चौथा कंधा
रवि को आशा थी कि इस महीने के बाद लॉक डाउन खुल जाएगा और जिंदगी फिर पटरी पर आ जाएगी। मगर 6 हफ्ते लॉकडाउन और बढ़ने से उसकी चिंता बढ़ गई । उसने साजिद से कहा “हमने क्या सोचा था क्या हो गया ? यदि लॉकडाउन इसके बाद भी बढ़ा दिया गया तो हम लोग क्या करेंगे? राशन पानी मकान भाड़ा की चिंता तो है हीं मुझे एक और डर सता रहा है हम अगर बीमार पड़े तो इलाज कैसे हो पाएगा?हमारे पास न पैसे हैं ना अपना कोई देखने वाला।”
“रवि तुम बिल्कुल ठीक कहते हो हमारे पास राशन भी दो-तीन दिन का हीं बचा है और पैसे भी खत्म हो रहे हैं।” साजिद ने मायूसी से कहा ।
” मैनेजर ने कहा था न कि इस महीने पगार मिल जाएगी?”
” कहा तो था,” साजिद ने सिर हिलाते हुए कहा,” किंतु हमने कई बार फोन लगाया वो फोन ही नहीं उठा रहा है। तो अब क्या करना होगा?” रवि ने साजिद की तरफ देखते हुए पूछा।
“कल यूनियन के नेता बलराम भाई से बात करके देखता हूं।फिर सोचेंगे।”काश पगार मिल जाता तो हमलोग लॉकडाउन भर रुक सकते थे और फिर हमें कुछ सोचने की जरूरत ही नहीं होती” रवि ने आह भरते हुए कहा।
” रवि, रात बहुत हो गई है। कल सुबह बात करतें हैं” चलो सोते हैं कहते हुए साजिद सोने चला गया।
मगर रवि के आंखों से नींद गायब थी। तरह-तरह की चिंताये और अंजाना भय उसे सता रहे थे ।
कितने सारे प्रश्न उसके सामने खड़े हो उसे झकझोर रहे थे। काम नहीं रहेगा तो कैसे चल पाएगी जिंदगी। कैसे चलेगा घर का खर्च ? घर में एकमात्र मै ही कमाने वाला हूं । कितने सपने देखे हैं हमने! अगर गांव चला गया तो मेरे सपने कैसे पूरे होंगें?क्या पता फिर ऐसा काम ,ऐसा पगार और साजिद के जैसा दोस्त मिलेगा या नहीं। रवि ने जैसे ही करवट बदली उसकी नजर गाढ़ी नींद मे सोये हुए साजिद के शांत और सौम्य चेहरे पर ठहर गई और वह सोचने लगा ” कितना अच्छा इंसान है साजिद ,मेरा कितना ख्याल रखता है, बिल्कुल बड़े भाई की तरह ।मुझे लगता ही नहीं कि मैं यहां अकेला हूं ।न लड़ना न झगड़ना हर इंसान के साथ उसका व्यवहार मधुर है ।रवि को याद आने लगा जब वह गांव से पहली बार शहर आ रहा था तो उसके माई बाबू जी ने बहुत सारी हिदायतों के साथ यह भी कहा था कि ” शहर में संभल के रहीह मुसलमानन से दोस्ती कबो जन करीह ।ओकनी के ठीक आदमी ना होलनस।” समझ में नहीं आता कि माई -बाबूजी मे ऐसी सोच क्यों और कैसे आ गयी है। साजिद के साथ रूम शेयर करने के पहले वह जहां रहता था वहां का माहौल कितना खराब था। हमारे साथ रूम शेयर करने बाले दोस्त शाम होते ही हमारे ही कमरे मे शराब की बोतल लेकर बैठ जाते और देर रात तक खाना-पीना गाली गलौज करते रहते।बाबूजी के बातों को मानकर अगर मैं साजिद के साथ कमरा शेयर नहीं किया होता तो आज मेरी हालत क्या होती ? यहां आने के बाद कितना सुकून मिला। यहां लकड़ी का काम कर कुछ अलग से कमा भी लेता हूं। यही सब सोचते सोचते रवि को न जाने कब नींद आ गई।
सुबह रवि देर से सोकर उठा साजिद बैठकर रेडियो सुन रहा था। क्या कोई नया समाचार है रवि ने पूछा।
“करोना मरीजों का बढ़ना ऑक्सीजन की कमी दवा की कालाबाजारी यही सब और क्या?”
“यह सुन सुन के तो मन और भी खराब हो रहा है ।रेडियो बंद कर दो साजिद भाई और हां किरासन तेल भी नहीं है आप तेल का जुगाड़ कीजिए। तब तक मैं लकड़ी के छिलन को जलाकर चाय बनाता हूं।
साजिद जल्दी ही दुकान से वापस लौट आया उसने बताया कि तेल नही आया है कब आएगा पता नही। “तो अब क्या किया जाय?” रवि चिंतित होकर कहा ।साजिद ने कहा “यूनियन के नेता बलराम भाई से बात करता हूं “और फोन लगाया। बलराम ने बताया कि मैनेजर कह रहा है कि फैक्ट्री में माल भरा पड़ा है, बिक्री नहीं हो रही है, पैसे नहीं आ रहे हैं। ऐसे में मजदूरों को पगार देना संभव नहीं है।
“अब क्या किया जाए ? “रवि ने कहा। दिनभर वे यही सोचते रहे ।अंततः उन्हें घर जाना ही सही लगा। दूसरे दिन अगली सुबह अन्य मजदूरों के साथ वे भी गांव के लिए पैदल निकल पड़े, यह उम्मीद पाले कि रास्ते में कोई सवारी मिल जाएगी। भाग्य से इन्हें हाईवे पर एक ट्रक मिला जिस पर मजदूर भरे हुए थे। ट्रक वाला और कमाई के लालच में इनसे पैसे लेकर ट्रक में बैठा लिया। भेड़ बकरियों की तरह सबको लादे ट्रक बढ़ने लगा। दिन चढ़ने के साथ ही आसमान ने आग बरसाना शुरू कर दिया लू की लपटों को बर्दाश्त करना कठिन हो रहा था। जैसे तैसे दिन बीता रात में थोड़ी राहत मिली । फिर दूसरे दिन भी वैसी ही गर्मी वैसी ही लू। उस धूप और लू को रवि झेल नहीं पाया उसका बदन तपने लगा और उसे उल्टियां होने लगी। पहले तो ट्रक के सहयात्रियों ने इसे सामान्य घटना समझा पर बाद में उन्हें लगने लगा कि शायद उसे करोना हो गया है, यदि ऐसा है तो वे सब भी इसकी चपेट में आ जाएंगे । लिहाजा वे ट्रक वाले से रवि को उतार देने की जिद करने लगे। ट्रक वाले ने रवि से उतर जाने के लिए कहा। रवि और साजिद ने ट्रक वाले से बहुत मिन्नतें कीं, परंतु ट्रक वाले ने इनकी एक न सुनी।साजिद ने कहा कि अगर उतारना हीं है तो इन्हें किसी हॉस्पिटल में उतार दो किंतु ट्रक वाले ने शहर के अंदर जाने से यह कहकर मना कर दिया कि शहर के अन्दर जाने से पुलिस द्वारा पकड़े जाने का खतरा रहेगा और वह इतने लोगों के साथ कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहता। ट्रक वाले ने उन्नाव शहर के पास रवि को नीचे उतार दिया।
साजिद की अंतरात्मा ऐसी स्थिति में रवि को अकेले छोड़ना गवारा नहीं कर रही थी । दोस्ती और इंसानियत के नाते वह भी रवि के साथ नीचे उतर गया।
यहां दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं दिखाई दे रही थी। ऐसी परिस्थिति में साजिद बहुत घबरा गया। इधर रवि की उल्टियां बंद नहीं हो रही थी।पानी भी बहुत कम बचा था। रवि को एक पेड़ की छाया में लिटा कर साजिद पेपर से पंखा झलता और बोतल से थोड़ा-थोड़ा पानी पिलाता। पानी पीने के थोड़ी देर बाद ही उसे उल्टी होने लगती साजिद के मन में अंजाना भय घर करता जा रहा था । वह बार-बार अल्लाह से गुहार लगा रहा था “या अल्लाह मेरे दोस्त को बचा लो , कोई मदद भेज दो।” कभी-कभी मजदूरों से भरे ट्रक और ट्रैक्टर दिखाई तो देते मगर वे सरसराते हुए पार हो जाते। साजिद ने पैदल गुजर रहे मजदूरों से भी मदद की गुहार लगाई मगर कोई अपने झुंडा को छोड़ना नहीं चाह रहा था। साजिद सोचने लगा- पहले तो मुश्किल वक्त में कोई न कोई मदद के लिए अपने हाथ बढ़ा ही देता था।अभी सबको सिर्फ आपने जान की लगी है। सभी अपने घर जल्द पहुंचना चाह रहें हैं। शाम होने के साथ साजिद की घबराहट बढ़ रही थी ।
अचानक रास्ते पर एक पुलिस पेट्रोलिंग जीप रुकी और एक भारी-भरकम आवाज साजिद के कानों से टकराई कौन है? वहां सुनसान जगह पर क्या कर रहे हो? साजिद दौड़ कर उस भैन के पास गया और रोते-रोते अपनी सारी आप बीती सुना कर गिड़गिड़ाते हुए कहा,” साहब मेरे दोस्त को हॉस्पिटल पहुंचवा कर इसकी जान बचा लीजिए, आपकी बड़ी मेहरबानी होगी ।पुलिस अधिकारी ने एंबुलेंस बुला उन्हें उन्नाव के सदर हॉस्पिटल में पहुंचवा दिया। करोना टेस्ट जरुरी था, इसके लिए साजिद यहां वहां दौड़ता भागता रहा। रिपोर्ट निगेटिव आया। वह भर्ती तो कर लिया गया पर काफी वक्त लग गया। रवि को पानी चढ़ाने की तैयारी हो ही रही थी कि उसे एक हिचकी आई और वह शांत हो गया।”सारी हम इन्हें नहीं बचा पाए” डॉक्टर ने साजिद से कहा,” मरीज को यहां लाने में बहुत देर हो गई थी” साजिद रवि के सीने से लिपट कर जोर-जोर से रोने लगा, “अब मैं काका को क्या जवाब दूंगा? उठ मेरे भाई उठ। इतना समय तक तू बर्दाश्त करता रहा और जब सही जगह पर पहुंचा तो तू हार गया।” साजिद को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे ? इस अनजान शहर में करोना के वक्त में वह किस से सहायता मांगें ?वह पागलो की तरह इधर से उधर भटक रहा था। एक वार्ड बॉय को साजिद की स्थिति पर दया आ गई । वह साजिद से पूछा, ” यह कौन है तुम्हारा? “साजिद रोते-रोते उत्तर दिया ” मेरा दोस्त है।’
“इसी शहर के हो? ” नहीं हम लोग उत्तर प्रदेश के हैं ।” वार्ड बॉय ने पूछा “तो यहां कहां रहते हो?” साजिद अपनी आपबीती सुनाकर सिसकने लगा। वार्ड बॉय ने साजिद को संतावना देते हुए कहा -” चिंता मत करो, मैं बंदोबस्त करने की कोशिश करता हूं। ” डिस्चार्ज पेपर तथा थाना से जरूरी कागजात का इंतजाम हो गया। साजिद ने वार्ड बॉय को हाथ जोड़ कर धन्यवाद दिया और साजिद रवि की डेड बॉडी लेकर एंबुलेंस से उसके गांव के लिए निकल गया। साजिद रवि के काफिन को देख सोचने लगा पल भर में कितना कुछ बदल जाता है !कल तक रवि एक जीता-जागता इंसान था आज वह बाक्स में बंद सामान मे परिवर्तित हो गया है।
साजिद रात के समय में रवि के बूढ़े मां बाप को उसकी मौत की खबर देकर परेशान करना नहीं चाह रहा था इसलिए उसने रवि के फोन को स्विच ऑफ कर दिया था। दिन उठने पर हिम्मत करके फोन स्विच ऑन कर दिया और रवि के घर में फोन कर यह दुखद खबर बताने वाला ही था कि रवि की फोन की घंटी बजी । कांपते हाथों से साजिद ने फोन उठाया शायद रवि के पिताजी की आवाज थी “हेलो हेलो रवि सब ठीक-ठाक बा न? काल राती खन से कई बेरी फोन लगऊनी फोन स्विच्ड ऑफ मिलत रहुए।” साजिद ने अपने आप को संभालते हुए कहा, “मैं रवि का दोस्त सजिद बोल रहा हूं ।” उधर से रवि के पिताजी ने कहा “अरे ,तुम रवि को फोन दो हम उसी से बात करेंगे ।” रवि के पिता की कड़क आवाज आई। साजिद रुंधे गले से सिसकते हुए बोला। “काका, अब रवि आपसे कभी बात नहीं कर पाएगा ,वह हम सब को छोड़कर इस दुनियां से चला गया है। “और उसने संक्षिप्त में सारी बात बता दी। यह भी बताया कि रवि के डेड बॉडी को लेकर वह दोपहर के बाद गांव पहुंच जाएगा । रवि के पिता यह सुनते ही चिल्ला कर रोते हुए अपनी पत्नी कौशल्या को बोलें कौशल्या हो हमार रवि हमनी के छोड़के चल गइले हो। रवि की मां बेटे की मौत की खबर सुनते ही पछाड़ खाकर गिर पड़ी । रवि की दोनों बहने भी दहाड़ मारकर रोने लगीं। गोतिया दयाद पास पड़ोस के लोग इस चित्त्कार को सुनकर रवि के दरवाजे पर पहुंचने लगे । घर के लोगों का हृदय विदारक रुदन से सब का कलेजा फट रहा था। रवि के मौत की खबर से गांव वालों को यह आशंका होने लगी कि उसकी मृत्यु करोना से ही हुई होगी ।पूरे गांव के लोग रामआश्रय (रवि के पिता) के पास संतावना देने पहुंचने लगे। सब ने मिलकर जल्द अंतिम क्रिया कर्म के सामान का इंतजाम कर दिया फिर अपने-अपने घर लौटने लगे । रवि की लाश आने के पहले लोग वहां से हट जाना चाह रहे थे ।कोई भी अपनी जान का खतरा मोल लेना नहीं चाह रहा था।गांव के लोगों में स्नेह, करुणा एवं सहानुभूति की कमी नहीं थी। परंतु कोरोना का डर गांव के संस्कृति और संबंध को हिला कर रख दिया था। हालांकि रवि के पिता ने सब को बताया था कि रवि की मौत शरीर से पानी खत्म हो जाने की वजह से हुई है पर लोगों के मन में कोरोना का आतंक इस कदर समाया था कि लोग किसी दूसरे बीमारी के विषय में सोचते ही नहीं थे। करीब 4:00 बजे साजिद रवि की मृत देह लेकर पहुंचा। एंबुलेंस को देखते ही बचे हुए लोग भी अपने घर की ओर जाने लगे। कौशल्या बेटे के मृत शरीर से चिपक कर चित्कार करती हुई बेहोश हो जाती। रवि की चाचियों ने कौशल्या को संभाला।शाम होने के पहले रवि के दोनों चाचा चाची ने रीति रिवाज पूरा कर अर्थी सजा दिया। पर रवि के दोनो चाचा और रवि के पिताजी को छोड़कर दरवाजे पर कोई पुरुष नजर नहीं आ रहा था। रवि के पिता निरीह और सूनी आंखों से चारों तरफ देख रहे थे कि एक आदमी भी आ जाये तो अर्थी को उठाया जाय। परंतु कोई नहीं आया।वे जोर जोर से रोने लगे। साजिद अलग खड़ा यह सब देख रहा था।साजिद यह जानता था कि रवि के पिता रिती रिवाज में तो उससे बिल्कुल सहयोग नहीं लेंगे। लेकिन उनकी बेबसी, लाचारी और एक असहाय बाप की वेदना देखकर साजिद के आंखों से पानी गिरने लगा ।वह कुछ देर तक यूं ही खड़ा रहा , फिर उनके पास आकर कहा “कब तक इंतजार किजिएगा किसी का। रात होने को आ रही है।काका, रवि मेरे छोटे भाई की तरह था।हम एक ही कमरे में रहते थे, एक ही साथ खाना खाते थे और अपना दुख सुख बांटते थे। जब ट्रक वाला रवि को ट्रक से उतार रहा था तब मैं भी ट्रक से उतर गया। मैं उसे उस दिन अकेला छोड़ दिया होता तो क्या पता आप सभी उसका मरा हुआ मुंह भी देख पाते या नहीं। अब तक उसका साथ निभाया है।आखिरी पल में भी अगर आप कहे तो मै उसका साथ निभा दूं ,उसे अपना कंधा देकर और फफक कर रोने लगा।रामाश्रय और उसके दोनों भाई अर्थी के तीनों तरफ जाकर खड़े हो गए और साजिद अर्थी के चौथी ओर बढ़ गया ।
ज्योत्सना अस्थाना
जमशेदपुर, भारत