कासे कहूं अपने जिया की

कासे कहूं अपने जिया की

 

हल्की हल्की सावन की रिमझिम फुहारें पड़ रही थी, मौसम बहुत खुशगवार था । नीता का मन चाय पीने का हो रहा था पर अपने लिये चाय बनाने में आलस आ रहा था इसलिये बैठकर अखबार पढ़ने लगी, हालांकि अखबार में कुछ पढ़ने के लिये होता ही कहाँ है बुरी खबरों के अलावा। तभी वसुंधरा कॉलेज से आ गई। आते ही नीता के गले में बाहें डाल कर बड़े फ़िल्मी अंदाज़ में बोली ” माॅम आई एम इन लव ।”

” वाओ , इट्स ग्रेट । ”

” आप नाराज़ नहीं हुई सुनकर ”

“व्हाई आई शुड बी एंग्री? एक दिन तो यह होना ही था । इस उम्र में किसको प्यार नहीं होता? अगर नहीं होता तो इसका मतलब है वो नार्मल इंसान नहीं है।”

“माॅम यू आर दि बेस्ट माॅम। और लड़कियों की माँ तो प्यार व्यार की बात सुनते ही भड़क जाती हैं!”

“भई अब इस उम्र में प्यार नहीं होगा तो क्या बुढ़ापे में होगा?”

” ये तो है, पर बुढ़ापे में भी तो प्यार हो सकता है ना ?”

” जिसको मेरी राजकुमारी ने पसंद किया है, कोई राजकुमार सा सलोना बांका छबीला ही होगा, है न? अच्छा मुझको फोटो दिखा और सब कुछ बता । कहाँ मिला, कैसे मिला, कैसे प्रपोज़ किया? ”

” माँ अभी मैं बहुत थक गई हूँ फिर बताती हूँ। अभी तुम खुश हो लो यह सोचकर कि तुम्हारी बेटी अब जवान हो गई है और उसे प्यार हो गया है।”

यह कह कर वसुंधरा कमरे के अंदर चली गई पर नीता के मन के अंदर बवंडर छोड़ गई । जितने उत्साह से उसने प्यार का जिक्र किया उससे तो नीता खुश थी किन्तु कौन है वो लड़का यह बताने में टाल मटोल ने नीता के मन में संशय पैदा कर दिया। ढेरों ख़्याल और सवाल उसे कुछ मिनटों में ही झिंझोड़ गए। उठकर अंदर गई तो वसुंधरा वाशरूम में थी। उसने सोचा बढ़िया सी अदरक वाली चाय बनाती हूँ फिर दोनो मिल कर पिएंगे तब डिटेल में सब पूछूँगी । माँ कितना भी दोस्त होने का दिखावा कर ले पर माँ सुलभ चिंता से कहाँ मुक्त हो पाती है। कहाँ समझ पाता है कोई उसके जिया की पीर।

फटाफट दो कप बढ़िया सी चाय बनाई, तब तक वसु नहा के निकल आई थी।

”वाह गरमागरम चाय, तुम कैसे समझ गई माँ कि मेरा मन कर रहा था चाय पीने का?”

” तेरी माँ हूँ लाड़ो, तेरे बिन कहे सब जान लेती हूँ।”

नीता की बेचैनी बढ़ती जा रही थी तो बैठते ही उसने प्रश्न दाग दिया ” चल बता मुझे शुरू से अपनी प्रेम कहानी।”

दो मिनट चुप रह कर वसुंधरा बोली- ” पहले बोलो नाराज़ नहीं होगी ।”

” इसका मतलब है कुछ नाराज़ होने वाली बात है, पर चल प्रॉमिस नाराज नहीं होऊंगी।”

” माँ तुमने कभी प्यार किया था? ”

” वसु मेरी प्रेम कहानी मैं बाद में सुनाऊंगी अभी तू अपनी सुना, इधर उधर बात घुमाएगी तो थप्पड़ खायेगी।”

”ओके, ओके, मुझे अपने प्रोफेसर आनंद सर से प्यार हो गया है और वो भी मुझे बहुत प्यार करते हैं।”

“अच्छी बात है, कम से कम लड़का पढ़ा लिखा, अच्छी जॉब वाला है फिर क्यों मैं नाराज़ होऊँगी?’’

