अनुत्तरित प्रश्न

अनुत्तरित प्रश्न

एक बार फिर…
नहीं..नहीं.. इस बार आने दो मुझे। ..
क्यों नहीं आने देती हो… मैं आना चाहता हूँ…
नहीं वह सब नहीं होगा जिसका तुम्हें भय है… तुम बहुत अच्छी हो। ..
वह भी बहुत समझदार है… देखा नहीं उसने अपनी जिम्मेदारियां कितनी खूबसूरती से निभाईं हैं… … माना उसका विश्वास उठ गया है इस व्यवस्था से…. तुम्हारे आस-पास के लोग, तुम्हारी दिनचर्या, तुम्हारे अनुभव मुझे नहीं आने देना चाहते…पर तुम तो चाहती हो न……. कितना प्यार करता है वह तुम्हें… उसकी तुलना में तुम उससे कुछ ज्यादा ही प्यार करती हो…. उसकी हर बात में तुम्हें तथ्य नज़र आता है… पर तुम मुझे भी तो चाहती हो … न… न.. झूठ मत बोलो , तुम चाहती हो पर … . मैं एक बार फिर विश्वास दिलाता हूँ, सब ठीक होगा…… आने दो, मुझे आने दो….

लेडी डॉक्टर और उनकी टीम के आने का समय हो रहा है, लेकिन तुम ख्यालों में खोई हो.. मुझे अच्छा लग रहा है… तुमसे बातें करना.. मैं नहीं चाहता कि यह समय बीत जाये। …. इसलिए डॉक्टर जितनी देर से आये मुझे फर्क नहीं पड़ता पर तुम परेशान हो रही हो.. तुम्हें ऑफिस के ढेरों काम हैं…

वह तुमसे कितना प्यार करता है…. तुम्हारे स्वास्थ्य की उसे तुमसे ज्यादा चिंता रहती है….

आह! तुम्हारी आँखों के कोरों से दो बूंद आंसू…. शायद तुम्हें और मुझे भी पिछले कुछ सालों में घटित घटनाएं याद आ गईं…

जब तुम और वो हनीमून पर गए थे, कोई पहाड़ी जगह थी, नाम मुझे कैसे पता होगा.. तुम लोग अपनी प्रेम-क्रीड़ा में डूबे रहते थे…. वह तुम्हारे अनिंद्य सौंदर्य को देखा करता, तुम्हारे नाम पर न्योछावर हुआ रहता, पहाड़ का नाम कुछ भी हो….. मैं तुम्हारी प्रेम-क्रीड़ा का गवाह पहले दिन से हूँ, शायद तुम्हें आभास भी नहीं था कि मैंने तुम्हें चुन लिया है…
एक दिन तुम्हें उल्टी हुई तो वह बहुत परेशान हो गया। तुम्हारे हाथ पैर सहलाता रहा। तुम्हारा सिर अपनी गोदी में रख कर चूमता रहा। तुमने खाना नहीं खाया, उसने भी नहीं खाया। डॉक्टर-दवाई…. और जब पता चला कि तुम्हारी हालत का ज़िम्मेदार मैं हूँ तो तुम्हारे प्रेमी ने मुझसे निजात पाने के लिए तुम्हें मना ही लिया।

दो महीने के बाद तुमने मुझसे छुटकारा पा लिया…..

मैं भटकने लगा। क्योंकि मुझे तुमसे प्यार हो गया था। मुझे इंतज़ार मंज़ूर था…कहीं और जाना नहीं।

उसे कंपनी की तरफ से विदेश जाने का मौक़ा मिल रहा था । वह तुम्हें भी ले जाना चाहता था। अधिकतर लोग अकेले ही जाते हैं। दो जान और एक जान के खर्चे में डबल का अंतर होता है, पर तुम्हें पता था कि वह आधा पेट खाकर सो सकता है, पर शरीर की भूख उसके लिए असह्य होती है। वह बौखला जाता है, हमेशा शांत, सौम्य, संतुलित, पराकाष्ठा की हद तक शरीफ़ दिखने वाला व्यक्ति निहायत निम्न दर्जे के प्राणी सा व्यवहार करने लगता है। इतना बड़ा जोख़िम लेने को तुम तैयार न थीं …

