साँझ
गाड़ी तेजी से पटना से राजगीर की ओर बढ़ रही थी। हल्की बूंदा-बांदी शुरू हो गई थी। आषाढ़ का महीना चढ़ा ही था। मोना सुबह आठ बजे पति राजेश के साथ घर से निकली थी। राजेश को ऑफिस के कार्य से वहाँ तीन दिनों के लिए रूकना था। मोना की एक सहेली रीना राजगीर में ही रहती थी। वह बहुत दिनों से मोना को वहाँ बुला रही थी। मोना के लिए यह अच्छा मौका था। उसके चेहरे पर खुशी साफ़ झलक रही थी ।
आखिर मंजिल आ ही गई। कार्यक्रम के अनुसार मोना रीना के घर उतर गई और राजेश अपने कार्यस्थल पर चले गए। मोना को रीना के घर ही रूकना था। मोना को देखते ही रीना खुशी से उछल पड़ी। दोनों ने एक दूसरे को गले से लगाया। रीना ने भाव-विभोर होते हुए कहा- “कितने दिनों बाद मैं तुझे देख रही हूँ, मोना ! कितनी बदल गई हो।“
मोना ने भावुक होकर कहा-“तुम भी बहुत बदल गई हो।“ रीना मोना का बैग अंदर ले जाती हुई बोली –“चलो, मैं तुम्हें कमरे में ले चलती हूँ। वहाँ फ्रेश हो लो। चाय पियोगी? “
मोना ने जवाब दिया-“नहीं, सीधे खाना ही खाऊंगी। अंजू कब तक आ रही है ?”
रीना ने कहा-“अब आती ही होगी। लो पानी पी लो।“
मोना पानी पीकर बोली-“तुमने कितने करीने से घर को सजा रखा है। बहुत सुंदर है तुम्हारा घर। बच्चे कहाँ हैं?”
रीना ने जवाब दिया-“गर्मी की छुट्टी थी। बेटे-बहू बच्चों को लेकर दार्जिलिंग घूमने गए हैं। वहाँ से लौट कर बहू अपने मायके भी जाएगी।“
अंजू भी आ गई। तीनों सहेलियों ने साथ खाना खाया। देर रात तक गपशप चलती रही। अगले दिन राजगीर घूमने का प्रोग्राम था। रीना ने मोना से पूछा-“राजेश जी नहीं आएँगे ?”
मोना ने जवाब दिया-“नहीं, वे गेस्टहाउस में ही रूकेंगे।“
सुबह नाश्ता करके तीनों भ्रमण को निकलीं। राजगीर की सुरम्य, सुंदर पहाड़ियों की श्रृंखला चारों तरफ पसरी हुईं थी। इन्हीं पहाड़ियों के एक शिखर पर बौद्ध शांति-स्तूप था। रोप-वे से वे वहाँ पहुंचीं । सैलानियों की काफी भीड़ थी। आकाश में मेघ छाए हुए थे। शीतल मंद पवन मौसम को सुहाना बनाए हुए थे। गौतम बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में विशालकाय मूर्तियाँ स्तूप के चारों तरफ अवस्थित थीं। वे तीनों स्तूप की परिक्रमा करके एक बेंच पर आकर बैठ गईं।
अंजू ने कहा-“अहा ! कितनी शांति महसूस हो रही है।“
मोना-“हाँ, सचमुच “
रीना बोली-“यहाँ आकर बहुत शांति मिलती है। पतिदेव जिन्दा थे तो कभी-कभार साथ में आ जाते थे। बच्चों को कहाँ फुरसत है ?”
बहुत देर समय बिताने के बाद तीनों नीचे आ गईं। खाना खाने के बाद वे वेणु-वन आईं। बहुत सुंदर और शांत जगह थी। अंजू ने पूछा-“इस जगह को वेणुवन क्यों कहते हैं ?”
रीना ने जवाब दिया-“यहाँ बाँसों का जंगल था, इसलिए इसे वेणुवन कहा जाता है। यह भगवान बुद्ध को महन सम्राट बिम्बिसार द्वारा उपहार में मिला था।“
मोना बोली-“हमलोग आज स्कूल के दिनों के खेल खेलेंगे।“ अंजू और रीना ठठा कर हँस पड़ीं ।
“इस उम्र में हमलोग कबड्डी खेलेंगे ? हाथ-पैर तुड़वाना है क्या ?” अंजू ने हँसते हुए कहा ।
मोना बोली-“कबड्डी नहीं तो चोर-सिपाही या पिट्टो ही खेलते हैं।“
अंजू बोली-“गेंद कहाँ से आएगा ?”
