खानदान
आनन्द और ख़ुशी जीवन का अनमोल खजाना है .यदि आनन्द और खुशी की यादों का गुलदस्ते मिल जाये तो अनेक फूलों की खुशबू आती है .जब जी चाहे उस गुलदस्ते का एक फूल निकालकर अपने को उस सुगंध में डुबो दें . ऐसा ही आनन्द और ख़ुशी का गुलदस्ता मेरी और सुनन्दा की दोस्ती है .हँसमुख ,मिलनसार ,खुशमिजाज व्यक्तित्व की स्वामिनी है सुनन्दा ,उसकी सादगी पूर्ण सुन्दरता की बात ही निराली .जो एक बार देखे वह कई बार उसे देखना चाहे .ऐसी बात नही की उसे गुस्सा ना आता हो ,पर अन्याय और झूठ पर . नकलचियों से तो उसके तेवर चढ़ जाते .बहुत समय बिताएं हैं साथ अत: मै उसके हर तौर -तरीके से परिचित हूँ .आस -पडोस ,स्कूल -कॉलेज में हम दोनों ,’सखी’ नाम से प्रसिद्ध रहें .हम एक-दूसरे से हर बातें साझा करते .साथ रहने से मेरा भी व्यक्तित्व सुनन्दा से मिलता -जुलता हो गया .इसलिए हम दोनों की निभती .
बहुत बड़ा खानदान था सुनन्दा का .अपने खानदान के एक -एक व्यक्ति का परिचय देती .पर इस मामले में मै सुनन्दा से विपरीत थी .मेरा परिवार छोटा .खानदान के नाम पर मेरे पिता जी के पिता जी और उनके पिता जी सब अपने पालक के अकेली सन्तान .अद्भुत संजोग मेरी माँ ,नानी , सब अपने माता- पिता की एकलौती सन्तान ,सभी नौकरी पेशा वाले .खानदानी विरासत के नाम पर रहने का एक -एक घर .गाहे -बगाहे उसकी खानदान का बखान सुन-सुन कर मै खुद को उसके खानदान का हिस्सा समझने लगती.पर घर में माँ की पुकार पर अपनी एकल खानदान पर वापस आ जाती .
सुनन्दा के ननिहाल -ददिहाल में रिश्तों का पिटारा था .सभी भरे -पूरे .कभी नाना -नानी ,मामा -मामी ,मौसा -मौसी के द्वारा उपहार की चर्चा करती ,तो राखी पर ममेरे ,मौसेरे,चचेरे ,फुफेरे भाई का उपहार दिखाती .प्यार और उपहार की खजानों से लवरेज रहती .नानी तो उसके सोचने से पहले उसकी इच्छा पूरी कर देती .उधर दादी की भी लाडो थी .दादाजी का देहांत हो चुका था .उसके पसंद-नापसंद का खाना ध्यान रखा जाता .ददिहाल में भी हर रिश्ते का प्यार और सान्निध्य मिला ,जब चाहा रिश्तों का पोटली खोला और रचना कर डाली यह सभी बाते स्कूल या कॉलेज के लंच टाइम या छुट्टी में वापस घर जाते होती..कभी -कभी अपने को उसके स्थान पर रख रोमांचित हो जाती .हाँ पर जब उसे कोई उपहार मिलता तो मुझसे शेअर करती .यही वजह है कि आजतक मुझे उसके हर रिश्तेदारों का नाम याद है ,यहाँ तक की हुलिया भी .समय के साथ हमारी दोस्ती भी प्रगाढ़ होती गई .फिर समय आ गया सुनन्दा का नये खानदान से जुड़ने का .सुनन्दा के लिए अनेको रिश्ते आने लगे .अभी तो बी ए पार्ट वन् का पहला साल था .दरअसल अपने दोनों पक्ष के खानदान की सबसे बड़ी लड़की ,सभी उसे दुल्हन के रूप में देखना को लालायित थें . कभी मामा रिश्तों का सुझाव लाते तो कभी ताऊ , फूफ़ा .सुनन्दा को पढ़ने और संगीत का बहुत शौक़ रहा .हालाँकि पढाई में अब्बल नहीं थी पर सही थी और अतिरिक्त कार्य कौशल में भी निपुण रही .दरअसल तत्कालीन वातावरण ही छोटे शहरों में ऐसा था कि लडकियाँ स्यानी हुई कि अभिवावक की नींद उड़ जाये .कहीं ऊँचा -नीचा ना हो जाये …और टोले -मुहल्ले में भी संसद सत्र चलाये जाते …अरे फलनवां की लड़की ब्याहने लायक हो गई तो चिल्ला की लड़के ने ऐसा किया .उस समय सत्र चलाने के लिए लोगों को समय की कमी ना थी .अभी कहाँ किसी को समय ..किसको क्या हुआ .खैर! जब जैसा तब तैसा .
वैसे सुनंदा के आकर्षण की चर्चा समाज और खानदान में होने लगी थी। मोहक सौन्दर्य की स्वामिनी .मन में भी बाल्यकाल और यौवन का संधि काल था जो प्रकृतिक है .पर संयमित थी . शाम को छत पर जाती तो उसी समय एक खूबसूरत नवयुवक साइकिल से चक्कर लगाने लगता .दो चार दिन यही सिलसिला चला .सुनन्दा घबड़ाकर छत पर जाना ही छोड़ दी, आगे अपने पहचान वाले और रिश्तेदारों के घर से भी रिश्ते आने लगे .आखिर वह दिन भी आ गया जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था . एक बड़े खानदान का राजकुमार उसे ब्याह कर ले गया . यह तो अटल सत्य है,सृष्टि के निर्माण के लिए .