” पूरी बात तो सुनो, वो शादी शुदा है, उसके दो बच्चे हैं।”

” ओ माय गॉड वसु मुझे तुझसे ऐसी बेवकूफी की उम्मीद नहीं थी। शादी शुदा ऊपर से दो बच्चों का बाप । वो अपनी बीबी से प्यार नहीं करता क्या, किसने पहल की थी, कहाँ मिला वो तुझे अकेले में, क्लास के बाहर, जो बात बढ़ी ?”

” माँ अभी तो आप इतना खुश हो रही थी और अब इतना गुस्सा? प्यार तो किसी से भी हो सकता है, किसी भी उम्र में हो सकता है, प्यार कोई सोच समझ के थोड़े ही किया जाता है, बस हो गया तो हो गया। वो बहुत समझदार, संवेदनशील और बहुत हैंडसम हैं।सबसे बड़ी बात कि मैने ही प्रपोज़ किया था। आप तो कभी भी लव मैरिज के ख़िलाफ नहीं थी,फिर अब क्या हो गया?”

“जब वो इतना ही अच्छा है तो, अपनी बीबी के साथ खुश क्यों नहीं है? तेरी जिंदगी क्यों खराब कर रहा है? क्या मंजिल है इस प्यार की बेटा ? तू क्या उसकी रखैल बन कर रहेगी उसके साथ? तुझमें क्या कमी है? तुझे लाखों लड़के मिलेंगे।”

” माँ आप अचानक से इतनी कन्ज़र्वेटिव कैसे हो गई ? प्यार का मतलब शादी ही तो नहीं होता ना ?”

” वसु, आई ऍम नाॅट कन्ज़र्वेटिव बट आई ऍम कंसर्न अबाउट यू। हमने हमेशा प्रोब्लेम्स को डिस्कस किया है तो आज भी कर न? मेरे सवालों से भाग मत। मेरी बात सुन फिर अपनी बोल। प्यार का मतलब शादी नहीं होता तो फिर क्या होता है? आनंद के लिए हमेशा उसका परिवार उसकी पहली प्रायोरिटी होगा। उसके परिवार को कोई भी समस्या होगी वो भाग के वहाँ जायेगा ।”

” हाँ तो ठीक है। मुझे कुछ समस्या होगी तो मेरे पास आयेगा।”

” और अगर एक ही समय पर तुझे और उसके परिवार को समस्या हुई तो किसके पास जायेगा? सोच के देख। अगर तू भी बीमार है और उसका बच्चा भी बीमार हुआ तो तुझे छोड़ कर पहले वो उसके ही पास जायेगा और तब तुझे कैसा लगेगा? टूट के बिखर नहीं जायेगी? वसु एक शादीशुदा इंसान के साथ रिलेशनशिप में होना अक्लमंदी नहीं है।लोग क्या कहेंगे? कायदा तो यह कहता है कि उसको तो जीवन का अनुभव था, उसे तुझे समझाना चाहिए था कदम वापस ले लेने के लिए न कि खुद चार कदम आगे आ गया। वसु जो अपनी पत्नी के लिए लॉयल नहीं है जिसके साथ वो दस साल से रह रहा है वो तेरे साथ कैसे होगा? ”

“माँ उनकी वाइफ का किसी से अफेयर है इसलिए वो बहुत दुखी रहते हैं ।”

“और इसलिये उन्होंने रोने के लिए तेरा कन्धा ढूंढ लिया ।”

