लम्हे

लम्हे

वक्त की तेज़ रफ़्तार में जिंदगी भले ही भागती रहे, पर कुछ लम्हे यूँ ही एक जगह पर आकर थम जाते हैं, मानों अंगद का पाँव हो, जिसे आप जरा सा भी हिला नहीं पाते अपनी जगह से। कभी सोचा ही नहीं था कि सत्ताइस साल के एक लंबे, व्यस्ततम, भागदौड़ भरे सफर के बाद आज अचानक वो लम्हे वहीं एक जगह पर रुके हुए हम तीनों का इंतजार करते हुए मिलेंगे। यह किस्मत भी बड़ी अजीब शय है, ना जाने कब, कहां, किस मोड़ पर आपको किस रूप में चंद लम्हों की एक हसीन सौगात दे जाए, जिसे सीने से लगाकर आप खुद को दुनिया का सबसे ख़ुशनसीब शख़्स मानने पर मजबूर हो जाएं या फिर कोई आंसुओं के रूप में कोई दर्द बन पिघल जाएं।

मैंने और आभा ने कुछ दिन पहले ही गाड़ी की टिकट बुक करवा ली थी। आखिर हमारी बेस्ट फ्रेंड अंजलि की इकलौती बिटिया रूपल की शादी जो थी। अमृतसर से नई दिल्ली तक का लगभग दस घंटे का सफर जाने कितनी पुरानी स्मृतियों को समेटते हुए कुछ पलों में ही समाप्त हो गया। मनमीत जीजाजी स्टेशन पर हमारा इंतजार कर रहे थे। घर पहुंचते ही बाहर की साज सज्जा से ही उसके वैभव का अंदाजा लगाया जा सकता था। द्वारिका के पॉश इलाके में पांच सौ गज की कोठी में अंदर घुसते ही एक बड़ा खूबसूरत सा लॉन, जिसमें लगे कई तरह के गुलाब, जो कि शुरू से ही अंजलि को पसंद थे, महकते हुए हमारा स्वागत कर रहे थे।

“”असली बहार तो अब आई है।””अंजलि ने चहकते हुए बाहर आकर हम दोनों के गले लगते हुए कहा और बाहर बरामदे से ही खुलते अपने बड़े से ड्राइंग रूम में ले आई। नौकर से हमारा सामान ऊपर वाले कमरे में रखवाने को कहकर वह फटाफट रसोईघर में चली गई। हम मंत्रमुग्ध से बैठे बैठक में सलीके में सजी संवरी हर चीज़ का जायजा लेने लगे। छत्त पर लटका रंग बिरंगी रोशनियों वाला एक बड़ा सा फानूस, सारे कमरे में बिछे बड़े बड़े सोफे, जिनपर हाथ की कढ़ाई वाले सुंदर कुशन बिछे हुए थे, दीवार पर खूबसूरत पेंटिंग, एक कार्नर में लगी खूबसूरत तस्वीरें, जिनमें अंजलि शादी से लेकर अब तक की प्यारी यादें सिमटी हुई थी..सब कुछ कितना सुंदर था। मैं और आभा तो अपने छोटे-छोटे घरों में इन चीजों की कल्पना भी नहीं कर सकते।

“”यह लो, तुम दोनों का फेवरेट जलजीरा। बाहर कितनी गर्मी हो रही है न? अच्छा मैं फटाफट खाने का प्रबंध देख लूं, फिर फुर्सत में बैठ खूब सारी बातें करेंगे।””अंजलि देखने में बिल्कुल भी नहीं बदली थी। वैसे ही एकदम गौरी चिट्टी, एकदम स्लिम,बालों में भी अभी तक सफेदी की कोई झलक तक प्रतीत नहीं हो रही थी।””अच्छा ऐसा करो, तुम लोग ऊपर गेस्ट रूम में जाकर फ्रेश हो जाओ।मैं खाना वहीं लगवा दूंगी।”” इतना कह कर उसने अपनी मेड झुमरी को हमारे साथ ऊपर भेज दिया। हम थोड़ा अनमने मन से उठकर ऊपर वाले कमरे में आ गए।

