नज़रिया

नज़रिया  

कोरोना काल में समय कैसे गुजर जाता है पता ही नही चलता, एक दिन नीलू ने सोचा कि क्यों ना आज सुबह सुबह माया दीदी से बात की जाये ,फोन उठाया –दीदी कैसे हो,जीजाजी कैसे है,आपके शहर में कोरोना की स्थिति कैसी है?

माया –अरे साँस तो लेने दो,कितने सवाल करोगी??

हम सब लोग अच्छे है,तू बता तू कैसी है ??

अरे पूछो मत,बड़े बुरे हाल है, नौकरानियां भी नही आ रही हैं, अंकित और पूजा भी आये हुए हैं ,समय ही नही मिलता बहू बेटे का ऑनलाइन वर्क फ्रॉम होम रहता है। छोटे नायरा और वंश को भी देखना पड़ता है,इस उम्र में अब ये सब नही होता,मेरी तो कमर ने जवाब दे दिया है,ये भी तो पूरा समय घर पर ही रहते है,पता नही इस कोरोना से कब मुक्ति मिलेगी??

अच्छा छोड़ो आप बताओ आप कैसी हो??आज आपकी आवाज में वह शिकायत वाला लहजा नही है,आप को तो हमेशा शिकायत रहती थी ना, कि तेरे जीजाजी के पास तो मेरे लिए समय ही नही है,आकाश भी अपनी, नौकरी गृहस्थी में व्यस्त है,अब तो सब घर पर ही होंगे ना?

उधर से माया दीदी की प्रसन्नचित्त आवाज आई —- अरे नीलू में बहुत खुश हूं,इतने सालों बाद सब एकसाथ है,तेरे जीजाजी भी अब पास बैठकर हँसी मजाक भी कर लेते हैं ।घर में अब फिर से उनके चुटकुलों की फुलझड़ियां छूटने लगी हैं,लगता है वही पुराने शादी के बाद वाले दिन लौट आये,भविष्य की प्लानिंग कर रहे हैं,और आकाश की तो पुछो ही मत दिन भर कहता रहता है मम्मी यह बनाओ वह बनाओ,आप के हाथ के खाने की तो बात ही और कुछ है, जरा किरण को भी सीखा दो,बहू भी कहती है मम्मी आप मुझे खाना बनाना सीखा दो,आकाश को तो हमेशा मुझसे शिकायत रहती है कि तुम्हे मम्मी जैसा खाना बनाना आता ही नही,कभी समय मिले तो मम्मी के पास जाकर रहेंगे,सीख लेना।

 

किरण खाने की सारी तैयारी कर देती है मुझे ,और बच्चे अर्णव गीतिका दिन भर दादी दादाजी के आस पास ही खेलते रहते है,और रात में जब तक दादा दादी से कहानियां नही सुन लेते,अपने मम्मी पापा के पास सोने ही नही जाते ,मुझे तो इस कोरोना ने नया जीवन दे दिया। तेरे जीजाजी का बी पी अब नॉर्मल रहने लगा है,मुझे भी अब टेंशन कम रहने लगी है,अम्माजी (सासुमाँ )भी अब पहले की अपेक्षा ज्यादा खुश रहने लगी है,पूरा परिवार उन्हें एक-साथ जो दिखता है,इस उम्र में और क्या चाहिये,सच कहूं नीलू अब वो सारी शिकवे शिकायते दूर हो गई, पहले तो इतना बड़ा घर काटने को दौड़ता था,अब सारे दिन बच्चों की धमा चौकड़ी से गूँजता रहता है,लगता है मकान मेरा घर बन गया।

 

कोरोना से परेशानी तो बहुत हो रही है, दिक्कतें भी बहुत है ।टी वी को तो देखने का मन ही नही करता, कोरोना ने सभी की कमर तोड़ दी है , अपने गांव का रामू काका का छोटू जिसने यहाँ आकर चाट का ठेला लगाना शुरु कर अपने परिवार के साथ रहता था,वो भी अपने परिवार को ले गांव चला गया है,चाट का ठेला बन्द हो गया ,जाते समय बोला दीदी में गाँव वापिस जा रहा हूं।मैंने कहाँ छोटू तेरी चाट बहुत याद आयेगी।

 

नीलू — हां!दीदी यहाँ भी यही हाल है कहने को जी कर रहा है कि—

सीने में जलन है ,आंखों में तुफान है

इस शहर का हर शख़्स परेशान है।

 

आपकी तो बहू सब कर लेती है ,पर मेरी बहू का तो जॉब है,बहुत अच्छी पोस्ट पर है,वर्क फ्रॉम होम होने से उसे समय ही नही मिलता,पोता पोती छोटे हैं,उन्हें भी देखना पड़ता है। पिंकी भी आठ दिनों के लिए आई थी अचानक लॉक डाउन में यही अटक गई,उसका भी वर्क फ्रॉम होम है उसका भी बेटा छोटा है।मेरी तो इन बच्चों को संभालते संभालते हालत पतली हो गई है, इस सब पर कामवाली कोरोना पॉज़िटिव होने से काम ने अलग कमर तोड़ दी है।अब तो लगता है कब ये कोरोना जाएगा और हालत पहले जैसे होंगे?बिल्कुल थक चुकी हूं अब इस उम्र में इतनी ज़िम्मेदारी संभाली नही जाती,इनको ज्यादा समय नही दे पाती तो ये अलग चिड़चिड़ करते हैं।

