अपराधी कौन?

अपराधी कौन?

 

“ले जाओ इसे। तुरंत उठाओ।” डॉ. साहब ने आदेश दिया।

सिस्टर ने सहम कर पूछा “रामा को बुला लाऊँ ? बातचीत सुनाई तो दे रही थी पर समझ नही सकी शीला। वह अर्ध बेहोशी में थी।एक गूँज सी आवाज़ ही सुनाई पड़ी। ” हाँ ले तो वहीं जायेगा,पर,अभी नहीं। अभी नर्सरी में ले जाओ। फिर बाकी काम 3 दिन बाद, अभी मंत्री जी का दौरा है। किसी को पता न चले ध्यान रखो।”सिस्टर तुरंत नवजात लेकर चली गयी।

एक घंटे बाद शीला होश में आयी।दर्द के मारे हिल – डुल नहीं पा रही थी।क्या हुआ होगा?किससे पूछे? कोशिश की भी पर मुहँ से आवाज़ नहीं निकली।दवाइयों की महक से सांस लेना मुश्किल था, दम घुट रहा था।शीला की आँखों की कोर से आँसू निकलने लगे। बस एकटक देखती रही।दूसरी नर्स इधर – उधर मरीज़ों की सेवा में लगी थी।अब उसी का नंबर आएगा। इंतज़ार खत्म हुआ, नर्स उसके पास आयी और बोली,”बच्ची पालने में है।चिंता मत करो।रामा बाद में ले जायेगा।आराम करो’ वह समझ नहीं सकी। कौन किसे ले जायेगा और क्यूँ?

पर नर्स को पता है ऐसे बच्चों का क्या किया जाता है। वह एक दया दृष्टि डाल कर अपने काम में लग गयी।शीला याद करने लगी अब तक हुआ क्या और कैसे? उसकी आँखों के सामने पिछले दिन तैरने लगे।

मासूम शीला वर्षों से परेशानी का सामना कर रही थी। शराबी पिता बचपन में ही घर छोड़ कर चला गया। उसकी याद तक नहीं उसे। माँ जैसे – तैसे घरेलू काम कर घर चलाती थी।बड़ा भाई भी शादी के बाद अलग राह पर चल दिया।माँ कितना सहती और कब तक काम करती ? गरीबी – लाचारी ने उसे टीबी की बीमारी दे दी । इलाज भी कौन कराता ? सो दो साल पहले वह भी भगवान के पास चली गयी। अनाथ शीला कहाँ जाती?कौन जिम्मेदारी लेता ? पड़ोस में दूर के चाचा रहते थे।उन्हीं के यहाँ उसे शरण मिली। वे ठेला चलाते थे। वे भी कैसे पालते उसे? जो कमाते हर दूसरे दिन नशे में उड़ा देते।

किशोरी शीला को वहाँ कुछ भी मुफ्त में नहीं मिला प्यार,स्नेह – सुरक्षा का तो सवाल ही नहीं।उसे भी काम करना पड़ता था। चाची ने उसे तीन घर का काम सौंप दिया और सुबह – शाम की रसोई भी। काम सिखाने के नाम पर चाची उससे सारा काम करवाती। वह भी सिर झुका कर उनकी बात मानती क्यूंकि और कोई चारा था ही कहाँ उसके पास?आस पास का माहौल अच्छा नहीं था, तो एक कमरे के इस घर में ही घुसे रहना पड़ता उसे। तीन साल तो जैसे- तैसे निकले पर पिछली दिवाली पर जीवन में रौशनी नहीं बल्कि आग ही लग गयी मानो।चाची तो बच्चों सहित मायके चली गयीं और ताकीद दे गयीं कि घर बार देखना और काम पर जाना रोज़। रात को दरवाज़े ठीक से बंद कर सोना। सत्रह साल की शीला का खटका उसे लगा रहता था। एक दिन – दिनभर त्यौहार की थकान से उसे नींद लग गयी और दरवाज़ अधखुला रह गया। वही हुआ जिसका डर था। इसका फायदा नशेड़ी चाचा ने उठा लिया। कमज़ोर शीला वहशी चाचा का शिकार बन गयी।अगले दिन चाची आयीं, उन्हें शीला ने बता दिया सब। वे आँसू बहा कर यही बोली “तेरा चच्चा हत्यारा है,,, जानवर,,पर करूँ क्या? ” कहाँ जायँगे हम -तुम ? इसी पापी को ही जाना पड़ेगा यहाँ से। छोडूंगी नही इसे।कठोर चाची भी पिघल गयी थी शीला के दर्द से।झाड़ू उठा कर भागी तो चाचा उसका क्रोधित रूप देख कर सच में भाग गया।

दिन ब दिन शीला का शरीर पाप की गवाही देने लगा इस बदलाव को देख चाची रोती रहती और शीला भय से कोठरी में बंद हो गयी।सब काम काज छूट गया। दिन बीतते गए पर कष्ट और आशंका कम नहीं हुई।अनाथ शीला जाती भी कहाँ ? पाप किसी और का पर बोझ उसे उठाना पड़ रहा था।समय आया तो चाची ने उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया। क्या करती उसे भी रोटी पानी के लिए काम से फुर्सत कहाँ ? मर्मान्तक पीड़ा , जिसका आज अंत तो हुआ पर नये रूप में दुगुना हो कर सामने थी।

सोच सोच कर शीला बेचैन हो उठी क्या करे ? एक मरीज़ा के भाई को आते -जाते देखती थी ,वह बिना नजर इधर – उधर डाले अपनी बहन को देखने आता था। सज्जन सा दिखता था। हर शाम वह खाने – पीने का सामान देकर चला जाता।आज जब वह आया तो शीला ने हिम्मत कर उसे इशारे से बुलाया और पूछा ” भैया मदद करोगे मेरी ?