“” बड़ा अजीब सा लग रहा है ना। शादी वाला घर और कोई भी नहीं दिख रहा हम दोनों के अलावा?”” आभा ने अंदर आते ही बेड पर अपना दुपट्टा फेंक कर लगभग पसरते हुए कहा। लंबे सफर में सचमुच बहुत थकान सी हो रही थी। पर शिष्टाचार वश हम खुल नहीं पा रहे थे। गुसलखाने में जाकर नहाने के बाद ही हम लोगों को कुछ हल्का महसूस हुआ। इतने में खाना लेकर झुमरी आ गई और वहीं पड़े कुर्सी मेज पर करीने से सजा दिया। पीछे पीछे ही अंजलि भी आ गई, साथ में एक दुबली पतली, प्यारी सी, बाब कट बालों वाली , एक वनपीस ड्रेस पहने एक खूबसूरत सी लड़की थी।

“”रूपल! इन से मिलो, मेरी कालेज की फ्रेंड्स..आभा और नीलिमा और यह हमारी लाडली रूपल। दरअसल अभी आई है, श्वेतांक और अपने दोस्तों के साथ गई हुई थी। आज बेचलर पार्टी थी न मेरियट में। सिर्फ बच्चे ही इन्वायटेड थे।”” रूपल ने हाय हैलो किया और थके होने का बोल अपने कमरे में चली गई। अंजलि ने झुमरी को साॅब को खाना खिला देने और रसोई समेट देने की हिदायत दी और खुद हमारे साथ ही खाना खाने बैठ गई। खाना खाने के बाद झुमरी बर्तन उठाने की, तो अंजलि का नाइट सूट भी उठा लाई।

“”आज हम मिलकर खूब सारी बातें करेंगे क्योंकि अगले दो दिन तो बहुत व्यस्तता भरे होंगे। शादी की ढ़ेर सारी रस्में और फिर सारे फंक्शनों के लिए होटल में आना जाना रहेगा। यहां तो एक जगह से दूसरी जगह जाने में ही दो दो घंटे लग जाते हैं। वैसे भी हमारे सारे रिश्तेदार लोकल ही हैं, इसलिए सीधे फंक्शन वाली जगह पर ही पहुंचेंगे।”” अंजलि अपनी आदत के अनुसार बिना रुके बोलती रही।

“”और अंकल आंटी जी भी तो आजकल दिल्ली में ही हैं न?”” आभा ने पूछा।

“” हाँ, वे लोग भी भइया की नौकरी दिल्ली लगने के बाद इधर ही शिफ्ट हो गए थे..गाजियाबाद में।”” फिर उठकर वहीं बनी एक अलमारी में से कुछ ढूंढने लगी। थोड़ी देर बाद एक सुंदर सा लकड़ी का नक्काशीदार पुराना बाक्स उठा लाई। कालेज के दिनों में अंजलि के जन्मदिन पर मेरी और आभा की ओर से दिए उस तोहफे को अभी तक संभाल कर रखा देख हम दोनों चकित रह गए। “”अरे! यह तो वही है न?”” मेरे और आभा के मुंह से एक साथ ही निकला और तीनों जोर जोर से ठहाका लगा कर हंस पड़ी। पलंग पर रखते हुए अंजलि ने बाक्स को कुछ इस अंदाज़ से खोला, मानो कोई जादुई बाक्स खुल रहा हो, और उसमें से फिर वही स्कूल कालेज के कुछ खूबसूरत और कुछ उदास लम्हे एक साथ बाहर निकल आने को उतावले हो रहे हों। कुछ ही मिनटों में एक पुरानी उखड़ी सी एल्बम और उसमें से झांकती तस्वीरों में सिमटी ढ़ेर सारी यादें पलंग पर बिखर गई और हम तीनों ही बड़ी उत्सुकता से उन तस्वीरों को देखने में मश्गूल हो गई।

“” यह देखो नीलू! कालेज के वार्षिक उत्सव की तस्वीर, तुम्हें याद है न कि तुम पहली बार साड़ी बांध कर आई थी कालेज में और उसकी फाल पैरों में अटकने से तुम गिर गई थी।”” आभा ने कहा और मैं झुंझला उठी।

“”और इसमें देखो, फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में जब तुम जोगन बन कर आई थी, तो सब कैसे जोगी..तारा रा गाने लगे थे।”” मैंने भी एक तस्वीर उठाकर पासा पलट दिया। इसी तरह बहुत देर तक उन तस्वीरों में छिपे अपने अल्हड़पन को याद करते हुए खुश होते रहे। तभी अचानक अपनी कक्षा का एक ग्रुप फोटो हाथ में आ गया।