“माँ उन्होंने नहीं ढूँढा, प्रपोज़ तो मैंने किया था। आज आपका स्वर एकदम बदल गया है।ऐसे तो आप नारी स्वातंत्र्य की बड़ी बड़ी बातें करती थी। अब मेरी बारी आई तो आपका नज़रिया ही बदल गया। मैं बस इतना जानती हूं कि उनमें एक अजीब सा आकर्षण है, उनके हावभाव, उनके बोलने का अंदाज़, एवरी थिंग इज़ सो मेस्मेराईज़िंग दैट आई जस्ट कांन्ट टेल यू । क्लास की सारी लड़कियां उन पर मरती हैं बट आई ऍम लकी कि उन्होंने मुझे अपनाया। आई जस्ट लव बीइंग विद हिम। जब आप उनसे मिलोगे न आप भी इम्प्रेस हो जाओगे ।”

”चल ठीक है कल मिला उनसे। ”

” अरे अभी कैसे। अभी तो तीन चार महीने की हमारी रिलेशनशिप है और मैं उनसे कहूं की मम्मी आपसे मिलना चाहती है तो कितना ऑक्वर्ड हो जाएगा ।”

” मतलब जब सर से ऊपर हो जायेगा पानी तब बचने का रास्ता ढूँढेंगे, राइट? चलो आज हम इस टॉपिक को यहीं बंद करते हैं । पर जो कुछ मैंने कहा उसपर सोचना , फिर बात करेंगे। ”

” माँ यू आर दि बेस्ट।”

खाना खाकर दोनों अपने अपने कमरे में चले गए पर नींद दोनों की आँखों से कोसों दूर थी। दोनों को ही लग रहा था कि अपने मन की पीर को वो कैसे ,किससे साझा करें। सिंगल पेरेंट की समस्याओं से जूझते हुए जैसे नीता ने वसु को पाला था वही जानती थी । नितिन की मृत्यु के बाद, सबने बहुत कहा था उससे दूसरी शादी कर लेने के लिए पर उसने किसी की नहीं सुनी हाँ यह जरूर है कि नीता हर कदम फूक फूक कर उठाती थी, कि कोई उस पर ऊँगली न उठा सके।बेटी के साथ शुरू से ही उसने एक दोस्त सा रिश्ता बना कर रखा ताकि वसुंधरा अपने दिल की हर बात उसके साथ शेयर करे। यही कारण है कि वसुंधरा अपने स्कूल काॅलेज की, अपने दोस्तों की सारी बातें उसे बताती है। दोनों हमउम्र सहेलियों की तरह नाचती, गाती, खिलखिलाती । नीता ने शुरू से यही कोशिश की कि वसु को उसके पिता की कमी महसूस न हो और वसु भी यह महसूस करती थी कि माँ ही उसके लिए सबकुछ है ।

नीता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ज़िंदगी में कभी ऐसा मोड़ भी आएगा कि उसे अपनी बेटी की इच्छा का विरोध करना पड़ेगा, पर जानते बूझते हुए भी वो वसु को कैसे कुएँ में गिर जाने दे, वो तो अभी बच्ची है दूर का सोच नहीं पा रही है। उसने निर्णय कर लिया कि उसे वसु के आनंद की ओर बढ़ते कदमों को रोकना ही होगा। उधेड़बुन में सारी रात आँखों में ही कट गई । यह समस्या ऐसी नहीं थी जिसे मिनटों में सुलझा लिया जाय इसलिए सुबह उठकर नीता ने ऐसे व्यवहार किया जैसे कल रात कुछ बात ही नहीं हुई । वसु भी निश्चिन्त सी दिख रही थी । दोनों माँ बेटी नाश्ता करके अपने अपने काम पर निकल गए ।

दोपहर में नीता जब कॉलेज से पढ़कर वापस आई तो देखा वसु आ चुकी थी ।

”माँ चाय पियोगी?”