‘ हम्म्मम्म!बोलो ! जानती तो नहीं हो मुझे, मेरा नाम कमल है “।

— नहीं, आपकी बहन को देखा है बस। कुछ कहना चाहती हूँ, सुनेंगे ?

—-: बोलो, कोई दिक्क़त है ?

शीला फूट पड़ी रो – रो कर हाल सुना दिया। द्रवित हो कमल बोला –” सोचता हूँ कुछ । ”

रोते, -रोते शीला की आँखेँ सूज गयीं। पाँचवे दिन छुट्टी हुई तो उसने घर जाने से इँकार कर दिया।लेने आयी चाची को नज़र उठा कर देखा जरूर पर करवट बदल ली।चाची की चिरौरी काम न आयी। नर्स के कहने पर भी नहीं गयी।बाहर बरामदे में बैठी सुबकती रही रात हो गई पर गयी नहीं बाहर भी कहीं। अचानक देखा अँधेरे से निकल कर कमल हाथों में कुछ साधे दौड़ा आ रहा है।सीधा डॉ. के पास पहुँच कर चीखा ,” डॉ, इसे देखिये न ? एडमिट कीजिये।”

डॉ. ने पूछा-” ये कौन , इतनी छोटी बेबी “?

कमल झट से बोला” मेरी दोस्त की बेटी है।” बगीचे में गिर गयी थी। डॉ. ने कपड़ा उठा कर देखा और चौंक गए। समझ गए कि इस बार रामा चूक गया। बच्ची बच गयी।पर कुछ बोल नहीं सके। बच्ची मिट्टी से लिपटी और काँटों से बिंधी थी।कहीं कहीं खून के लाल निशान, जो उसकी बेकदरी की कहानी कह रहे थे। हालत भी बहुत ख़राब थी।

कमल बोला “डॉ. जल्दी कीजिये न इलाज ?” उसके तेवर देख तुरंत डॉ. ने सिस्टर से कहा “जाओ ले जाओ,सफाई करो, आता हूँ।”

‘देखिए यह सीरियस है।’ – कमल की तीखी नज़र का वह सामना नहीं कर सके सिर हिला कर अपने रूम में चले गए।

इतने में शीला आ गयी,उसे देख कर जमीन पर बैठ गयी। कमज़ोर आवाज़ में पूछा — “अब क्या होगा साब, कहाँ जाऊँगी ? कमल ने शीला को उठा कर बेंच पर बिठाया। समझाया,” तुम कमज़ोर हो अभी। हिम्मत रखो। कुछ दिन हम साथ रखेंगे।फिर जैसा कहोगी, वैसा इंतज़ाम कर देंगे।” आराम से बैठो, आता हूँ मैं।

कमल अपनी बहन के पास गया “दीदी ! नर्स ने पूछा तो पता लगा। बच्ची कूड़े के ढेर पर मिली।पता नहीं बचे या नहीं ? अभी यह भी बहुत कमज़ोर है। लगता है इसे खाना भी पूरा नहीं मिला हो कभी । फिर ऐसे में कोई जगह नहीं इसके लिए। क्या अब यह तुम्हारे साथ रह सकती है?कुछ दिन के लिए सही,इसे रख लो। मेरे कहने से।तुम्हारे यहाँ बाई आती है तुम दोनों की देखभाल कर देगी वह,थोड़ा इसका भी काम। उसे पैसे अलग से दे देंगे।ठीक होते ही इसकी कहीं और व्यवस्था करनी होगी, ठीक है न?”

” लड़का तो कोई भी गोद ले लेता… लड़की है,वह भी मरणासन्न।” पता नहीं बचे न बचे। अच्छा सोचो तो आप।”? कमल के चेहरे पर आते – जाते दुख और संवेदना के भाव देख बहन उसके हाथ पर हाथ रख कर सांत्वना ही दे सकी ।बोली ” जो दिल करे वही करो कमल, पर सावधानी से। पुलिस का चक़्कर न हो बस । ”

— हाँ,दीदी, ये भी आपने सही कहा। पर कुछ नहीं होगा। डॉ. खुद फंस जायेगा इसलिए। आप चिंता न करो। कुछ गलत नहीं होगा। ” कह कमल ने राहत की सांस ली और बहन को देख कर मुस्कुरा दिया।

बाहर शीला इंतज़ार कर रही थी, डॉ. वहाँ से निकले। दोनों ने एक- दूसरे को सवाली नज़रों से देखा फिर दोनों की आँखें नीची हो गयीं। जवाब होता भी क्या ? जो हुआ उसका अपराध कौन ?

महिमा शुक्ला 

इंदौर, भारत

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Samidha
Samidha
1 month ago

adbhut

Mahima shukla
Mahima shukla
1 month ago

धन्यवाद 💐