गीली हुई क़िताब
आज सारे घर में सुबह से ही किसी उत्सव सा माहौल था। आखिर घर भर के आँखों के तारे गोलू बाबू अरे.. नहीं भाई माफ़ करना … श्रीमान चिन्मय नीलकंठ जोशी आज पहली बार विद्यालय जो जा रहे है। वैसे उन्हें घर में ही दादी ने कई श्लोक पथ करवा दिए थे। दादा जी ने हिंदी और छोटे चाचा ने अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर सीखा दिए थे। श्रीमान चिन्मय जी ने भी विद्यालय जाने के लिए कम तैयारियां नहीं की थी। परसों ही छोटे चाचा के साथ जाकर अपने बाल कटवाकर आये थे। दादाजी कहते है कि उनके ज़माने में शिक्षक बालों को पकड़कर जोर से खींचते है, इसलिए छोटे-छोटे बालों को तो वह पकड़ भी नहीं पाएंगे। गोलू बाबू का दिमाग ऐसी बातों में किसी रोबोट से भी तेज चलता है।
हमारे गोलू बाबू यानी चिन्मय शहर से अम्मा और पिता जी के साथ एक बड़ा सा लाल रंग का बस्ता, लाल रंग के कवर वाला टिफ़िन और पानी की बोतल ले कर आ गए है । उसकी अम्मा ने उसके लिए प्लास्टिक की नहीं, बल्कि स्टील के टिफ़िन बॉक्स और पानी की बोतल ली थी। अम्मा का कहना है कि प्लास्टिक का उपयोग खाने पीने के पदार्थों के लिए करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। गोलू को तो अम्मा जो भी कहती है, वह सब बातें सच्ची लगती है। वैसे वह दादाजी और दादीजी की भी सभी बातें मानता है, पर चाचा और बुआ की बाते उसे आधी सच्ची और आधी झूठी लगती है। जब भी उसे चाचा की किसी बात पर ज़रा सी भी भी शंका हो, वह सीधे जाकर झबरे के पास जाता और उसे वह बात सुनाता। अगर झबरा मुँह उठाकर ख़ुशी से गाने लगता तो वह जान जाता की चाचा की बात सच्ची है, पर अगर झबरा गुस्से में भोंकने लगता तो वह समझ जाता कि चाचा ने आज उसके साथ फिर शैतानी की है। अब जैसे पिछले हफ्ते जब चाचा ने उसे कहा कि उसे तो उसके पिताजी शहर से दो रुपये में खरीदकर लाये है तो इस बात पर झबरे ने भोंक भोंक कर अपने गुस्से का इजहार किया था। इसके बाद तो गोलू ने दादी से कहकर चाचा की वो परेड कराई थी कि पूछो ही मत। दादी ने चाचा से कहा था “सुन छोटे, अगर तूने मेरे लड्डू गोपाल से कुछ भी गलत बात की तो मैं तेरा मकान धुप में बाँध दूँगी। यह बात सुनकर कि अब चाचा धुप में रहेगा उसे बड़ा मजा आया था।
पाठशाला जाने वाले दिन सबसे पहले अम्मा ने उसे अच्छी तरह से खुशबु वाले तेल और उबटन से मालिश कर के गरम गरम पानी से नहलाया। उसे तो लग रहा था जैसे उसका जन्मदिन है या दिवाली आ गई है। फिर दादी उसे अपने साथ पूजाघर में भगवानजी के सामने ले गई और उसके हाथों से भगवानजी पर हल्दी-कुंकु और फूल अर्पण करवाएँ, और फिर प्रसाद के पेढ़े को उसके मुँह में डालते हुए बोली कि “जाओ और पाठशाला में अपने दादाजी और पिताजी के जैसे नाम करना और पढ़-लिख कर नेक इंसान बनना।“
अम्मा ने कहा “मैंने अभी तुम्हारी किताबों पर जिल्द नहीं चढ़ाई है तो इन्हे ख़राब मत करना। मैं आज शाम को जिल्द चढ़ा दूँगी।” दादी ने उसकी सभी पुस्तकों पर स्वस्तिक का निशान बनाया और श्री गणेशाय नम: और श्री सरस्वत्यै नम: लिख दिया। उसने घर में सब के पाँव छुएँ और भूरी गाय के सामने प्रणाम करें झुका तो भूरी उसे वैसे ही प्यार से चाटने लगी जैसे वह अपनी बछिया को प्यार करती थी।