”हाँ बना ले बड़ी हुड़क उठ रही है चाय पीने की। आज वैसे भी बोर्ड मीटिंग थी तो बड़ा दिमाग चट गया वहाँ ।”

वसु चाय बना कर बेड पर ही ले आई जहाँ नीता लेटी हुई थी ।

” वाह बेटियों का यही तो सुख है। अभी बेटा होता तो बोलता- मम्मी बड़ी भूख लग रही है कुछ बना के खिला दो ।”

यह सुनकर वसु खिलखिला पड़ी और बोली ” माँ मैं तुमको सारी उम्र ऐसे ही चाय बना कर पिलाना चाहती हूँ ।”

” क्यों ससुराल जाकर अपनी सास को नहीं पिलाना है क्या?”

” फिर तुम्हे कौन पिलाएगा?”

” तब मैं कोई नौकरानी रख लूंगी, जो मेरी सेवा करेगी ।”

” अच्छा यह बताओ माँ कि तुमने दूसरी शादी क्यों नहीं करी थी? ”

” कितनी बार तो बताया पगली, मैं नहीं चाहती थी तुझे कोई भी दुःख हो, तेरा पूरा ध्यान रख सकूँ ।”

” मम्मी इसीलिये तो मैंने आनंद को चुना है।”

” मतलब?”

” मतलब यह कि प्यार तो देखो हो जाता है और वो हो गया आनंद से, पर दूर की सोचो कि कितना अच्छा हुआ। आनंद से मुझे भरपूर प्यार मिलेगा, तवज़्ज़ो मिलेगी, हम मन की बातें शेयर करेंगे, घूमेंगे, फ़िरेंगे, क्वालिटी टाइम स्पेंड करेंगे जब हमारे पास एक दूसरे के लिए समय होगा। और क्या चाहिए जिंदगी में? पर सबसे बड़ी बात कि मेरी आनंद के प्रति, या उसके परिवार के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं होगी । तो मैं हमेशा तुम्हारे पास रहूँगी और तुम्हारी जिम्मेदारी, तुम्हारे बुढ़ापे में उठाऊँगी जैसे तुम मेरे बचपन से अबतक मेरी उठा रही हो। ऐज़ सिम्पल ऐज़ दैट ।”

नीता अवाक् वसुंधरा का मुहं देखती रह गई । उसकी इस नन्ही सी गुड़िया ने कितने दूर की सोच डाली । उसकी आँखों से आँसू बहने लगे ।

” ओ मम्मू अब क्यों रो रही हो? कितना अच्छा साॅल्यूशन मिल गया है हमारे भविष्य का ।”

” अरे पगली ये तो ख़ुशी के आंसू हैं । बेटी और वो भी तेरी जैसी हो तो कोई समस्या सामने आने की जुर्रत कर ही नहीं सकती। पर मैं माँ हूँ बेटा, अपने सुख के लिए तुझे ऐसे बलिदान नहीं करने दूँगी। इतनी दूर की तूने सोची मेरे लिए पर अपने लिए क्या सोचा, जब तू बूढ़ी होगी तो तेरा ध्यान कौन रखेगा? मेरे बाद तेरा कौन होगा?”

” अरे माँ मैंने वो भी सोच लिया। एक बिटिया गोद ले लूंगी, तुम्हें नानी का सुख भी दूँगी। उसे तुम ही एक अच्छा इंसान बनाओगी मेरी तरह ।मेरे बुढ़ापे का सहारा वो बनेगी।’’

निःशब्द नीता ने वसु को अपनी बाँहों में भर लिया । आज उसे लगा जैसे उसकी बिटिया ने उसकी माँ की जगह ले ली हो । ऐसी दो विलक्षण मांओं का मिलन देख कर तो भगवान् भी अपनी इस माँ नाम की कृति पर इतरा रहा होगा ।

मंजु श्रीवास्तव’मन’

वर्जीनिया,अमेरिका

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certified probate real estate specialist

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