आउटहाउस
शिव शंकर जी और मालती जी के बंगले का आउटहाउस कुछ दिनों से खाली पड़ा था। आउटहाउस में रहने की आकांक्षा में कई लोग आए पर सफल ना हो पाए।अंततः एक ऐसा परिवार आया जिस दंपति के चार बच्चे थे।बड़ी दो जुड़वां बेटियां और उसके बाद दो बेटे। सबसे छोटा वाला बेटा मात्र ढाई साल का था। उन्हें देखने से ऐसा लगा जैसे कई दिनों से भटक रहे हों,उनकी हालत काफी तंग दिख रही थी।उउन्होंने आते ही बतलाया बंगले में रहने वाले साहब के किसी मित्र ने ही उन्हें भेजा था और रखने के लिए अनुशंसित भी किया था उनकी हालत देखकर और मित्र का अनुशंसा पत्र देख मालती जी ने उन लोगों को बिना किसी संशय/ दुविधा के उस दंपति जिनका नाम बगिया और खगेश था को अपने आउटहाउस में रहने की अनुमति प्रदान कर दी। उन दोनों को क्या-क्या कार्य करने थे और कितनी पगार होगी सारी बातें तय हो गईं ।साथ ही उन्हें यह भी हिदायत दी गई की वो लोग एडवांस पैसों का डिमांड नहीं करेंगें,अन्यथा मुश्किल होगी। हां उन्हें सही समय पर उनका जो बनेगा वो मिल जाएगा।
शिव शंकर जी और मालती जी ने उनसे दारु और नशे की आदत तो नहीं है? इस बारे में भी पूछा और खुद को इन सब चीजों से दूरी रहने की बात कही। पर पन्द्रह दिन भी नहीं बीते थे की बगिया ने एडवांस मांगना शुरू कर दिया ।मालती जी के याद दिलाने पर उसने कहा “मैडम इस बार दे दीजिए, मेरे पति को अभी पैसे नहीं मिले हैं अतः मैं मांग रही थी ,अन्यथा नहीं मांगती”” और मालती ने उसे पैसे दे दिए ।
मालती जी ने उसे यह भी बताया था कि सारे कार्यों की जिम्मेदारी उसकी और उसके पति खगेश की होगी।गृह कार्यों में बच्चों की संलिप्तता की आवश्यकता नहीं है ।
पर दूसरे तीसरे दिन से उनकी दोनों जुड़वा लड़कियां मणि और कणि बगिया का हाथ बंटाने के लिए आने लगीं,कभी बड़ी तो कभी छोटी बेटी।
हां सिर्फ उनका बड़ा बेटा नौ साल का टेंपू दिनभर पूरे कैंपस में इधर-उधर बेरोजगार घूमता रहता। कभी अपने दोस्तों के साथ समय बिताता तो कभी अपने छोटे भाई को संभालता।
सबसे छोटा बेटा झूमर बहुत ही प्यारा ढाई साल का झूमर बहुत ही प्यारा और निर्दोष था। शुरू के दो-चार दिन तो वह इतना शरमाता था की अपने घर से बाहर आता ही नही था।
एक दिन मालती जी ही उसे जबरदस्ती बंगले के अंदर लेकर आई।और धीरे-धीरे उसे आउटहाउस से बंगले में आने में तनिक भी देर नहीं लगती थी ।मालती जी जब भी बंगले से आउटहाउस की बगिया को बुलाने के लिए कॉल बेल बजाती तो झूमर अपनी मां – बगिया के आने के पहले ही सबसे पहले दौड़ा चला आता और गेट के पास खड़े होकर आंटी खोलो ना….. आंटी खोलो ना…. कर खड़ा हो जाता, ऐसा लगता जैसे उसे ही घर गृहस्थी के सारे कार्य निबटाने हो । बगिया के अन्य बच्चे भी उसके लिए एक सुरक्षा कवच/ बफर स्टेट की तरह थे क्योंकि कॉल बजाने पर बगिया खुद नहीं आती पहले अपने बच्चों में से किसी एक खबर करवाती वह कहते मम्मी नहा रही है ,तो कभी कपड़े पहन रही है, तो कभी अगरबत्ती दिखा रही है……….। और उसके बाद भी उसे आने में 15 मिनट से लेकर 1 घंटे की देरी हो जाती।