फिर चिन्मय बाबू की सवारी उसके चाचा की फटफटी पर बड़ी शान से पाठशाला की ओर निकल पड़ी। अम्मा ने उसके मनपसंद आलू के परांठे नाश्ते के लिए साथ में बांध ही दिए थे। वह तो झबरा को दरवाजे पर ही पिताजी ने पकड़ लिया, नहीं तो वह भी फटफटी के पीछे पीछे पाठशाला आ जाता।
चिन्मय बाबू को पाठशाला में उसके हमउम्र कई बच्चे मिल गए, कुछ को तो वह जानता भी था जैसे मंदिर के दिनु माली का बेटा सूरज, इंजीनियर साहब का बेटा अक्षय, डॉक्टर साहब की बेटी श्रद्धा और भी बहुत से बच्चे थे। अब तो सारा समय कैसे नई नई बातें सीखने में और बच्चों के साथ खेलने में निकल जाता था, पता ही नहीं चलता था। चिन्मय बहुत ही होशियार था ।गुरु जी द्वारा सिखाये सभी पाठ ठीक से याद कर रहा था। अब उसे प्रति दिन पाठशाला जाना अच्छा लगने लगा था।
घर आने के बाद तो उसका स्वागत ऐसे होता, जैसे वह कोई इनाम जीतकर आया हो। दादा जी आकर उसे फटफटी से उतारते। दादी अपनी साड़ी के पल्लू से उसका मुंह पोछती और कहती “मेरे लड्डू गोपाल के चेहरे और बालों में कितनी धूल ही धूल हो गई है, बहुरिया ज़रा तेल तो देना मैं इसकी चम्पी मालिश कर दूँ।” सबसे निपटकर वह सीधा झबरे के पास जाता। उसने झबरा को अपनी हिंदी की पुस्तक “रिमझिम”, अंग्रेजी की पुस्तक “मेरी गोल्ड” और गणित की किताब “मैथ मैजिक” का एक एक पन्ना खोलकर दिखाता। झबरा भी मुँह उपर कर के अपनी ख़ुशी जोर शोर से प्रकट करता । उसने दादी को A, B, C और D भी पढ़ना प्रारम्भ कर दिया था। गोलू के पास आजकल दादी को सुनाने के लिए अपनी पाठशाला की बहुत से बाते होती थी। वैसे उसे पाठशाला जाते हुए सिर्फ पांच दिन ही हुए थे, पर उसे और घर वालों को लगने लगा था की वह न जाने कब से पढाई कर रहा है। जब चाचा ने कहा कि “यह बस थोड़े दिनों का उत्साह है” तो गोलू ने उसे दादी की धमकी दी। उसकी धमकी सुनकर चाचा चुपचाप वहाँ से खिसक गया।
उसे पाठशाला जाते हुए पूरा एक सप्ताह हो गया था। आज छुट्टी का दिन रविवार आ गया था तो दादी ने उसकी अम्मा से कहा कि ” आज मेरे लड्डू गोपाल” को जल्दी मत उठाना, उसे सोने देना।” पर आज भी वह सुबह सवेरे उठ गया था। वह बाहर जाकर दादा जी के साथ भूरी गाय को चारा देने लगा।
दोपहर को खाना खाकर दादा जी बाहर आँगन में खटिया बिछाकर लेट गए तो वह झट से उनके पास चला गया और कहने लगा “दादाजी कहानी सुनाओ न”। दादा जी ने भी प्यार से उसे अपनी और खींचते हुए कहानी शुरू की “एक गांव में एक लड़का था बुरुनाथ, जो हमेशा झूठ बोलता था कि शेर आया , शेर आया, पर बाद में जब सच्ची में शेर आया तो कोई भी उसकी मदद करने नहीं आया, इसलिए कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए”
उधर उसकी अम्मा ने सोचा कि पुरे सप्ताह वह चिन्मय की किताबों पर जिल्द नहीं चढ़ा पाई थी तो आज चढ़ा देती हूँ। पर जब उसने बस्ता खोला तो देखा की तीनों किताबें गीली होकर फिर से सुखाई गई थी और जिसकी वजह से उनकी छपाई धुंधली हो गई थी। एक ही सप्ताह में किताबों की यह हालत देखकर उसे गुस्सा आ गया। उसने बैठक से ही चिन्मय को आवाज दी। उसकी आवाज से ही घर के सब लोग समझ गए थे कि आज गोलू को डाँट पड़ने वाली है। उसकी दादी पूजाघर से बैठक में आ गई। तब तक अम्मा ने उसके सामने सभी किताबें रखकर पूछा “अपनी किताबों को कहाँ पर गीली कर के आये हों ? बताओं तो ?”
