एक गुफ़्तगु

एक गुफ़्तगु

जिंदगी के पल के साथ

सोचूँ बैठु आज तुम्हें
लेकर रूबरू
गुलाबी इस ठण्ड की
चटक धुप में थोड़ी देर…!

हो हाथ में गर्म अदरक
की कड़क चाय
और उलझाऊँ तुम्हें
कुछ सवालो के चक्रव्यूह में…!

बाँटू कुछ तजुर्बे अपने
और पूछूँ कुछ तुम्हारे तरीके
जिंदगी के फ़लसफ़े पर
करना चाहूँ एक गुफ्तगूं…!

कैसे सुलझेगा यह
जिंदगी का चकव्यूह
थमाकर एक एक पन्ना
उन हर लम्हों का
पूछूँ कई सारे हैरत करते
प्रश्न….!
, और तुम्हारे आँखों
में आँखे डालकर ढूंढ़ना
चाहूँ कई जवाब ….!

आज गुलाबी ठंड में
चटक धुप में बैठ
तुम्हारे संग पीती एक
अदरक की गर्म कड़क चाय…..!

बहुत सवाल जेहनमें हैं बाकी
हरपल हर वक्त हर कश्मकश
और रेंगते सहमते
रोते चरमराते
कुछ पल …!

अजीब दुविधा में परोसते से
वह किर्च और दरख्ते
से जख्म और हवा देते तुम
आज रूबरू होकर पूछना
चाहती हूँ तुमसे क्या
कभी महसूस की हैं वह
किर्च भरी जख्म तुमने….!

बस कुछ सवाल और
थोडे जवाब ….!
जानना
चाहती हूँ रूबरू
तुमसे इस गुलाबी ठंड में
चटक धुप में बैठ …!

तुम्हारे संग पीती एक
कड़क गर्म अदरक की चाय….

सुरेखा अग्रवाल
साहित्यकार

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