धीरे-धीरे छोटा वाला बच्चा झूमर बंगले की आंटी मालती जी से काफी घुल मिल गया था और सुबह सवेरे नींद खुलते ही बगिया के पीछे पीछे ही आता और मालती आंटी से नाश्ते में बर्फी ,बिस्किट,रोटी कुछ भी मांगता और आंटी भी उसे बड़े प्यार से जो भी वह डिमांड करता देने की कोशिश करती थी। इधर बगिया भी समय-समय पर कभी तीज त्यौहार के बहाने तो कभी सास ससुर की बीमारी के बहाने तो कभी अपने बच्चों की बीमारी के बहाने कभी अपनी जरूरतों का सामान खरीदने के बहाने एडवांस पैसों का डिमांड करती रहती और जब भी मालती जी उसे प्यार से समझातीं और एग्रीमेंट की याद दिलाती, तो वह कहती अच्छा मैडम इस बार दे दीजिए आगे से नहीं मांगूंगी ,और फिर मालती जी उसपर रहम खा उसे एडवांस दे देती।
मालती जी ये भी ध्यान दिया था कि बगिया की दोनों जुड़वा बेटियां मणि और कणि काफी तीक्ष्ण बुद्धि की थीं। वो महत्वकांक्षी थी, कुछ अच्छा करना चाहती थीं।जब भी वो दोनों मालती जी को अच्छी तरह से तैयार होकर, गाड़ी चला कर ड्यूटी पर जाते हुए देखती तो उनकी काफी तारीफें करती। उन्हें देख कर लगता जैसे वो सोच रही हो वो भी उनकी तरह बनतीं। वो अपनी मां बगिया की भी हर संभव मदद करने की कोशिश करती थी। घरेलू कार्यों को भी बड़ी सुघड़ता पूर्वक करती थी। पर मालती जी ने ध्यान दिया था की वो पढ़ाई से दूर होती जा रही थी ।एक दिन उन्होंने अपना कीमती समय निकाला और उन दोनों बच्चियों का दाखिला बगल के ही एक सरकारी स्कूल में करवा दिया ।अब वह दोनों बच्चियां मणि और कणि स्कूल भी जाने लगी थीं ।घर का भी और अपनी पढ़ाई का भी गृहकार्य पूरा करती थी। बगिया भी अब अपनी बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने लगी थी। मणि और कणि को जब स्कूल में कुछ नहीं समझ में आता तो मालती आंटी के पास आकर अपनी समस्या का समाधान करने का अनुरोध करती थी ।
एक दिन अचानक 10:30 बजे रात में मणि ने कॉल बेल बाजाया और कहा ‘आंटी मम्मी बुला रही हैं आपको, पहले तो उन्हें बड़ा अटपटा सा लगा की इतनी रात गए सोने के वक्त ये क्या डिस्टर्ब करते हैं पर उन्होंने अपने पति को साथ लिया और आउटहाउस की तरफ पहुंची। वहां उन्होंने देखा बगिया का पति खगेश घर के बाहर ही खड़ा होकर जोर-जोर से कुछ बोल रहा था, कभी गालियां भी दे रहा था और बगिया को खाना ना देने के लिए धमका भी रहा था।बगिया ने घर के दरवाजे को बंद कर रखा था और अंदर से ही कहने लगी “भैया -भाभी देखिए ये रोज इसी तरह पीकर आता है इसने मेरा और मेरे बच्चों का जीना मुहाल कर दिया है ,मैं अब इसके साथ नहीं रहूंगी!”