रीना बोली-“गेंद छोड़ो, यहाँ लकड़ियाँ बहुत हैं। ‘गुल्ली-डंडा’ खेलते हैं।“
अचानक एक लड़के की आवाज सुनाई दी-“आंटी जी, आपलोग किस तरह के खेलों का नाम ले रही हैं ?” तीनों सहेलियाँ चौंक पड़ीं । घूम कर देखीं तो एक स्कूल के ढेर सारे बच्चे थें। दरअसल, ये बच्चे भी स्कूल की तरफ से राजगीर भ्रमण को आए थे। बच्चों ने तीनों सहेलियों की बातें सुन ली थी। उनसे नहीं रहा गया और पूछ बैठे। एक दूसरे बच्चे ने कहा-“कबड्डी तो हम जानते हैं, पर अन्य खेलों के नाम हमने नहीं सुना है।“
रीना ने कहा-“जिस तरह से यह नगरी प्राचीन है न, उसी तरह हम और हमारे समय के खेल भी प्राचीन हो गए हैं।” यह सुनकर सभी हँसने लगे।
अंजू ने पूछा-“तुमलोग कौन से खेल खेलते हो ?”
एक ने कहा-“मैं क्रिकेट, फुटबॉल या बैडमिंटन खेलता हूँ।”
एक लड़की ने कहा-“मैं विडियो गेम खेलना ज्यादा पसंद करती हूँ।“
रीना बोली-“मेरे पोते-पोती भी मोबाइल पर खूब गेम खेलते हैं। कितना भी बोलती हूँ बाहर जाकर खेलो, तो भी नहीं सुनते हैं।“
एक लड़की ने चहकते हुए कहा-“मेरी दादी भी मुझसे इसी बात से गुस्सा हो जाती हैं। उनकी बात मैं नहीं मान पाती न ! और पढ़ाई के कारण ज़्यादा बात नहीं कर पाती हूँ।“ यह सुनकर रीना को ऐसा लगा कि उसकी दुखती रगों पर किसी ने हाथ रख दिए हैं। उसका भी तो यही दर्द था। किसी को फुरसत नहीं कि कोई उससे बात करे। अकेलापन उसे सातता है। मोना रीना को देखकर बोली-“अरे,रीना, तुम कहाँ खो गई? हम अपने स्कूल में जीने वाले थे, दूसरा स्कूल कहाँ से आ गया ?” तीनों खिलखिला पड़ीं । बच्चे भी आगे की तरफ बढ़ गए। अंजू लकड़ियाँ चुनकर लाती हुई बोली –“चलो, ‘गुल्ली-डंडा’ खेलते हैं।“
मोना बोली-“मैं तो यह खेल भूल चुकी हूँ।“
रीना बोली-“देखें तो सही, हम कितना खेल पाते हैं।“
खेल शुरू हुआ। खेल से ज्यादा हँसी हो रही थी। अंजू के ठहाके रूक ही नहीं रहे थे। तभी दोनों ने ध्यान दिया कि अंजू की आँखों से आँसू बह रहे हैं। चेहरा रक्ताभ था। दोनों सहेलियाँ अचंभित रह गई। रीना ने अंजू का हाथ पकड़कर बेंच पर बैठाया और पूछी-“क्या हुआ? “ मोना ने उसकी तरफ पानी बढ़ाया । कुछ देर तक चुप्पी छायी रही । अंजू ने अपनी सिस्की रोकते हुए कहा-“क्या-क्या बताएं ? ज़िन्दगी में इतनी तेजी से सब घटित हुआ कि …..। मैंने कभी नहीं सोचा था कि ये दिन देखने को मिलेंगे । अपने वैवाहिक जीवन को बचाने की बहुत कोशिश की, पर सब व्यर्थ रहा। उसकी ज़िन्दगी में कोई और आ गई थी। बहुत दिनों तक तलाक का केस लड़ी। मिल भी गयी।“
मोना ने पूछा-“बेटी कहाँ है?”
अंजू बोली-“मैं मायके में रहती हूँ। बेटी को माँ के पास छोड़ी हूँ।“ यह सुनकर सभी चुप रहीं। एक उदासी का वातावरण उनके इर्द-गिर्द छा गया। रीना उसके सर को सहला कर सांत्वना देती रही। मोना डूबती आवाज में बोली-“देखा जाए तो सभी अपनी-अपनी जिन्दगी में परेशान है।“
रीना बोली-“जिन्दगी है तो समस्याएं आएँगी ही न ! किसी की कम तो किसी की ज्यादा । कोई चुनौतियों का सामना कर अपनी राह बनाता है, तो कोई थक कर हार जाता है।“
अंजू बोली-“मैंने हार नहीं मानी।“
मोना बोली-“कोई परिस्थतियों और जुल्मो-सीतम से समझौता कर अपनी ही जिन्दगी का कैदी होकर रह जाता है। ज़िन्दगी बोझ लगने पर भी वह जिन्दा रहता है। जुल्मी को लगता है कि सामने वाला सिर्फ अपनी खुशी या स्वार्थ के लिए जी रहा है।“
रीना आश्चर्य व्यक्त करती हुई बोली-“अब तुम क्यों बहकी-बहकी बातें कर रही हो ? सब ठीक है न ?”