“”अरे यह रंजन ही है न?””एक जगह पर इशारा करते हुए अपनी स्मृति पर जोर देते हुए आभा ने कहा, तो हम तीनों के चेहरे की रंगत ही बदल गई। कालेज में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध रंजन हमसे एक साल सीनियर था। पांच फीट दस इंच लम्बे रंजन का डील डौल बिल्कुल किसी फिल्मी हीरो जैसा लगता था। हालांकि उन दिनों जिम वगैरह जाने का ज्यादा रिवाज़ नहीं था, पर रंजन अपनी तंदरुस्ती को लेकर बहुत सजग था। खाने पीने का बहुत शौकीन था। अमृतसर के एक एक ढाबे और होटल के स्वाद की चर्चा वह अक्सर अपने दोस्तों से किया करता था। अंजलि के घर के पास रहने की वजह से कई बार दोनों को एक साथ कालेज आते जाते देखकर सब उससे खूब चुहलबाज़ी करते थे कि दोनों की जोड़ी वाकई बहुत जंचेंगी, पर अंजलि के मन में उसके प्रति ऐसा कोई भाव नहीं था। एक बात तो हमें बहुत बाद में पता चली। जब वह बी एस सी फाइनल में था, तभी उसकी एक सड़क दुर्घटना में भरी जवानी में ही मृत्यु हो गई। कालेज में हर तरफ एक उदासी सी छा गई। कुछ दिनों बाद ही एक बार हम तीनों खाली पीरियड में बाहर लॉन में बैठी हुई थीं। मुझे आभा से कुछ नोट्स चाहिए थे, पर उस दिन आभा को घर जल्दी जाना था, तो उसने मुझे यह कहते हुए अपनी काॅपी ही पकड़ा दी कि कल मैं कालेज में उसे वापस कर दूं। घर आकर शाम को मैंने नोट्स उतारने के लिए जैसे ही काॅपी खोली, तो उसमें एक तह लगाकर कर रखा हुआ कागज़ गिर पड़ा।

“” आभा जी!
बहुत हिम्मत करके आपके किए सवाल का जवाब दे पा रहा हूं। यह सच है कि इस समय मेरी जिंदगी में कोई भी लड़की नहीं है। पर यह भी उतना ही कटु सत्य है कि मैं फिलहाल किसी को भी अपनी जिंदगी में जगह देने की स्थिति में भी नहीं हूं। मेरे पारिवारिक हालात अभी इन चीजों की इजाजत नहीं देते। अभी तो मुझे आगे पढ़ाई जारी करने के साथ साथ अपने पैरों पर खड़े होने का भी सोचना है। अपने से बड़ी दो बहनों की शादी की जिम्मेदारी भी पूरी करनी है। इसलिए मैं आपको किसी तरह के झूठे दिलासे भी नहीं देना चाहता।आप भी फिलहाल अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दें और माता पिता के कहे अनुसार ही शादी ब्याह का फैसला लें।
आपका शुभचिंतक
रंजन।””
ऊपर लिखी तारीख देखी, तो मैं एकदम स्तब्ध रह गई। अपनी मृत्यु से एक दिन पहले ही रंजन ने यह पत्र आभा को लिखा था। उसी समय मेरी आंखों के सामने रंजन की मौत के बाद कई दिनों तक आभा की सूजी हुई आंखों का रहस्य समझ आ गया।वह समय ही ऐसा था, जब प्रेम प्यार की बातें सार्वजनिक नहीं की जाती थीं। कई बार ऐसे खूबसूरत एहसास को मन के किसी कोने में समेटकर ही जिंदगी बितानी पड़ती थी। अंजलि को भी किसी से (आभा से भी नहीं) जिक्र न करने की कसम देकर भले ही सारी बात बता दी थी। उसके अगले दिन मैंने खामोशी से बिना पत्र का जिक्र किए कापी आभा को वापस कर दी यह कहकर कि कल नोट्स बनाने का समय ही नहीं मिला, फिर कभी ले लूंगी।आज रंजन की तस्वीर को दोबारा देखते हुए आभा की आंखें झलक पड़ी और मैं और अंजलि भी उससे नजरें चुराने की असफल कोशिश करते हुए एक दूसरे के गले लगकर फूट फूट कर रो पड़ीं।

सीमा भाटिया
लुधियाना, भारत

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