाकर शेखर भारत आया । माँ ने बताया कि उर्मि की शादी इसी शहर में महेन्द्र से हो गई , पर ससुराल में वह खुश नहीं है । वह महेन्द्र के ऑफिस गया और उर्मि के बारे में बातें करने लगा ।
यह सब क्यों और कैसे हो गया?तुम वंश
चलाने के लिए दूसरी शादी क्यों करना चाहते हो? मॉं को समझाओ,बेटाऔर बेटी
में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता ।शैला है न।
तुम दोनों के प्यार की निशानी है,उसे
बेटा समझो।बेटी भी कुल का नाम रौशन
करती है ।समय के साथ सोच बदलने से ही परिवार और समाज का कल्याण होगा ।
तुम ठीक कहते हो ।मैं दूसरी शादी
नहीं करूँगा । मैं भ्रम में था !तुम उर्मि से मिलो वह बहुत दुखी है ।’
महेन्द्र ने कहा कि छोटे भाई की अचानक मौत से उसे काफी सदमा पहुँचा है । एक दिन शेखर उर्मि से मिलने आया । शेखर ने पूछा – “ उर्मि , तुम कैसी हो . . . – ” तुम्हें कैसी लगती हूँ . . ?
लगता है तुम्हारे अन्दर कोई पीड़ा है . . . . । ‘ ‘ – ” कैसी पीड़ा . . . ? ” – यह तो तुम ही बता सकती हो . . . । ”
उर्मि – ” मैं तो बस कोरे कागज का एक टुकड़ा हूँ . . . . लगा था ,तुम इस पर प्यार के दो बोल लिखोगे . पर मेरा नसीब ही शायद तुम्हारे लायक़ नहीं . . था”
उसकी आँखें सजल हो गईं । ”
हाँ ! महेन्द्र ने कुछ लिखा था , पर अब मिटाना चाहता है । वह दूसरी शादी करना चाहता है ”
पर क्यों ? ”
‘घर वालों को कुल का दीपक चाहिए । ‘जानते हो न कुछ पुरुष ऐसे होते हैं ,जिन्हें हर दिन लिखने के लिए एक नया कागज चाहिये . . . . क्योंकि हर दिन वह कुछ नया लिखना चाहता है, हर मौसम में उसे कुछ नया . . ” कहते कहते उर्मि रो पड़ी ।
शेखर को लगा कि उसके दिल का फोड़ा फूट गया है और कब से उसमें से मवाद रिस – रिस कर बह रहा है । उर्मि के आंसू न जाने क्यों उससे देखे न गये । वह उसके गालों से बहते अश्रुधार को पोंछ भी तो नहीं सकता था ।
सब ठीक हो जाएगा,मैंने तुम्हारे पति को समझाया है ।उसे अपनी गलती का अहसास हो गया है ।धैर्य रखो ।
उसने कहा – ” मैं जाता हूँ उर्मि ! तुम अपना खयाल रखना । ”
” मेरी कहानी सुने बिना चले जाओगे . . . ? ”
उर्मि की आँखों में प्रश्न उभर आया और उसके मुख पर करुण व्यथा तैर आई ।
” तुम अपनी कहानी लिखकर रखना , मैं जरूर पढूंगा । ”
इस बार जब शेखर भारत आया तो उसकी बहन ने बताया कि मानसिक आरोग्यशाला में उर्मि की मृत्यु हो गई । वह उससे मिलने कभी – कभी जाती थी ।वह पागल तो नहीं थी पर पागलों की तरह चिल्लाती थी – ” मेरी बच्ची मुझसे मत छीनो . . . . | मेरी शैला मुझे दे दो । मैं पागल नहीं हूँ , नहीं हूँ मैं पागल !’
‘और एक दिन सबकुछ ख़त्म हो गया।इसी ग़म में वह दुनिया छोड़ चली गई ।वह आपका इंतज़ार करके थक गयी पर आपने तो बहां शादी कर ली। उसकी कभी याद भी नहीं आई आपको ?’
उसके दर्दनाक मौत की खबर अखबार में शीला ने पढ़ी । वह जब वहाँ गई तब
नर्स ने बताया कि चार पाँच दिनों से उर्मि को तेज बुखार था , वह न जाने क्या क्या अड़बड़ बोलती रहती थी । कुछ दिनों पूर्व ऐसा लगता था कि ठीक हो रही है . . ‘. . कहती थी कि वह पागल नहीं है , वह घर जाना चाहती है । नर्स ने घरवालों को इसकी सूचना भी दी और कहा कि ” घर जाने से अपनों का प्यार पाकर वह ठीक रहेगी . . . पर कोई उसे लेने नहीं आया . . . . न उसके पति आये , न भैया – भाभी आये । धीरे – धीरे वह जिंदा लाश बन गई ,पर उनलोगों का इन्तजार करती रही । ‘
मरने के पहले वह बड़ी बेसब्री से किसी शेखर बाबू का इन्तजार कर रही थी – कहती थी , ” वह जरूर आयेगा . . . . देखो न सिस्टर ! मेरी कहानी पूरी हो गई – वह इसे पढ़ेगा . . . . पर वह भी नहीं आया । वह आये तो यह डायरी उसे दे देना । दे दोगी न सिस्टर ? उर्मि की आँखों से आँसू छलक पड़े थे ।’
। यह कहकर सिस्टर ने डायरी शीला को दे दी और कहा कि – ” ये किसी ‘ शेखर बाबू ‘ के नाम की है . . . वे मिलें तो आप इसे जरूर दे दीजियेगा . . . ” शीला ने डायरी अपने हाथों में ले ली , उसे खोला उसमें एक कहानी थी , जिसका शीर्षक था – ” इन्तजार ‘ ।
डॉ आशा श्रीवास्तव
जमशेदपुर, झारखंड