तुम्हें तुम्हारी नौकरी में प्रमोशन मिलने वाला था, लेकिन उसने कहा वह तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, तुम्हें उसके साथ जाना ही होगा, विदाउट पे लीव लेकर। आने के बाद प्रमोशन होते रहेंगे। तुमने सोचा था ऐसा नहीं होता, कितनी मेहनत की है तुमने इस प्रमोशन के लिए। मौक़ा एक बार हाथ से फिसला तो किसी और की झोली में जा गिरेगा, इंतज़ार थोड़ी करेगा ….. पर तुमने कुछ नहीं कहा और उसके साथ चली गई।

तुम दिनभर खाली और अकेली हो गई थी। वहाँ तुमने मुझे शिद्दत से चाहा। पिछले दो साल से तुम्हारे मन के किसी अँधेरे कोने में मैं चुपचाप चोट खाये हुए सांप की भांति सोया हुआ था, लेकिन यहां विदेश आने के बाद तुम्हारी तन्हाइयों ने मेरी मरहम-पट्टी की और मैं जाग गया। अपने फन फैलाने लगा।

पिछले एक वर्षों से तुमने ऑनलाइन जॉब ले लिया था। कुछ पैसों के लिए, कुछ समय काटने के लिए और कुछ मन बहलाने के लिए….. लेकिन तुम्हारे मन के अँधेरे कोने में बैठा मैं बेचैन था… तुम भी बेचैन थी… तुमने गोलियां खानी छोड़ दीं।

“क्या करती हो… इतनी समझदार होकर ऐसी नादानी…तुम्हें पता है सब… अमेरिका की पॉलिटिक्स… किसी का भी जॉब परमानेंट नहीं होता.. जब चाहे निकाल दिए जाएंगे… सड़क पर आ जाएंगे… सिर छुपाने की छत भी न होगी… बचता ही कितना है…”

“समी….र… मुझे चाहिए….. ” मक्खन की पूरी टिकिया अपनी वाणी में घोलकर तुम उससे लिपट गईं थीं, पर……उसने अपने तरकश से अभेद्य तीर निकाला था। मुझे याद है उसने तुम्हें समझाया था।तुम्हें अपनी बाँहों के घेरे में लेकर भींच लिया था। चुम्बनों की झड़ी लगाते हुए बोला था।
“क्या मैंने अपने माँ-पापा के सपने पूरे किये? क्या मैं उनके साथ उनके छोटे से शहर में रह सका? मैं उनकी जाति की कम पढ़ी, साधारण सी, घरेलु किस्म की लड़की से शादी करने की हामी भी न भर पाया। मैं उनके अंतिम समय में भी उनके गांव नहीं पहुंच पाया। जब जब पहुंचा देर हो जाती थी। उन लोगों ने मुझसे बात करना बंद कर दिया था। माँ-पापा के दुःख की पुनरावृति….. नहीं.. बिल्कुल नहीं….”

कुछ देर ठहर कर वह फिर बोला, “माँ-पापा की बात छोड़ो, निखिल-नीना, हर्ष-विश्वा, विवेक-संध्या….. ये लोग तो तुम्हारे बहुत करीबी हैं…. कोई भी तो नहीं चाहता। उस पार्टी में कैसे-कैसे तर्क दे रहे थे , वे लोग, याद है न तुम्हें…. कि भूल गईं….
“ग्लोबल वार्मिंग, पानी की शॉर्टेज, धार्मिक दंगे, बलात्कार…. क्या यही भविष्य देने के लिए हम बच्चा पैदा करें?” उत्तेजना से भरा हुआ निखिल का तर्क था।
“महत्वाकांक्षा, स्पर्धा और एक दूसरे से आगे निकल जाने की दौड़ का अंजाम देख रहे न हैं आप लोग। 2007 से 2021 के दौरान युवाओं में आत्महत्या की दर 62% बढ़ गई है। एक और युवा की जान के भक्षक हम नहीं बनना चाहते। अधिकतर चुप रहने वाली विश्वा ने निराशा भरे स्वर में कहा था। याद है न तुम्हें…”

विवेक और संध्या अभी तक चुप सुन रहे थे। गंभीर वातावरण को हल्का करते हुए विवेक ने संध्या की कनपटी चूमते हुए कहा,

