सब माया है
वह अकेला रह गया था। सोने के पिंजरे और सोने की कुर्सी पर बैठा ‘अकेला आदमी’। वह हमेशा से अकेला नहीं था। अपने भरे पूरे परिवार में पांच बहनों के बीच इकलौता भाई सबका लाड़ला था।
पिता थोड़े कड़क स्वभाव के थे, सो बच्चों और पिता के बीच हमेशा एक कम्युनिकेशन गैप रहा। इधर माँ और पाँच बहनों का अतिशय ममत्व, और उधर पिता का जरूरत से ज्यादा दबदबा.. । बेटियाँ तो उग जाती हैं.. और स्वतः उगे पेड़ पौधे भी अपना पोषण किसी न किसी तरह से ग्रहण कर ही लेते हैं लेकिन जतन से उगाये पौधों पर माली थोड़ा ज्यादा ध्यान देता है। तो इस बेटे रूपी पौधे पर माँ का नेह थोड़ा ज्यादा ही बरसता था।
“”खाना खा लो ना बेटा!””
यह उनका तकिया कलाम सा बन गया था ।
“”इतना खाने के लिए खुशामद क्यों करतीं हैं, भूख लगेगी तो खुद ही खा लेगा।””
माँ के लाड़ पर पिता अक्सर ब्रेक लगाया करते ।
दुनियादारी सिखाने के क्रम में पिता कभी-कभी बाजार भेजते तो जनाब उटपटांग तरह का सौदा करके घर आ जाते । बेटे के इस रवैए को देखते हुए हिसाबी पिता ने पैसे का महत्व समझाते हुए उसके हाथ बिना जरूरत समझे पैसा देना भी बंद किया । लेकिन उन्हें यह तसल्ली तो थी कि लाड़ला पढ़ाई -लिखाई में ठीक है तो कुछ न कुछ कर ही लेगा और समय के साथ दुनियादारी भी सीख लेगा।
तो लाड़ला इंजीनियर भी बन गया और उसने दुनियादारी भी सीख ली और इतनी सीख ली कि अपनी पसंद की लड़की ढूंढ कर चुपचाप उसके परिवार वालों के समक्ष आपस में अंगूठी बदलकर पारिवारिक व्हाट्सएप ग्रुप पर फोटो डालकर मुनादी कर दी कि अब उसका स्टेटस ‘इंगेज्ड’ वाला हो गया। अपनी और अपने परिवार की अवहेलना से तिलमिलाए पिता थोड़े चिल्लम-चिल्ली के बाद मान गए, माँ को तो मानना ही था, और तीन ब्याही और दो अनब्याही बहनों ने यह सोचकर तसल्ली कर ली कि चलो सगाई में न सही शादी में खूब अच्छे से तैयार होकर बिजलियाँ गिराएंगे और रील्स बनायेंगे ,तो शादी भी हो गई।
व्यावहारिकता का ओवरडोज इतना कि जितना कमाता सब बचाने की फ़िक्र में रहता। शादी के बाद घर के खर्चे तो बढ़ने ही थे, अब आए दिन पत्नी से घर खर्च के एक-एक बिंदु पर किच-किच। ऐसे में कभी घूमने जाने का प्लान भी बनता तो पति चाहता की पत्नी स्पॉन्सर करे, और पत्नियों के लिए ऐसे ट्रिप में पति से खर्च करवाना उनका जन्मसिद्ध अधिकार , सो इसी खींचतान में कहीं का प्रोग्राम नहीं बन पाता।
पत्नी की सारी सहेलियां जब बतातीं कि कैसे उनके पति उन्हें सरप्राइज गिफ्ट दिया करते हैं तो इसके दिल में भी हुक सी उठती। मंहगे गिफ्ट ना सही कम से कम कभी बुके तो देते ,बुके ना सही कभी गुलाब तो देते ,जबकि वह कई बार बता चुकी थी कि उसे गुलाब और कैंडिल लाइट डिनर कितने पसंद है। मामला तब और तूल पकड़ा जब पति ऑफिशियल टूर पर दुबई गया तो पत्नी ने बड़ी हसरत से वहाँ से खजूर और इत्र लाने की फरमाइश की। पति को यह सब पैसे की बर्बादी लगी सो लौट आया खाली हाथ। ऐसा नहीं था कि पत्नी को खजूर बहुत पसंद थे या उसके पास महंगे से महंगे परफ्यूम नहीं थे। यह सब वह इसलिए मंगवा रही थी ताकि अपने ऑफिस में सभी को बता सके कि उसका पति दुबई गया था और उसके लिए ढेर सारे उपहार लाया है। पत्नी का दिल बुरी तरह टूट गया था । ऐसी उबाऊ ज़िन्दगी से थोड़ा निजात पाने के लिए पत्नी वीकेंड में ऑफिस से सीधे मायके चली जाने लगी जहां सभी प्रकार की सुविधाएं मौजूद रहतीं । फ्लैट के नजदीक ऑफिस होने के कारण वीकडेज में वह अपने फ्लैट में ही रहती । शुरुआती दौर में पति द्वारा लाख उपेक्षित किये जाने के बावजूद खाना बना कर पति की प्रतीक्षा करती। लेकिन पति ऐसा कि खाना खाने के बाद दो शब्द प्रशंसा के तो दूर, पत्नी के पाक कला के अनाड़ीपन की कहानियां रस ले-ले कर फोन पर घर परिवार और मित्रों तक पहुँचाता । नतीजतन एक साथ रहते हुए पत्नी के लिए वह अदृश्य सा हो गया। वह खाना पकाती,खाती टीवी देखती और जब सोने का वक्त होता तो एसी चलाकर अपने कमरे को सुपर कूल कर सो जाती। एक तो पति को एसी में सोने की आदत नहीं दूसरे उसके चलने से हर माह आता भारी भरकम बिल। तन और मन दोनों के उकसावे पर वह हमेशा ड्राइंग रूम में सोफे पर ही सोता। तो इस तरह से पति-पत्नी के बीच में आई दरार भरने के बजाय और बढ़ने ही लगी । दोनों तरफ के माता-पिताओं के पास बात पहुँची। पति यानि ‘अकेले आदमी’ की माता जब भी बेटे को कुछ समझाना चाहतीं तो पिता घुड़की से चुप करा देते और बेटे को समझाते कि औरतों को ज्यादा सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए।
इधर पत्नी के पिता ने दामाद को एक दिन स्पष्ट रूप से ताना मारा
“”ऐसा खानदान और ऐसी लड़की मिल गई..आप बहुत भाग्यशाली हैं …हम सब तो धोखा खा गये।”
“”अगर आप को ऐसा लगता है तो मैं आपकी बेटी को तलाक देने को तैयार हूँ।”
इस अप्रत्याशित से उत्तर के बाद लड़की के पिता ने चुप्पी साध ली।
इधर छोटी बहन की शादी तय हो गई ,
“”माँ तुम्हारी बहू तो ट्रेन पर चलने से रही और फ्लाइट से आने जाने में बहुत सारे पैसे लगेंगे, बेहतर होगा कि सब पैसा जोड़ कर , उसमें कुछ और मिलाकर तुम्हारे अकाउंट में डाल दूँ और शादी में ना आऊँ।””
बेटे के ऐसे विचार सुन माँ के आँखों के आगे अंधेरे छाने लगे।
“”पैसे के लिए इतनी खब्त है इसके दिमाग में, जिंदगी की गाड़ी आगे कैसे खींचेगा।””
उन्होंने हताश होकर अपने पति से कहा।
“”खूब चलेगी गाड़ी…””
उनके पति ने लापरवाही से जवाब दिया।
बाद में माँ और बहन के बहुत गिड़गिड़ाने पर वह सपत्नी आया घर। बहू ने सासू माँ से अपनी सारी व्यथा-कथा कही।
“”तू बहू को कहीं घूमाने क्यों नहीं ले जाता?””