सुनन्दा के ससुराल विदा होते ही मै अकेले पड़ गई .बाबुल की नगरी में ज्यादा ठहरी .मेरे पिता जी मुझे पढ़ा -लिखाकर नौकरी करवाना चाहते थे ,जैसा मेरे एकल परिवार में होता आ रहा है .पर मै नौकरी -वौकरी नही करना चाहती थी .मै भी सखी के सान्निध्य में रहकर किसी खानदानी राजकुमार के सपने देखने लगी .एक दिन मैं अपने भविष्य के खानदान की सपनों की उधेड़बुन में थी .सुनन्दा की कोई चिट्ठी भी नही आती.शायद अपने नवविवाहित ज़िन्दगी के आनन्द में गोते लगा रही होगी .महीनों बाद उसकी चिट्ठी आई .मेरी तो जैसे जान आ गई हो .उसने मुझे प्यार करते आगे का सन्देश दिया, जिस राजकुमार के साथ वह सपनों की दुनियां में आई,वह बहुत बड़े खानदान से ताल्लुक रखते हैं .पर उसने जिसे छोड़ आया और जिसे पाया दोनों खानदान की परिभाषा विपरीत है .जिसको छोड़ आए वहां भी मर्यादाएं ,परम्परा और बंधन था अत:उसे अपने ससुराल की बड़ी बहू बन ज्यादा सम्हलने की ज़रूरत नही पड़ी .पर हर समय जैसे जिम्मेदारियों से उसे बांध दिया गया हो .हमेशा ज़िम्मेदारियों से लदी -फदी रहती . कहीं भी चुक हो जाये तो तानों की झड़ी लग जाती .किसी दिन सुबह छह बजे के पहले नींद नही खुलती तो कुछ ना कुछ कहावत सुनने में आ ही जाता .जीवन के दोनों पहलुओं के खानदान के नाम पर समानताओं के साथ असमानताएं भी थी .सुनन्दा की चिट्ठी पढ़ मै भी सोच में पड़ गई और खानदान का सपना देखना बंद किया .
पीहर जाने पर खुश हो जाती .अपने नाम का सम्बोधन सुन शक्तिवान हो जाती और बचपना भी छलांगें लगाता . ज़िम्मेदारियों की गठरी ससुराल के दालान में ही छोड़ आती .हमेशा सजग रहना ,सर पर पल्लू से लेकर अनेक दक़ियानूसी मर्यादाओं में रहना .उसे महसूस होता की बड़े खानदान की बड़ी बहू बनने पर ,उसका नाम सुनन्दा कही गुम हो गया है .यहाँ किसी बहू का महत्व ही नही था ,चाहे वह कितनी भी मर्यादित हो .
सहनशीलता के चादर और धैर्य के बिछावन पर करवटे बदलते, समय स्फूर्तिवान होकर गुजरता गया .सुनन्दा की चिट्ठी आती रहती .कभी ट्रंक कॉल जाता .खानदान में कभी हस -हस कर समय गुजरता तो कभी कटाक्ष भी चुभते .इसी बीच उसके दो बच्चे,लव और लाली बड़े होते गये, फोटो लिफ़ाफ़े में भेजती .अपने पति के खानदान को सम्हालते – सम्हालते लते पता ही ना चला की लव और लाली भी गृहस्थी में प्रवेश करने योग्य हो गये .समय की गति हमें कहाँ ले चलती है पता ही नही चलता .
सुनन्दा की जीवन की व्याख्या तो आपने देखा .मै भी कॉलेज की प्राध्यापिका बन चुकी थी और उसके बाद किसी दूसरे कॉलेज के प्राध्यापक से परिणय सूत्र में बंध चुकी थी . तब तक नोकिया का मोबाइल बाजार में आ चुका था और मेरे और सुनन्दा के पास भी .अब हम सखी खुल कर बाते करते .मेरे तो अभी तक बाल-गोपाल नही थे .मै कॉलेज के खानदान परिवार में रहने की अभ्यस्त हो गई .क्लास में उपस्थिति रजिस्टर में स्टूडेंट का नाम लेते अपना परिवार खानदान को ही महसूस करती और एक चुभन मुस्कान सुनंदा के खानदान को याद कर मन में समेट लेती .मेरे जीवन में खानदान के नाम पर मेरे पति .उनका भी दूर -दराज के कोई मामा मामी थें .इधर सखी का फ़ोन कम आने लगा .खानदान की परिपूर्णता में व्यस्त होगी .मैंने फोन किया तो मुझे महसूस हुआ की अभी भी वह पीहर ,ननिहाल के निमंत्रण का इंतजार करती.प्रतीक्षा में रहती कही से निमंत्रण आये ,वह मौके के तलाश में रहती .जिम्मेदारियों की गठरी दालान में उतार जाना चाहती वह चहकते हुए बताया की फुआ के पोते की शादी तय हुई है .वह निमंत्रण की बाट जोह रही थी .घर में कानाफूसी हो रहा हा …कौन अब दूर के रिश्तेदार को पूछता है और भी अटकले लगाई जा रही थी .तभी सुनन्दा ख़ुशी और प्रसन्नता से चहक उठी ….अरी सखी न्योता आ गया ,हाँ उस पर मेरा नाम है ‘ सुनन्दा गुप्ता ‘
रागिनी प्रसाद
मुंबई, भारत