 

माया दीदी -नीलू सच कहूँ मुझे बहुत अच्छा लग रहा है,आज सुबह सुबह तेरे जीजाजी के साथ बगीचे में बैठे बैठे बड़ा ही मनोहारी दृश्य देखा, आकाश की लालिमा मन को आल्हादित कर गई मस्त आज़ाद पंछियों को चहचहाते देखा,लगा मानों सारा का सारा झुंड़ कही किसी महोत्सव में जा रहा है, बग़ीचे की हरियाली और हवा चलते ही मस्ती में झूमते फूलों ने हवाओ में सुगंध बिखेर दी।सच में विश्वास ही नही हो रहा की मई का महीना शुरू है,अरे यहां कल तो एक मोर भी भटकता हुआ आ पहुंचा ।खबर फैलते ही सारी कॉलोनी के लोग उसे देखने घर के बाहर आ गये , वरना आजकल तो किसी की शक्ल भी नज़र नही आती ।आजकल हमारी कॉलोनी में एक पेड़ पर मिट्ठुओं का झुंड भी शाम को आता है ,पूरे पेड़ पर सिर्फ और सिर्फ हरे हरे मिट्ठू ही नजर आते है ,और कोई कोलाहल नही,सरपट दौड़ती उन गाड़ियों की आवाज़ भी नही,सुना है नदियों का पानी इतना स्वच्छ हो गया है कि नदी की सतह का पत्थर भी नजर आने लगा है।सच प्रकृति तो प्रदूषण मुक्त हो गयी है,और तो और कुछ समाज सेवी संगठन बड़ी ही आत्मीयता से लोगों की मदद कर रहे हैं, गरीबों को खाना पहुंचाने का काम कर रहे हैं, हमारे पड़ोसी है ना जैन साहब उनका बेटा उसकी संगठना से जुड़े लोग,जब से लॉक डाउन लगा है तब से आज तक 200 से 250 लोगो को रोज खाना पहुंचाते है,सब मिलकर स्वयं बनाते है,ये बात तो है हमारे देश में दानदाताओं की कमी नही,सभी समाज बढ़चढ़ कर मदत के लिए स्वयं स्फूर्ति से आगे आ रहे है,देश के डॉक्टर नर्सेस,सेवा कर्मी सफाई कर्मी पुलिस कर्मी ,छोटे छोटे दुकानदार, सब्जीवाले अपनी जान हथेली पर रख लोगो की सेवा कर रहे है,अद्भुत नजारा है,सही में आज ये लोग देश के वीर योद्धाओं की तरह लोगो की कोरोना दुश्मन से जान बचा रहे है, और अपने प्राण भी गवाँ रहे है

 

नीलू —- दीदी ये सिक्के का एक पहलू ह।प्रकृति तो प्रदूषण मुक्त हो गई पर कुछ इंसानों ने अपनी लालची फितरतें नही छोड़ीं,हमारे पड़ोस में रहने वाले गेंदलालजी को तो आप जानती हो, उन्हीं का बड़ा बेटा को कोरोना हो गया था, हॉस्पिटल में भर्ती था,रोज घरवालों से बात भी करता था ।सब ठीक था ।2 दिनों से अचानक उसका फ़ोन आना बंद हो गया। घरवालों को जब कुछ अटपटा लगा तो उन्होंने जानने की कोशिश की,पर हॉस्पिटल से कोई सही जवाब नही देता था,और दो दिन बाद फ़ोन आया हॉस्पिटल से कि आपके बेटे की मौत हो गयी,घरवालों को विश्वास नही हो रहा था, बॉडी तो वैसे भी लपेट कर रखते है सिर्फ दो गज की दूरी से देखने देते हैं। पर कुछ रसूखदार लोगों से उपर तक पहचान होने से उन्हें बॉडी बड़ी मुश्किल से मिली, दिल दहलाने वाली बात थी कि उसके बॉडी के सारे अवयव नदारत थे,आंखों सहित।

 

सचमुच इस महामारी में भी लोगों ने इसका व्यावसायीकरण कर दिया हैं ,इतनी लूटखचोट मची है कि पूछो मत ,अनाप – शनाप बिल आते हैं। पैसेवालों का कुछ नही पर मध्यम वर्ग क्या करें?? इंसानियत मर चुकी है,किसी पर विश्वास कर नही सकते। अब तो अपनी जान अपने हाथ मे है, सुरक्षित रहेंगे तो जिंदा रहेंगे,वरना जान से भी जायेंगे औऱ ज़ायदाद से भी।

 

माया दीदी –क्या कह रही हो ,वो गेंदालाल जी का बड़ा बेटा वही तो कर्ता-धर्ता था घर का,गेंदलालजी तो पहले से ही बीमार रहते हैं।ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दे— सचमुच कुछ इंसानी चोलों में आज भी शैतान छिपे बैठे हैं । मानों इन्सानियत अब बची ही नही,इतनी बड़ी महामारी से भी इंसान सबक नही सीखता तो क्या कहें?हर स्थिति -परिस्थिति को देखने का अपना अपना नज़रिया है।

 

कोई पंछियों के लिए जाल बिछाता हैं,तो कोई पंछियों के लिए दानापानी रखता हैं।

 

लता सिंघई, 

अमरावती, भारत

0
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments