पूर्णाहुति

पूर्णाहुति

“आज बदन टूट रहा है।रात को सिर्फ दूध ही दे देना”, ८५ वर्षीय बृजभूषण जी ने श्याम सुन्दर से कहा।श्याम और बृजभूषण के बीच कोई सांसारिक रिश्ता नहीं था। बृजभूषण जी, जिन्हे परिचित प्यार से बाबू जी कह कर सम्बोधित करते थे, अत्यंत लोकप्रिय थे। उन्होंने अपना सारा जीवन एक निस्वार्थ निष्काम भाव से किये हुए यज्ञ के रूप में लोक सेवा में ही बिताया था।सरकारी सेवा से ऊंचे ओहदे से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने श्रीमद्भगवतगीता और उपनिषदों की सरल भाषा में सटीक टिप्पणियां भी लिखी थीं।वह जिज्ञासुओं को पढ़ाते भी थे।पत्नी की मृत्यु हुए कई वर्ष हो चुके थे।अपनी कोई संतान नहीं थी।वैसे सारा संसार ही उनका परिवार था।उनके प्रशंसक सैकड़ों की तादाद में थे।

“यह क्या ? आपको तो बुखार है !”, श्याम ने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा।बृजभूषण जी एक बेहद नियमित जीवन व्यतीत करते थे और शारीरिक तौर पर अपनी उम्र के अनुसार काफी चुस्त भी थे।जब तीन दिन भी बुखार नहीं उतरा तो श्याम सुंदर ने बाबू जी का कोविड टेस्ट कराया और उन के कुछ शिष्यों और मित्रों को भी सूचना दे दी।

कोविड १९ की दूसरी लहर का प्रकोप अपनी चरम सीमा पर था।अस्पतालों में बेड नहीं, साँसों के लिए तरसते मरीज़ों के लिए ऑक्सीजन नहीं, वेंटीलेटर नहीं।मरीज़ अस्पतालों के पार्किंग स्थान में गाड़ी, ऑटो रिक्शा या सड़क पर ही दम तोड़ रहे थे। शवों की भी कतार लगी हुई थी।शमशान घाटों और कब्रगाहों में जगह कम पड़ रही थी।मृत्यु का ऐसा आतंकपूर्ण तांडव पहले कभी किसी ने न देखा था या सुना था।मानवता पीड़ा से कराह रही थी।

बाबू जी कोविड १९ पॉज़िटिव निकले।और उनका ऑक्सीजन लेवल भी तेज़ी से गिरने लगा।बाबू जी के सारे शुभचिंतक एक अच्छे अस्पताल में ऑक्सीजन और वेंटिलेटर युक्त बेड अथवा आई सी यू में दाखिले का इंतज़ाम करने में जी जान से जुट गए।

आमतौर पर भारत में दौलत या उच्च पद के बलबूते पर सब काम हो जाते हैं, पर पहली बार ऐसा लग रहा था कि अच्छे विश्वसनीय अस्पतालों में बेड किसी भी कीमत पर उपलब्ध नहीं थे।बाबू जी के मित्रों और शिष्यों में कई आई ए एस अफसर और मंत्रीगण भी थे।बड़ी मेहनत के बाद एक अच्छे अस्पताल की आई सी यू में दाखिला मिल ही गया।श्याम सुन्दर बृजभूषण जी को लेकर फटाफट अस्पताल पहुंचे | कुछ मित्र अस्पताल पहले ही पहुँच कर रजिस्ट्रेशन करा रहे थे।बाबू जी व्हील चेयर पर इंतज़ार करने लगे।

इतने में ही बृजभूषण जी की निगाह एक फूट फूट कर रोती हुई युवती पर पड़ी।साथ में उसका पति स्ट्रेचर पर और एक ५ – ६ साल का बच्चा।युवती रो रो कर गिड़गिड़ा रही थी।मेरे पति को बचा लो नहीं तो हम बर्बाद हो जायेंगे।कैसे भी इन्हे ऑक्सीजन वाला बेड दे दो या आई सी यू में भर्ती कर लो।माँ को रोता देख बच्चा भी बिलख रहा था।इतने में अस्पताल के कर्मचारी बाबू जी को आई सी यू में ले जाने के लिए आ गए थे।

एकाएक बृजभूषण जी ने आई सी यू में जाने से मना कर दिया।श्याम सुन्दर और सारे शुभचिंतक सकते में आ गए।इनको क्या हो गया? इतनी दौड़ भाग के बाद तो यह प्रबंध हो पाया था।पांच लाख रुपये का अग्रिम भुगतान भी हो गया है।

बृजभूषण जी ने बड़ी ही शांति और सौम्यता से उस रोती हुई युवती को अपने पास बुलाया और कहा, “बेटी ! ईश्वर की परम कृपा से मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी जी ली है। तुम्हारे पति का जीवन बहुमूल्य है।मुझसे कहीं ज़्यादा उसे इस आई सी यू की ज़रुरत है।मैं अपना बेड तुम्हारे पति को देता हूँ ।”

“श्याम ! तुम्हारा और आप सभी प्रियजनों के प्रेम का मूल्यांकन करने की दुष्टता तो मैं कभी भी नहीं कर सकता पर मेरे बैंक में जो कुछ भी है, उससे इन सब प्रिय जनों का अस्पताल का हिसाब पूरा कर देना।”

युवती ने तो जैसे साक्षात परमात्मा के दर्शन कर लिए।“बाबू जी! आपने मेरे पति को जीवनदान दिया है।आपका यह एहसान मैं सैंकड़ों जन्मों में भी न चुका सकूंगी |” युवती को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।

“ नहीं बेटी ! कर्ता तो केवल ईश्वर है।हम तो सिर्फ निमित्त मात्र हैं। सौभाग्यवती रहो।” बृज भूषण जी युवती को आशीर्वाद और उसके पति को अपना बेड देकर वापस घर लौट आये।

अश्रुपूर्ण श्याम सुन्दर और बाबू जी के अन्य अनुयायियों को पूरी गीता अनायास ही एकदम से समझ में आ गयी।मुस्कुराते हुए बृजभूषण जी ने कहा, “आज यज्ञ में मेरी पूर्णाहुति हुई।” तीन दिन बाद बृजभूषण जी अपने मित्रों, प्रशंसकों और शिष्यों को इस संसार में छोड़ कर उस असीमित,अवर्णनीय, अनंत ऊर्जा में समा गये जिसे हम ईश्वर के नाम से जानते हैं |

(सत्य घटना पर आधारित परन्तु पात्र काल्पनिक हैं।)

नीरजा राजकुमार

पूर्व मुख्य सचिव

कर्नाटक

 

 

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Ragini Sharma
Ragini Sharma
1 year ago

बहुत अच्छा लगा।