गोलू ने कहा ” मेरे हाथों से यह किताबें मैदान में जमा हुए पानी में गिर गई थी। ”
यह सुनकर अम्मा नाराज हो गई ” देखो तो चार पांच दिनों में ही कैसी पुरानी सी कर दी है, तुम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो, बोलो तो ?”
उसकी अम्मा की तेज आवाज़ सुनकर झबरा भी बैठक में आ गया और अम्मा को देखकर भोंकने लगा, पर जब अम्मा ने कहा “सुनो ज़रा अपनी बेंत तो निकालो, आज इन दोनों को सीधा करती हूँ” तो झबरा दुबककर दादाजी के पीछे छुप गया।”
दादी ने अपने लड्डू गोपाल को अपनी तरफ खींचते हए कहा “बहुरिया, इत्ती से बात पर मेरे लड्डू गोपाल को मत डाँटो, मैं कल ही इसके लिए नई किताबे मंगा दूँगी और वह भी एक नहीं, दो दो सेट”
तब पिताजी बोले “माँ, बात किताबों की नहीं हैं, जिम्मेदारी और अनुशासन की है।”
दादी बोली “सुनो लल्ला, तुम्हारे ये फ़ौज के नियम मेरे लड्डू गोपाल पर मत लगाओ । ”
फिर दादी ने अम्मा के हाथों से किताबें ले ली और कहा “लाओ अभी छोटे से कहकर बाजार से मंगा देती हूँ” पर जब दादी ने किताबें देखी तो बोली “अरे यह तो अपनी किताबें नहीं हैं। अपनी किताबों पर तो मैंने खुद ने स्वस्तिक बनाकर, श्री गणेशाय नम: भी लिखा था। यह तो किसी और की दिख रही है।”
तब तक दादाजी भी बैठक में आ गए थे और उन्होंने उसे प्यार से गोद में लेते हुए पूछा “ये किसकी किताबें हैं ?”
उसने डबडबाई आँखों से कहा कि “यह मंदिर वाले दिनु माली के बेटे सूरज की किताबें हैं, जो उसके बड़े भैय्या के समय खरीदी थी। परसों तेज बारिश में उनके घर की टीन वाली छत से पानी टपका तो उसकी किताबें गीली हो गई थी। उसे पढ़ने में परेशानी होती है क्योंकि उसके घर में तो लाईट भी तेज नहीं है।”
चाचा बोला “समझ गया अपने घर में तेज रौशनी वाले बल्ब है न। कितना समझदार है अपना गोलू।”
दादा बोले ” मैं कल ही पाठशाला जाकर सभी बच्चों के पास ठीक से किताबें हैं कि नहीं देखूंगा और नहीं होंगी तो उन्हें ला दूँगा। साथ ही सरपंच जी से कहकर सभी कच्चे घरों की छतों की मरम्मत करवाऊँगा।”
पिताजी बोले “तेज रौशनी और कम बिजली खपत के लिए सबके घरों में LED बल्ब भी लगवाना चाहिए।”
गोलू जो अब चिन्मय बन रहा था, दादाजी की गोद से उतरकर अम्मा के पास जाके बोला “अम्मा अब मैं आपसे हमेशा ही सच बोलूंगा, कुछ भी छुपाऊंगा नहीं. मैं बुरुनाथ नहीं हूँ ।
सभी एकसाथ बोल उठे “तुम तो दोस्तों की मदद करते हो, तुम तो गुरुनाथ हो भाई”
झबरा भी खुश होकर उनके साथ सुर मिलाने लगा।
डॉ. नितीन उपाध्ये
दुबई, यूएई
बच्चों और घर के बड़ो के लिए बहुत ही ज्ञानवर्धक और उत्तम आचरण बनाने और सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरणादायक कहानी है । वैसे तो ऐसी ज्ञानवर्धक उच्च आचरण को मजबुत करने हेतु किसी स्टार की आवश्यकता नही फिर भी ये 5***** वाली कहानी है, जो गल्ती से 2 नं दब गया ।