“एक ही तो ज़िंदगी दी है भगवान ने… मैं अपनी दिलोजान के लिए, उसके साथ और सिर्फ उसे प्यार करते हुए बिताना चाहता हूँ… मेरे प्यार पर किसी भी और की हिस्सेदारी मुझसे बर्दाश्त नहीं होगी….फिर वह चाहे हमारा बच्चा ही क्यों न हो.” स्वीकृति में संध्या मुस्कुरा दी थी।

प्रेमालिंगन को और मज़बूत करते हुए, पनीली आँखों से एकटक निहारते हुए शमा ने कहा, “समीर इसका मतलब है तुम हमेशा के लिए नहीं चाहते कि मेरी गोद भरे….. प्लीज़ ऐसा मत कहो.”

समीर असंतुलित हो गया। इतना समझाने के बाद भी वही बचकानी, बैकवर्ड बातें…..
सारे बंधन ढीले कर समीर सोने चला गया।

“हेलो शमा, तैयार हो न तुम?”

लेडी डॉक्टर के प्रश्न से शमा चौंक गई। सचमुच क्या वह तैयार है??

गंभीर, उदास चेहरा और पनीली आँखें देख डॉक्टर की ममता जाग उठी, बड़े प्यार से सिर पर हाथ फेर कर बोली, “घबराने जैसी कोई बात नहीं है। रो क्यों रही हो? बहुत छोटा सा ऑपरेशन है, तुम्हें पता भी नहीं चलेगा। कुछ देर के आराम के बाद तुम घर भी जा सकोगी।”
जी… जी … वह बात नहीं है.. किन्हीं कारणों से पहले भी दो बार करा चुकी हूँ…

“फिर क्या बात है? इतनी परेशान क्यों हो?”

“मुझे चाहिए…. डॉक्टर…..” शमा सुबकने लगी…

डॉक्टर अनुभवी थीं, अपने काम की विशेषज्ञ, लेकिन वे मरीज़ के मनोविज्ञान को भी पूरी संवेदना से समझती थीं। शमा के बिना बताये परिस्थिति-जन्य उसकी मज़बूरी उन्होंने भांप ली और पूछा, “क्या चाहती हो? तुम्हारे शरीर पर तुम्हारा हक़ है…. क्या तुम किसी दबाव में हो? ”
शमा की पनीली आँखें शून्य में डॉक्टर के प्रश्न का उत्तर ढूंढ रही थीं। उसने कोई जवाब नहीं दिया।

डॉक्टर ने ग्लोव्स उतारे और अपनी टेबल पर जाकर बैठ गईं.. उनके चेहरे के भावों से स्पष्ट जाहिर था कि वे कोई कड़ा निर्णय लेने वाली हैं। कैरियर की धुन में उन्होंने भी अपनी इच्छा से अपनी भावनाओं का गला घोंटा था, जिसके लिए प्रौढ़ावस्था में आकर असंख्य बार रात के अँधेरे में पछताईं हैं।

उन्होंने एक नुस्ख़ा लिखा और शमा को पकड़ाते हुए उसके कंधे थपथपाये और ओ.टी. से बाहर निकल गईं….. निःशब्द…..

डॉक्टर ने अपने शब्दों में लिखा था कि बार-बार के गर्भपात के कारण शमा एक और गर्भपात सहन नहीं कर पाएगी। उसकी जान को खतरा है…..

डॉक्टर के चले जाने पर मैं बहुत खुश था, पर मुझे नहीं पता शमा अब क्या करेगी? क्या शमा मुझे स्वीकार कर लेगी?….मुझे आने देगी?.. ऐसा हुआ तो…क्या वह समीर और उसके प्यार को खो देगी….? पति को हर हाल में खुश रखने वाली… पति के हर इशारे पर नाचने वाली कोमल हृदया शमा क्या कोई निर्णय ले पाएगी?…. . या फिर एक बार नियति अपना वही खेल खेलेगी जो खेलती आई है? ….

वातावरण में सुई-पटक सन्नाटा सब कुछ निगलने को आतुर था… मैं.. शमा.. और उसके मन में उठता ज्वार-भाटा भी निरुत्तर हो गया था।
एक बार फिर…..

सुधा गोयल ‘नवीन’
जमशेदपुर, भारत

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