फ़रिश्ता

फ़रिश्ता

सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर लेटी हुई सुशीला काफ़ी कमजोर लग रही थी।परन्तु उसकी आँखों में एक अद्भुत चमक थी। वह अपने नवजात शिशु को जो बग़ल के पालने में लेटी थी , उसे ममता से भरी वात्सल्य से एकटक निहार रही थी।उसका पति हरिया उसके पास ही बैठा था।हरिया दिहाडी मज़दूर था। सुशीला भी ईंट ढोने का काम अपने पति के साथ करती थी।

डाक्टर और नर्स जो भी सुशीला के पास आता वह उस नन्ही सी जान को निहारे बिना नही रह पाता था।डाक्टर मैडम ने तो सुशीला से यहाँ तक बोल दिया कि इस बच्ची की आँखें तो बोलती है। कितनी ख़ूबसूरत है इसकी आँखें , मैं तो और किसी की इतनी अच्छी सुन्दर आँखें किसी की नही देखी।यह तो मृगनयनी है।

सुशीला यह सुन मंद मंद मुस्कुरा देती । वह मन ही मन सोचती रही हो कितनी भी बला की सुन्दर मेरी बेटी , ईश्वर ने तो उसे ख़ूबसूरती नवाज़ा हो , पर करना तो उसे वही काम है जो उसके माँ बाप करते है।

दो रोज़ बाद सुशीला को अस्पताल से छुट्टी मिल गई।कुछ ही दिनों के बाद सुशीला काम पर जाने लगी। बच्ची को भी साथ काम पर ले जाने लगी।
पतले से कपड़े को बिछा कर उस पर लिटा देती थी।

दिन बीतने लगे , बिल्डिंग पूरी होने को आ गई। सुशीला और हरिया मन ही मन सोचने लगे कि अब किसी और जगह काम ढूँढना पड़ेगा ।

बच्ची की नाम सुशीला ने नैना रख दिया ।नैना बेहद ख़ूबसूरत दिखती थी। भले ही वह मटमैले कपड़े पहनती थी।वह इधर उधर ठुमकती चलती थी।
नैना में ग़ज़ब की एक कशिश थी।
उसके साथ कोई भी बिना बोले या फिर खेले हुए आगे नही बढ़ सकता था। वह मज़दूर समाज में सबकी चहेती बन गई थी।नैना की तोतली बोली कानों में मिश्री सी मीठी लगती थी।समय के साथ नैना भी बड़ी होने लगी।

हरिया और सुशीला अब दूसरी जगह काम करने लगे थे।एक बड़े से अपार्टमेन्ट के पास ही दूसरे टावर का काम चल रहा था।
नैना भी अपने माँ पिता के साथ जाती थी।सुशीला एक पारले जी दो रूपये के बिस्कुट का पैकेट उसके हाथ में थमा देती थी और काम पर चल देती थी।

बग़ल के अपार्टमेंट में विशाखा रहती थी।वह एक कालेज में शिक्षिका थी।
रोज़ कालेज जाते समय उसकी नज़र नैना पर पड़ती थी।नैना में न जाने कौन सा आकर्षण था कि उसे देख कर विशाखा रूक जाती थी और निहारती थी। वह कभी कभी उसके हाथ में फल मिठाई वग़ैरह दे देती थी।दोनों के बीच एक अनोखी अनकही बंधन की डोर बंध गई थी जिसके लिए कोई शब्द नही था।

एक रोज़ विशाखा कालेज जाने के लिए निकली तो बनते हुए बिल्डिंग में काफ़ी शोर हो रहा था।
सभी जूट भीड़ लगा कुछ देख रहे थे।
विशाखा भी ख़ुद को रोक नही पाई। वह भी उस ओर चल दी।वहाँ का नजारा देख विशाखा के होश उड़ गए।वह पसीने से तरबतर हो गई। उसने देखा हरिया और सुशीला दोनों ज़मीन पर लहुलूहान निर्जीव पड़े थे।
नैना ज़ोर ज़ोर से रो रही उठो माँ की रट लगा रही थी। परिस्थिति जो थी वह बेहद दर्दनाक थी।

विशाखा को बात करने पर पता चला कि , सुशीला ईंट लेकर चढ़ रही थी और लड़खड़ा गई यह देख हरिया भी पीछे दौड़ा बचाने के लिए, पर दुर्भाग्यवश वह भी फिसल कर सुशीला के साथ दसवाँ माला से गिर गया।गिरने से दोनों की मौत हो गई।
कुछ देर में पुलिस आई और दोनों को पोस्टमार्टम के लिए लेती गई।
बेचारी नैना को कुछ नही समझ में आ रहा था वो अपने आँखों में आसंु लिए टुकूर टुकूर ताक रही थी। आज कोई भी उसे गले नही लगा रहा था सारे मज़दूर तमाशबीन बन उसे देख रहे थे।विशाखा एक बेहद संवेदनशील महिला थी । उसे नैना का दुख नही देखा गया।
वह अचानक भीड़ को चीरती हुई नैना के क़रीब गई और उसे गोद में ले ली।
तत्क्षण विशाखा ने निर्णय लिया कि वो नैना को गोद लेगी।काग़ज़ी औपचारिकता पूर्ण कर वो नैना की परवरिश करने लगी

नैना विशाखा के साथ जल्द ही घूल मिल गई।
जितनी सुंदर नैना दिखती थी उतनी ही उसकी बुद्धि कुशाग्र थी।विशाखा की मेहनत और अच्छी परवरिश पाकर नैना बड़ी हो गई। आज नैना सरकारी अस्पताल में डाक्टर है।
विशाखा की उदारता के कारण नैना की जीवन बिल्कुल ही बदल गई। नैना के जीवन में विशाखा एक फ़रिश्ता बन कर आई।

अनिता सिन्हा
वदोदरा, गुजरात
शिक्षा : स्नातकोत्तर (अंग्रेज़ी)
लेखन विधाएँ : कहानी व कविता

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