बगिया चारों बच्चे उसके अगल बगल में ही आतंकित से खड़े थे। सबसे छोटा वाला झूमर भी अर्धनिद्रा में एक तरफ मुंह लटकाए खड़ा था ।वह भी पिता के चिल्लाने से जाग गया था और परेशान दिख रहा था। खगेश को शिव शंकर जी और मालती जी ने पहले ही इस बात की हिदायत दी थी की पीने और नशे की लत नहीं होनी चाहिए और उस दिन भी समझाया। शिव शंकर जी और मालती जी को देखते ही खगेश थोड़ा सहमा और खुद को खुद ही में समेटते हुए उसने कहना शुरू किया “नहीं भैया ,नहीं भैया, मैं इसे थोड़ी ही कुछ कह रहा था मैं तो ऐसे ही बोल रहा था।
उन लोगो ने फिर से खगेश को समझाया और कहा कि देखो ऐसा करने से आसपास के लोग भी आ जाएंगे और तुम्हारी आवाज सुनकर पुलिस को इन्फॉर्म कर देंगे ,खबर कर देंगे फिर तुम हिरासत में पहुंच जाओगे तो तुम बिल्कुल चुपचाप सो जाओ और अपने बच्चों को देखो उनकी क्या हालत हो गई है ,पर हर कुछ दिनों पर खगेश के हाथ में पैसे मिलते ही वह ऐसे ही करता नजर आता। एक दिन सुबह सुबह मालती जी से उसने पैसे मांगे की गैरेज में ब्लीचिंग पाउडर डालना है और एक घंटे बाद ही पता चला कि उसने ब्लीचिंग पाउडर ना लाकर उन पैसों का दारु पी लिया था। उसकी बड़ी होती बेटियों को भी अपने पिता की ये सब हरकतें अटपटी लगतीं ।कभी-कभी वो लोग उसके पैसे भी इधर उधर रख देती ताकि उनके पिता कोई गलत काम ना करें। पर वो चिल्ला चिल्ला कर अपनी बात मनवा ही लेता था और कभी-कभी दिन में भी हल्ला हंगामा किया करता था। उसके छोटे-छोटे बच्चे उसका यह रौद्र रूप देखकर भाग भाग कर बंगले में, मालती आंटी के पास आ जाते थे और खुद को सुरक्षित महसूस करते थे। इधर बंगले में काम कर रही बगिया को जब पति का शोर-शराबा सुनाई देता तो वह भाग भाग कर कुछ बहाने कर आउटहाउस की तरफ दौड़ती और अपने पति को नियंत्रण में लाने की कोशिश करती क्योंकि मालती जी और शिव शंकर जी दोनों ने ही उनलोगो को चेतावनी दे रखी थी कि इस तरह करने से हम लोग आप लोगों को यहां ज्यादा दिन नहीं रहने देंगे और पुलिस हिरासत में भी आप लोग जा सकते हैं, तो उन लोगों को इस बात की भी फिक्र थी कि कहीं इस गलती की वजह से उन्हें उस आउटहाउस से ना निकलना पड़े। उनके बच्चों को भी लगता था कि यहां तो अंकल आंटी उनका इतना ख्याल रखते हैं उनसे इतना लगाव हो गया है तो उनके पापा की वजह से कहीं उन्हें वहां से जाना ना पड़ जाए। बच्चों को बगले की चमक दमक अच्छी लगती और सबसे छोटा वाला बच्चा तो वहां से जाना ही नहीं चाहता था ।
पर घर की इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी मणि और कणि अपने पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने लगी थी और अपनी कक्षा में अव्वल कर रही थी उन्हें जिज्ञासा थी, दिलचस्पी थी महत्वाकांक्षा थी कुछ अच्छा कर गुजरने की ललक थी। वो बंगले की है मैडम की तरह बनना चाहती थी अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी।
तीव्र इच्छा और महत्वाकांक्षा ने मणि और कणि को काफी स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बना दिया था।वह कभी भी अपना समय जाया नहीं करती थी और मेहनत से अपने लक्ष्य पूर्ण करने में लगी रहती थीं। उनकी पढ़ाई लिखाई में मालती जी का पूरा सहयोग रहता था। मालती जी उन्हें सदा उच्च से उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए प्रेरित करती थीं, और सचमुच उनके मार्गदर्शन में वो दोनो आगे बढ़ रही थीं। उच्च शिक्षा के आलोक से सिंचित हो रही थी और वाकई उन दोनों की सूझबूझ और लगनशीलता रंग ला रही थी उन्हें मेधाविता छात्रवृत्ति भी मिलने लगी थी। सरकारी स्कूलों में सरकार ने कई तरह की योजनाएं चला रखी है जिनके अंतर्गत उन्हें खाना , जूते ,किताब कॉपी आदि जरूरत की चीजें भी मिल जाया करती थी। उन लोगों ने कई वोकेशनल कोर्सेज भी कर लिए और अपने पैरों पर लगभग खड़ी हो चली थीं। उनदोनों ने अपने छोटे छोटे भाइयों की शिक्षा- दीक्षा की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर ले रखी थी ।अन्य आउट हाउस में रहने वाले बच्चों को भी वह प्रेरित करती थी और स्कूल का रास्ता दिखाने लगी थी। बगिया और खगेश की जिंदगी भी बदल गयी थी । अब वह परिवार एक बेहतर जिंदगी जीने लगा था।बच्चियों ने अपनी महत्वाकांक्षा और सतत प्रयास के बल पर कांटों भरे रास्तों को भी एक के बाद एक कामयाबी की सीढ़ियां बना लिया था। जरूरतमंदों और असहायों में शिक्षा की अलख जगाने में एक सशक्त भूमिका निभाने लगी थीं।
स्मृति पांडेय चौबे
जमशेदपुर,भारत