सिंदूर की रेखा
आज चंद्रमुखी 65 वर्षीय महिला, अपने किरायेदार विक्की बाबू के साथ बैंक जा रही थी, वर्ष में एक बार लाइफ सर्टिफिकेट के लिए जरूरी होता है जाना।तिमंजले घर मे चार किरायेदारों के परिवार के साथ अकेली ही जीवन बीता रही हैं।
सुबह 11 बजे बैंक पहुँच गयी। पूछताछ करने के बाद एक युवक अपने टेबल के पास ले गया और बोला, “बैठिए, माता जी, अभी मैं सारी गतिविधियां पूरी कर देता हूँ।”
चंद्रमुखी ध्यान से हर एंगल से उस युवक को देख रही थी, आवाज़ भी उसे कहीं दूर से आती नजर आ रही थी। पर हिचकिचा रही थी, कैसे कोई अजनबी से कुछ व्यक्तिगत बाते पूछे।
थोड़ी देर सोचती रही, फिर बोल ही बैठी, “तुम कहाँ रहते हो बेटा, इस बैंक में तुम्हे पहली बार देखा।”
“अभी 2 महीने पहले हरिद्वार से ट्रांसफर होकर आया हूँ।”
“बेटा, पता नही क्यों ,कुछ देखा सा लग रहा है।”
“यही पास में ही मैंने किराए पर फ्लैट लिया है, माँ है वहां, हो सकता है, बचपन मे कभी आपने देखा हो।”
“अगर बुरा न मानो तो मैं तुम्हारी माँ से मिलना चाहूंगी।”
“जरूर, सुनो इस पते पर इनको ले जाओ, मेरी माँ घर पर होंगी, उनसे कह देना मैंने भेजा है।”
चंद्रमुखी दिए गए पते पर पहुँच गयी। कॉल बेल सुनते ही एक हमउम्र महिला रजनी उसके सामने खड़ी थी, “आइये, अभी बेटे का फ़ोन आया था, कि आप मुझसे मिलना चाहती हैं।”
दोनो ड्राइंग रूम में बैठ गयी। रजनी ने कहा, “पानी लाती हूँ, फिर चाय बनाऊंगी।”
चंद्रमुखी ने पूरे कमरे का मुआयना किया, अचानक उसकी नजरें माला चढ़ी एक तस्वीर पर अटक गयी, पास जाकर ध्यान से देखा, फिर चश्मा पोछकर बार बार देखा, वो चालीस वर्ष पहले का वही रंगरूप, बस उसमे मूछें और चश्मा से चेहरा भारी भरकम लग रहा था।
दिल मे तूफान समेटे हुए, रजनी के हाथ से गिलास लिया और एक सांस में पी लिया।
“सुनो, बहन जल्दी से बताओ, ये माला वाली फ़ोटो किसकी है?”
रजनी ने कहा, “दो साल पहले स्वर्ग सिधार गए, ये मेरे पति हैं।”
चंद्रमुखी के गले मे आगे के शब्द अटक गये, क्या कहे कैसे कहे कि ये तो मेरे पति हैं। नही कह पायी।
“अच्छा, सुनो, बहुत कुछ याद आ रहा है, जरा बताओ शायद मैं इनको जानती हूं। तुम्हारी शादी के बारे में मैं कुछ जानना चाहती हूं।”
रजनी ने बोलना शुरू किया, ” मेरे ससुरजी मछली का व्यापार करते थे, हरिद्वार के एक किनारे एक मछुआरे के पास हर रविवार को जाकर एक साथ लाते थे। एक बार गये तो आश्चर्यचकित तरीके से उनके घर मे एक पच्चीस वर्षीय लड़के को चुपचाप बैठे पाया। दुकानदार ने कहा, नदी किनारे ये युवक बेहोश पड़ा था, अचानक मुझे महसूस हुआ, उसका हाथ हिल रहा है, और मैं घर ले आया।
पर कुछ पूछो तुम्हारा घर कहाँ है, तो खामोश हो जाता है। फिर इनको लाकर हॉस्पिटल में डॉक्टर को दिखाया तो पता चला, याददाश्त समाप्त हो चुकी।
अब ससुर जी ने दया करके उनको घर पर रख लिया। लिखना पढ़ना सब जानते थे, हर काम उनको आता था, बस अपना अतीत भूल चुके थे।
मैं उस घर के इकलौते बेटे की विधवा थी, जो सास, ससुर के साथ रहती थी। धीरे धीरे वो भी घर के एक सदस्य ही बन गये।