मोना कुछ देर सोचती रही, फिर धीरे से बोली-“मैं अंजू जैसा साहस भरा कदम नहीं उठा सकी। मैंने अपनी ज़िन्दगी से समझौते कर लिए, बच्चों के भविष्य की खातिर। खुशहाल नहीं है मेरी भी जिन्दगी। जिस तरह बिछौन पर करीने से बिछे चादर के नीचे के फटे तोसक पर किसी की नजर नहीं पड़ती न, उसी तरह मेरी ज़िन्दगी की हलचल और त्रासदियाँ परिवार व समाज को नहीं दिखतीं ।“ कहकर मोना चुप हो गई।
अंजू अपना दुःख भूल मोना से पूछ बैठी-“बात क्या है मोना ? बताओ तो सही । हम यहाँ आए ही हैं अपना सुख-दुःख साझा करने।“
मोना बोली-“ऐसी कोई बात नहीं है अंजू। तुमलोग की बातों को सुनकर मुझे भी अपने दुःख याद आ गए। सामान्यतः इस उम्र तक आते-आते औरतें अपनी बहुत सी ख़ुशियाँ खो देती हैं। स्वप्न देखने के सिलसिले किशोर वय से शुरू होकर अनवरत चलते रहते हैं। उन सपनों को पूरा करने के लिए वह ज़िन्दगी के सुनहरे पल संसार रूपी भट्ठी में झोंक देती है। घर-गृहस्थी, भरा-पूरा परिवार, मान-प्रतिष्ठा सब प्राप्त होने पर भी वह इस अवस्था में अपने को अकेले पाती है। बच्चे अपनी जिन्दगी में व्यस्त हो गए हैं। उन्हें अपनी सुध नहीं तो, हमें क्या याद करेंगे। यह युग ही ऐसा है। पति द्वारा तो मैं शुरू से उपेक्षित रही हूँ। वह अपने कार्य में व्यस्त, तो मैं अपने घर में। ससुराल-मायके सबको साथ लेकर चली। परम्पराओं का निर्वाह किया। फिर भी पति द्वारा कहे गए अपशब्द, दी गई शारीरिक एवं मानसिक यातनाएँ सहती रही, इसलिए कि बच्चों का भविष्य खराब न हो। परन्तु आजकल की पीढ़ी तो अपनी शर्तों पर जीना चाहती है। पुराने लोग, पुरानी परम्पराएँ दक़ियानूसी हैं, ऐसी सोच उनकी बनती जा रही है। उनकी स्वतन्त्रता उनके लिए ज्यादा अहमियत रखते हैं। पुराने लोग में माँ-बाप भी सम्मिलित हो जाते हैं। मैं जहाँ थी, वहीं रह गई।“ कहकर मोना चुप हो गई।
रीना ने कहा-“मोना तुम्हारी जिन्दगी में इतने दर्द थे, हमें भनक तक नहीं लगने दी। तुम हमेशा खुशी से चहकती रहती थी। पर आज तो तुमने हमें सरप्राइज दे दिया। यह सब सुनकर मन बहुत व्यथित हो रहा है।“ अंजू ने पूछा-“तुम इतनी यंत्रणाएँ चुपचाप कैसे सहती रही ? किसी को भनक तक नहीं लगी।“
मोना ने संक्षिप्त जवाब दिया-“जैसे तुम।“
रीना ने कहा-“मुझे लगता है कि यह हमलोग की अन्तिम पीढ़ी है, जो सभी को साथ लेकर चली और परम्पराओं का निर्वाह की।“
अंजू बोली-“बिल्कुल सही। यही कारण है कि आजकल वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है।“
मोना-“जीवन-साथी का साथ हो तो जीवन आसान हो जाता है।“ अंजू ने प्रतिवाद करते हुए कहा-“आखिर क्यों हम जीवन-साथी पर इतने निर्भर हों ? क्या हम इतने सक्षम नहीं हो सकतें कि स्वयं के खुशी के दो पल जी सकें !” वहाँ एक गहरा सन्नाटा खींच गया । शाम हो चली थी। लौटने का समय हो आया था। रीना ने सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा-“ये क्या हो गया ? हम यहाँ आए थे अपना बचपना जीने, हँसने-खिलखिलाने और रोने लगे।“
अंजू ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा-“अरे, एक बार ‘गुल्ली-डंडा’ तो खेल लेते !”
रीना ने कहा-“अब देर हो गई है। कल फिर हमलोग यहाँ आयेंगे।“ तीनों उठकर चलने लगीं। विद्यालय से भ्रमण को आए बच्चे भी लौट रहे थे। उन्हें लौटते देख एक बच्चे ने पूछा-“आँटी जी, आपलोग हमें प्राचीन खेलों के बारे में नहीं बताइयेगा ?”
मोना ने कहा-“कल फिर हमलोग यहाँ आयेंगे। तुमलोग भी आने के लिए अपने शिक्षक से आग्रह करना। हम साथ में खेलेंगे।“ एक लड़की ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा-“आँटी जी, आपलोग इस उम्र में भी खेल लेती हैं? गिरती नहीं हैं ?”
रीना ने जवाब दिए-“नहीं, बिल्कुल नहीं गिरते। हमलोग बहुत मजबूत हैं।“ सभी खिलखिला कर हँस पड़े। तीनों सहेलियों ने एक दूसरे पर रहस्यमय मुस्कान फेंके और आगे बढ़ गईं ।
सरिता कुमारी
पटना, भारत
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