एक थी कल्ली
तूने आज फिर मुझे रुला दिया कल्ली। अपनी पच्चीस बरस की नौकरी में तेरी जैसी न जाने कितनी छोरियां इस बाल सुधार गृह में आई और चली गई। लेकिन तूने तो पहले दिन से ही …. ऐसा किया जिसे कोई नहीं भूल सकता।
चोरी चकारी, मारपीट, हुल्लड़बाजी, गाली गलौच और फिर तो जेब कतरी, भीड़ भाड़ में सामान चुराने वाली तू न जाने कितने अपराधों में लिप्त जब इस सुधार केंद्र में लाई गई तो वही हंगामा, खाने की थाली फैंक देना साथी छोरियों से मारपीट करना। ऐसा कोई नहीं जिसकी नाक में तूने दम ना किया हो। पहले ही दिन तूने सारी हदों को पार कर दिया जब समझाने पर मेरी बाजू को काट लिया। पूरे के पूरे दांत उभर आए थे और खून बहने लगा। मैं दर्द के मारे चीख उठी और रोने लगी।
सारे बच्चे जो मेरी आँख के इशारे से डरते थे और मेरी एक फटकार से सहम जाते थे,आज उनके सामने तूने मुझको ही डरा दिया और रोने पर मजबूर कर दिया। सब सोच रहे थे कि अब मैं तेरा क्या हाल करूँगी। लेकिन उस समय तो मुझे प्राथमिक उपचार के बाद दो दिन की छुट्टी देकर घर भेज दिया गया। बाद में मुझे पता चला कि तूने उस दिन से खाना पीना छोड़ दिया। किसी से बातचीत भी नहीं कर रही तो मेरी समझ नहीं आया। तेरे जैसी छोरी से मैं ये उम्मीद तो कभी कर ही नहीं सकती थी।
दो दिन के बाद जब मैं डयूटी पे वापस आ कर सीधे तेरे पास गई और पूछा कि रोटी क्यूँ ना खा रही ? तूने कोई जवाब नहीं दिया और मेरी आँखों में झांक कर नजरें नीची कर ली। मैंने तेरे सर पे हाथ रखा और सहलाते हुए फिर कहा रोटी क्यूँ ना खा रही। और उसके बाद जो हुआ उसने मुझे फिर से रुला दिया … तू मुझसे लिपट गई और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी …. तुझे हिचकियों से रोते देख न जाने कैसे मुझे भी रोना आ गया।
बाल सुधार गृह में नियमित रूप से डॉक्टर और मनोचिकित्सक भी आते हैं। तेरे बारे में उनसे भी राय ली गई तो पता चला कि ऐसे बच्चों का मन किसी ओर तरफ मोड़ना जरूरी है। और उसके बाद जो हुआ वो तो इतिहास है। तेरी रुचि को जाँचा परखा गया और उसके बाद स्पोर्ट्स में डालने का फैसला हुआ। सुधार गृह में यूँ तो अनेक खेलों के साथ आर्ट्स और क्राफ्ट्स की ट्रेनिंग भी दी जाती है लेकिन तू तैयार नहीं हुई। उस घटना के बाद तेरे स्वभाव में बदलाव आश्चर्यजनक था। तुझे तैयार करने की जिम्मेवारी भी फिर मेरे ऊपर ही डाली गई।
मेरे समझाने का असर कहूँ या तेरी समझ कहूँ तू खेलकूद में जाने को तैयार हो गई।
छह महीने बीत गए एक दिन स्पोर्ट्स टीचर मेरे पास आए और बोले मेम कहते हैं ना हीरा कोयले की खान से निकलता है, सच कहते हैं। मैंने बोला पहेलियां न बुझाओ बात बताओ क्या है?तो बोले ये जो छोरी है कल्ली इसमें है ऐसी बात ये कुछ कमाल कर सकती है। आप बस इसके लिए एक्पर्ट कोच की व्यवस्था करवा दो देखना ये क्या करती है।
इधर तेरे भीतर आए बदलाव से सभी लोग चकित थे …. सबके साथ हंसी मजाक करना पूरे सुधार गृह में बस तेरी चर्चा होती थी। और उस दिन ….रात के बारह बजे ही थे कि मेरे क्वार्टर के दरवाजे की बैल बजी, टाइम देख कर मुझे समझ नहीं आया इस समय कौन आया होगा। गेट खोला तो सामने कल्ली खड़ी थी साथ में तीन चार लड़कियां और सब जोर जोर से ‘हैप्पी बर्ड डे मेम….हैप्पी बर्ड डे मेम’… चिल्लाते हुए भीतर आ गई। कल्ली के हाथ में केक का डिब्बा और बाकी सब लड़कियों के हाथ में गुलाब की कली देख मैं खुशी के मारे झूम उठी। केक का डिब्बा खोला गया। केक पर लिखा था “हैप्पी बर्थडे माँ” पढ़ कर मैं अवाक रह गई। केक काटने के बाद मैंने पूछा ये किसने मंगवाया तो डरते डरते लड़कियों ने कहा मेम.. कल्ली ने। मैंने जैसे ही कल्ली की ओर देखा वो मुझसे लिपट गई और मेरी भी आँखे छलछला गई। कल्ली लेकिन अपनी शैतानी से बाज नहीं आई। केक का टुकड़ा मेरे मुंह में डालते हुए मेरे पूरे चेहरे पर केक पोत दिया। सारी लड़कियां ताली बजा बजा कर हंसने लगी।
सभी लोगों को हैरानी होती थी कि लगभग चौदह पन्द्रह बरस की ये लड़की जिसने इतनी सी उम्र में ऐसे ऐसे क्राइम किए जो बड़े बड़े शातिर अपराधी भी नहीं कर पाते और सज़ा के रूप में लाई गई इस बाल सुधार गृह में एक साल के भीतर ही इसने सबका मन जीत लिया। हंसना मुस्कुराना सबके साथ दोस्ताना और हर काम में आगे रहना यही पहचान बन गई थी उसकी।
और उस दिन जब उसके कोच ने आ कर बताया कि मेम स्टेट तीरंदाजी प्रतियोगिता में कल्ली को भाग लेने की परमिशन चाहिए तो मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने जोर देकर पूछा, “कल्ली ? तीरंदाजी प्रतियोगिता में ? वो भी स्टेट लेवल ? आप क्या कह रहे हैं कोच साहब ?”
“जी मैं ठीक कह रहा हूँ …आप परमिशन तो दीजिए।” तीन दिन बाद अपनी मोहक मुस्कान के साथ कल्ली लौटी तो गले में पदक और हाथ में कप लिए यूँ झूम रही थी मानों कितनी बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली उसने। मेरे पाँव छुए तो मैंने गले लगा कर आशीर्वाद दिया बेटा एक दिन नेशनल जीतना और फिर हमारे देश का नाम करना।
उस दिन शाम वो मुझसे मिलने क्वार्टर पे आई तो चेहरे की चिरपरिचित मुस्कान गायब थी। मैंने उसे बैठाते हुए पूछा क्या बात है बेटा तुम आज उदास लग रही हो। बिना कुछ बोले मुझसे लिपट गई और रोने लगी उसकी पीठ सहलाते हुए मैंने फिर पूछा बताओ भी क्या हुआ? चुप्पी तोड़ते हुए उसने बोला मेम जी…. क्या हम लड़कियाँ कचरे में फैंकने के लिए पैदा होती है ? मैंने कहा नहीं तो, तुमसे किसने कहा बताओ। अपनी आँखें पोंछते हुए उसने बताया …. मेरे माता पिता ने मुझे कूड़ा समझ कर कचरे में फैंक दिया फिर जिसने वहाँ से उठा कर पाला, वो भी यही कहती थी कल्ली हम औरतें कूड़ा ही होती हैं रे। हमारा जन्म इसीलिए होता है कि हर कोई हमें इस्तेमाल करता है और कचरे में फैंक देता है। मैं बचपन से अम्मा के साथ कचरा बीनने लगी और धीरे धीरे चोरी चकारी अपराध में जाती चली गई। एक दिन अम्मा भी मर गई वो ही मेरा सहारा थी बस। लेकिन यहां आने के बाद जब से आपको देखा तो लगा मेरी माँ भी आपके जैसी होगी। आपने उस दिन प्यार से मेरे सर को सहलाया तो मुझे लगा जैसे आप ही मेरी माँ हो।” और कल्ली फिर से रो पड़ी।
उसको ढाँढस देते हुए मैंने कहा,” नहीं रे कल्ली! हम लड़कियाँ कचरा नहीं है रे.. लेकिन अपने को कचरा बनने से रोकने के लिए हमें निरन्तर लड़ना पड़ता है। संघर्ष करना पड़ता है। तुमने उसी संघर्ष और मेहनत से जो हासिल किया है उसे देख कर कौन कहेगा कि तुम कचरे में फैंकने लायक हो। अभागे हैं तुम्हारे वो माँ बाप जिन्होंने तुम जैसी लायक और होनहार बेटी को इस तरह त्याग दिया। अब तुम पीछे की बातें याद मत करो आगे की तरफ देखो एक सुनहरा भविष्य तुम्हारी राह देख रहा है । मुझे पूरा विश्वास है तुम अपनी काबिलियत से देश का नाम जरूर रोशन करोगी।”
और तभी मोबाइल बज उठा … उधर तुम ही थी कल्ली … चहकते हुए बोल रही थी मेम जी …. मेम जी मैंने नैशनल में गोल्ड जीत लिया है मेम जी और फिर तुम रो पड़ी साथ में मैं भी तब तुमने धीमे से कहा … माँ मैंने ….. कचरे को आज भुला दिया।
“हाँ मेरी बच्ची तूने खुद को साबित कर दिया । उन अनेकों बच्चियों को हौसला दे दिया बेटियां किसी से कम नहीं होती।”
अरुण धर्मावत
जयपुर, भारत
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