भ्रमजाल
हेलो !….सुरीली ??
हां!.. “कौन बोल रहा है?”
“आवाज भी नहीं पहचानती हो क्या ?”- कुछ ऊंची आवाज में मानसी बोली।
सुरीली सकपकाई और बोली-” यह नंबर सेव नहीं था, मैडम!”
“जानती हूं ,मेरा फोन तो तुम उठा नहीं रही हो इसीलिए दूसरे नंबर से कॉल किया। खैर, छोड़ो यह सब , काम पर कब लौटेगी। बेटी की शादी के लिए 10 दिनों की छुट्टी ली थी। आज 25 दिन हो गए हैं, पर तुम्हारी कोई खबर नहीं है।”…
हेलो…! हेलो…..! सुरीली ..!! हेलो….!, हेलो….! ओ .. हो..!
फिर फोन काट दिया …उसने झुंझलाते हुए कहा।
फिर फोन लगाया । कॉल लगाने पर टी …टू.. टी … टू .. . साउंड आ रहा है ।
गुस्से से भरी मानसी बोली -“अब तो अननोन नंबर उठेगी ही नहीं।”
फोन लगाने पर एक ही स्वर गूंज रहा था -“आप जिससे संपर्क करना चाहते हैं वह स्विच ऑफ है ।”
मानसी ने गरज कर कहा-” यह क्या तरीका है, इतना घमंड हो गया है उस सुरीली को। औकात से बड़ा दामाद खोज कर दिया तो घमंड आ गया है। सारी खरीदारी में मदद की। आज का रिश्ता थोड़ी था ,10 साल से काम कर रही है; हमारे घर में। 8 साल की थी बिटिया, जिसे पढ़ाने में भी मैंने उसकी मदद की। आज मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं ।छोटे लोगों के लिए कुछ भी करो तो वह उसे अधिकार मान लेते हैं। सब उपकार भूल जाते हैं और पैसे का हिसाब- किताब बताइए तो …बहस ! बाप रे! इनसे तो भगवान ही बचाए । उसके आने के इंतजार में 10 दिन से बैठी हूं जो सदियों जैसा बीत रहा है। खैर, सब भाग्य है। “मैं मलिक होकर भी दीन हूं और वह दीन नहीं दाता है ” तभी तो उसका भाव बढ़ गया है ,अब नहीं आएगी वह काम पर । अब तो कोई दूसरी कामवाली ही ढूंढनी होगी। पता नहीं बेटी की शादी में जो उसने लाख रुपए एडवांस लिए थे, वह वापस मिलेगा या नहीं। बताओ यह क्या मेरे ही भाग्य में लिखा है। किसी की सेवा करो और फिर खुद ही झेलते रहो।” वह बड़बड़ाते हुए काम में लग गई।
तभी उसके फोन पर घंटी बजी। मानसी ने देखा है कि उसके फोन पर अननोन नंबर से कॉल आ रहा है। वह अननोन फोन नहीं उठाती है, फिर घंटी बजती है, फिर कॉल आता है। लगातार रिंग सुनकर अंततः उसने फोन उठाया। वहां से आवाज आई -” हेलो , मैडम ! मैं सुरीली बोल रही हूं। मेरे मोबाइल की बैटरी चली गई है, इसलिए मेरा फोन कट गया। मैं अपने साथ सफर कर रही एक महिला के फोन से आपसे बात कर रही हूं। आज दोपहर तक घर पहुंच जाऊंगी और शाम को आपसे मिलने आउंगी। ठीक है, फोन रखती हूं ।”
अपनी सोच के भ्रमजाल में उलझी मानसी के कानों में सुरीली के स्वर गूंजने लगी। उसकी हंसी ठिठोली याद आने लगी। उसके सारे गुण और किए गए काम की झांकियां जैसे उसके चारों ओर नाचने लगी।
डॉ उमा सिंह किसलय
अहमदाबाद, भारत