एक दिन उन्होंने पति और बेटे की उपस्थिति में यह बात चलाई।
“”बहुत खर्चीली है माँ, अपनी सारी कमाई इन्वेस्ट कर देती है और पूछने पर कहती है कि घर और कार के लोन में चले गए। मैंने तो शादी ही इसलिए कि वह नौकरी करती है, वरना उसके रंग रूप को तो तुम देख ही रही हो।””
माँ आवाक थीं। सोच रही थी काश समय का पहिया पीछे चला जाता और अपने बेटे को इतना लाड़ प्यार देकर इतना स्वकेंद्रित नहीं बनातीं। पिता को भी लगा कि पैसों के प्रति उसे इतना जागरुक नहीं बनाना चाहिए था। फिर भी उन्होंने बातों से समझाकर बेटे को रास्ते पर लाने की आखिरी कोशिश की। बेटा समझता तो क्या हर बात का तुर्की ब तुर्की जवाब देकर बात बढ़ाने लगा। मद्धम स्वर में शुरू हुई इस बतकही की ध्वनि की तीव्रता इतनी बढ़ गई कि बहू के कानों तक पहुँच गई और वह भी शामिल हो गई इस बतकही में।
बहू ने अपना पक्ष रखना चाहा तो उसकी बात काटते हुए बेटे ने कहा,
“”तुम्हें मुझसे इतनी शिकायतें हैं तो तलाक ले लो।””
उस ‘अकेले आदमी’ ने दूसरी बार यह शब्द अपनी ज़बान पर लायी थी और अभी शादी की पहली सालगिरह भी नहीं मनी थी। लिहाजा किसी भी स्वाभिमानी लड़की की तरह शहर लौटने पर उस लड़की ने आगे बढ़कर तलाक की सारी औपचारिकताएं निभाई और उसे ‘अकेला’ कर गई।
समाज की नजर में ‘अकेला आदमी’ बड़ा ही अनाड़ी था जिसे जिंदगी जीने का शऊर ही नहीं था। लेकिन अपनी कंपनी के लिए वह एक बेहतरीन इंपलायी था सो उसे प्रमोशन पर प्रमोशन मिलते रहे।
इधर पिता को यह डर सताने लगा कि, जवानी तक तो ठीक है लेकिन बुढ़ापे में यह अकेलापन उनके बेटे को बहुत सताएगा। उन्होंने बेटे को बहुत समझाया कि दूसरी शादी कर ले। उनके कहने पर बेटे ने बहुत बार मैट्रिमोनियल साइट्स को खंगाला, पर वैसी लड़की नहीं मिली जैसी उसकी पहली पत्नी थी, कुल खानदान से भी रईस और अच्छे खासे पैकेज वाली । साल दर साल बीतते गए, सभी बहनें अपनी जिंदगियों में व्यस्त हो गईं, पैसे के प्रति उसके अनंत मोह ने उसे सभी लोगों से अलग कर दिया था माता-पिता भी समय पर चले गए इस दुनिया से।
अब वह कुर्सी पर बैठा-बैठा राहगीरों को ताका करता है।
एक दिन उसे बहुत उदास देख एक राहगीर ने उसकी उदासी का सबब पूछा तो उसने जवाब दिया
“”आज किसी से बात करने के लिए दिल बहुत व्याकुल हो रहा है, अच्छा हुआ, तुम आ गये। “”
“” मैं वहीं आता हूँ, तुम्हारे पास, एक कुर्सी मेरे लिए भी लगवा दो, फिर दोनों साथ – साथ कुछ वक्त गुजारेंगे। “”
“” नहीं – नहीं, तुम्हे बात करनी है तो वहीं से करो “”
“ऐसा है, तो फिर तुम ही बाहर आ जाओ, मैं अपनी दोस्ती और प्यार से तुम्हारी जिंदगी आबाद कर दूंगा।”
“” अरे जाओ, मैं खूब समझता हूँ, तुम्हारी नजर मेरी दौलत पर है, मैं अकेला ही भला हूँ। “”
और एक ऐसा समय आया… उस अकेले आदमी की जवानी ढ़ल गई… शरीर थक गया….. वह बहुत चाहता है कि कोई उसके पास आये….. उसका दिल बहलाये….. उसका साथ निभाये… पर शायद वह लोगों के नजरों से अदृश्य हो चुका है….. और अब वह हमेशा के लिए रह गया ‘अकेला आदमी’।
ऋचा वर्मा
पटना, भारत