ससुर जी हार्ट अटैक से नही रहे, उनका पूरा व्यापार अब इनके हाथों में था। घर मे हर काम उनका मैं करती थी। हमदोनो की उम्र भी बराबर की थी। पता नही कब पानी का गिलास पकड़ाते वो हाथ पकड़ने लगे।
एक दिन सीधी साधी सासु माँ की नजर पड़ गयी और उन्होंने मुझे बुलाकर पूछा, “शादी करोगी, दो वर्षों से हम सब इनको जानते ही हैं, डॉक्टर बोल रहे, इनकी याददाश्त वापस लाना मुश्किल है।”
“अंधे को क्या चाहिए, दो आंखे, मैंने हां कर दिया, और मंदिर में मेरी और ये शम्भू शरण जी की शादी हो गयी।”
फिर तो हमारे घर मे रंगीन नजारे ही थे, सुख समृद्धि से भरपूर था हमारा आशियाना। साल भर मैंने भी अपना सौ प्रतिशत ध्यान, प्यार उन्हें दिया और उन्होंने भी, क्योंकि कुछ वर्षों से हम दोनों ही उदास और गमगीन रहते थे। एक वर्ष बाद ही घर मे ये अमन मेरा बेटे ने माहौल को रंगीन बना दिया। फिर मेरा ज्यादातर ध्यान अमन में रहने लगा, ये व्यापार में व्यस्त रहते। हमलोगों में अब बातचीत बहुत कम होती थी, बस, पानी दूं, खाना परसूं, तक ही बोलचाल थी। उनकी आदत थी, अपना काम खुद ही कर लेते, कपड़े धोने से प्रेस करने तक।
“अरे, बहन जी, मैं भावुकता में बहे जा रही हूं, विचार मुझे कहाँ ले जा रहे, रुकिए चाय बना कर लाती हूँ।”
“आप बोलते जाइये, मैं बहुत उत्सुक हूँ, आपके बारे में जानने को।”
फिर दस मिनट बाद चाय के साथ बाते शुरू हो गयी। बेटा दो वर्ष का होने को आया, दिनभर उसकी बातों और खेल में मैं भी व्यस्त रहने लगी।
एक दो बार ध्यान दिया टेलीविज़न में जब भी एक गाना बजता उनकी पलके भीगने लगती….आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं।
फिर बहुत बार मैं उनसे पूछती, क्या हुआ, क्यों उदास हो।
“कुछ नही।”
फिर मेरे अंदर की पत्नी शक करने लगी, पता नही, क्या बात है, कहीं कोई बाहर मिल तो नही गयी, दिनभर व्यापार के सिलसिले में घूमते हैं।
मैं रोज इनके पैंट, शर्ट, पर्स की जासूसी करने लगी। एक आदत भी मुझे इनकी बड़ी नागवार लगती, कोई पड़ोसन भी घर आती तो, उसे बहुत घूरते, ध्यान से देखते रहते। मैं उनके चरित्र पर शक करने लगी। मेरा इनसे रिश्ता सिर्फ बिस्तर का ही रहने लगा। वहां भी एक ग्रहण लगने लगा, जब एक रात आधी नींद में एक नाम सुना, बड़बड़ा रहे थे, चंद्रा, मुझे देर होगी, तुम खाना खा लेना।
सुबह पूछो तो बोले मुझे कुछ याद नही।
कान लगाकर ये मैंने कई रातों को सुना, मुझे यकीन हो गया, कोई बाहर है, इसीलिए आजकल मुझसे दूर हो रहे हैं। रातभर मैं रोती रहती, सासु मां ने कई बार पूछा, “क्या बहू क्या बात है।”
“अम्मा, आजकल रात में नींद में पता नही क्या क्या बड़बड़ करते हैं।”
अम्मा बोली, “डॉक्टर के पास ले जाओ, मुझमें तो अब शक्ति नही रही।”
अम्मा की बात से मैं धरातल पर आयी, और दूसरे ढंग से सोचा, फिर एक डर मेरे मन मे बैठ गया, और बोली, नही नही, सब अपने आप ठीक हो जाएगा।
“नही, अम्मा, साधारण सी बात है, डॉक्टर के पास नही जाना।
धीरे धीरे अमन बेटा बड़ा होने लगा, अम्मा स्वर्गवासी हो गयी। कई बार शम्भू जी दो चार दिनों के लिए बिल्कुल खामोश हो जाते, बेटा मुझसे पूछता, “मम्मी, पापा को डॉक्टर को दिखाना है क्या?”
पर मैं घबड़ाती थी कहीं याददाश्त न लौट आये और हमने घर मे कभी इस बात का जिक्र बेटे से नही किया, बेटा बिल्कुल अनभिज्ञ था कि पापा का अतीत क्या है, असल मे तो मैं भी कुछ नही जानती थी।
अचानक रजनी ने चंद्रमुखी से कहा, “अरे क्या हुआ, आप लगातार रो रही हैं, कहीं कुछ आपको याद आ रहा क्या। रुकिए, एक कप चाय और बनाती हूँ।”
रजनी चाय बनाने गयी और चंद्रमुखी सोचने लगी कितने लोग उसे टोकते थे, किसके लिए करवाचौथ का व्रत करती हो, वो तो अब वापस नही आने वाले, पर उनकी सलामती के लिए वर्षो उसने निर्जल व्रत भी किया।
दोबारा चाय नाश्ता आ गया, रजनी फिर अपनी बात के तारों को जोड़ती हुई बोली, पता है उसके बाद भगवान ने मेरी सुन ली, एक दिन बेटा बड़ा खुश होकर आया, मम्मी मेरा बैंक की परीक्षा में चयन हो गया, अभी तो इसी शहर में है, आगे देखिए हो सकता कहीं जाना पड़े। हमलोगों ने घर मे सत्यनारायण कथा करायी, शंभु जी भी बहुत खुश रहे।
उसके एक महीने बाद बाइक से जाते समय एक्सीडेंट हुआ, घायल हुए और कोमा में चले गए, छह महीने बिस्तर पर रहे, तब कई बार किसी चंद्रा का नाम पुकारते थे, और फिर एक दिन सुबह हम सबको छोड़ गए।
रजनी ने कहा, “मैंने तो सब बता दिया, अब बताओ आप कैसे इनको जानते हो।”
चंद्रमुखी बोल उठी, “कहाँ से शुरू करूँ, मुझे शब्दो को एक लाइन से सजाना होगा, सब बाहर आने को तत्पर हैं। तो सुनो, मैं टीचर हूँ उस समय भी सरकारी स्कूल में पढ़ाती थी। मेरा नाम ही चंद्रमुखी है, वो मुझे प्यार से चंद्रा बुलाते थे। विवाह के पहले हम एक ही बार एक बड़े गार्डन में मिले थे, वहीं बड़े प्यार से हाथ सहलाते मुझसे कहा था, कोई गीत सुनाओ जो मैं हमेशा सुनकर प्यार में डूब जाऊं और उस समय मैंने दो लाइन शर्माते हुए गुनगुना दी…आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं।”
मैं और मेरे पति गिरजा शंकर शादी के छह महीने बाद ही उत्तराखंड की यात्रा पर गए थे, कैसे पता नही, उस समय बारिश का जोर था, दो दिन से रुकने का नाम ही नही ले रही थी। हरिद्वार से लौटने का दिन भी आ गया, गिरजा जी परेशान, मैं तो नाव में बैठ ही नही पाया, मुझे गंगा जी मे नाव में घूमना है, ऐसा करो बारिश बहुत तेज़ है, तुम होटल में रहो, मैं जरा नदी किनारे घूमकर आता हूँ, तब एक साथ खाना मंगाकर खाएंगे।
और वो गए तो वापस नही आये, दो दिन मैं पुलिस वालो के साथ गंगा किनारे घूमती रही। फिर अपने शहर वापस आ गयी। जेठ जिठानी घर पर थे, बाद में तीन चार वर्ष हर जगह हम सब गिरजा जी को ढूंढते रहे। इसी आशा में दस वर्ष गुजर गए कि शायद कहीं से आकर खड़े हो जाये। फिर कुछ बड़ो ने कहा भी, शादी कर लो, पर मेरा मन इस विषय से उचट गया और मैंने अपने आपको बच्चों के साथ स्कूल में व्यस्त कर लिया। जेठ जिठानी भी अकेले थे, उनके स्वर्गवास के बाद पूरे ससुराल का तीन मंजिला मकान मेरे नाम हो गया।
कई किरायेदार परिवार सहित रहते थे, कभी मुझे अकेला पन नही महसूस हुआ।
आज बैंक में मुझे यूँ लगा जैसे वो युवा गिरजा शंकर जी मेरे सामने आकर खड़े हैं। मैं ईश्वर का न्याय देखकर चकित थी।
रजनी ने कहा, “अरे हमदोनो के सिंदूर की रेखा समानांतर चलती रही, और हमे खबर भी न हुई। हम बहने ही तो हुए, आओ गले लगो।”
शाम हो चली थी, तभी अमन बेटा बैंक से आया,” अरे आप दोनो यूँ लिपट के रो रही हो, जैसे बरसों के बाद मिली हो।”
“हां, बेटे, ये तुम्हारी मौसी है, माँ से बढ़कर समझना।”
और हालात ने गिरजा शंकर और शम्भू शरण को एक कर दिया।
भगवती सक्सेना गौड़,
बैंगलोर, भारत