छोटा कद, ऊँचा व्यक्तित्व
देश को आजादी मिले बीसेक बरस हुए होंगे, जब हमने एक छोटे शहर के एक छोटे स्कूल में पढ़ाई शुरु की थी। तब देश कितनी समस्याओं से जुझारू होकर लड़ रहा है, नहीं पता था। लेकिन देश के दूसरे प्रधानमंत्री की मौत पर स्कूल के प्रांगण में एक छोटी सभा हुई थी। हम सब छोटे बच्चे प्रधानाध्यापिका का भाषण सुन रहे थे। उस भाषण का केवल एक वाक्य मुझे याद रहा -“छोटा कद, ऊँचा व्यक्तित्व ।/” लेकिन तब कुछ समझ में नहीं आया था। धीरे-धीरे, बढ़ते हुए इस स्वतंत्रता सेनानी जिसे -“गुदड़ी का लाल” भी कहते थे– की सज्जनता, सौम्यता, प्रासंगिकता के आगे नतमस्तक हो गई। कैसे 2 अक्टूबर को मुगलसराय में जन्मे इस “नन्हे” लाल बहादुर ने बचपन से कड़ी और दुखद परिस्थितियों का सामना किया, कैसे उफनती गंगा नदी तैरकर पार कर अपनी स्कूल शिक्षा जारी रखी और कैसे काशी विद्यापीठ में पढ़ते हुए वह महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। “शास्त्री” उनकी स्नातक की डिग्री थी, लेकिन वह जब उन्होंने जातिसूचक पदनाम को त्याग दिया, तब उनके नाम से जुड़ गई | गरीब घर का लड़का इरादों का पक्का और सिद्धांतवादी था। 4927 में ललिता देवी के साथ शादी में केवल एक चरखा और कुछ खादी के बुने हुए कपड़े ही उनका दहेज था। 4930 की डांडी यात्रा से वह पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में जुड़ गए। कई बार जेल भी गए। 4946 से विभिन्न पद सम्भालने और 4954 से केंद्र की जवाबदारी सँम्हालने लगे। एक रेल दुर्घटना के बाद रेलवे मंत्री से पदत्याग करना उनके छोटे कद लेकिन दृढ़ व्यक्तित्व को इंगित करता है। प्रधानमंत्री नेहरू के बाद उन्होंने उन्नीस महीने देश की कमान सँम्हाल ली दूसरे प्रधानमंत्री के तौर पर।
महात्मा गाँधी को वह अपना गुरु मानते थे और यह समझते थे कि देश की आत्मनिर्भरता गाँवों से शुरु होती है। देश की आजादी के समय 36 करोड़ जनसंख्या जनता को अगर रोटी, कपड़ा, मकान मुहैया कराना है तो गाँवों को आत्मनिर्भर बनाना होगा। आजाद देश में ‘हरित क्रांति’ और ‘सफेद क्रांति’ अब नया नारा होगा – अन्न और दूध – अगर ठीक से उपजें तो गाँव समृद्ध होंगे। घर-घर, गली-गली में “जय जवान, जय किसान’ का नारा गूंजने लगा। ये नारा कितना सरल और हृदयस्पर्शी है– देश के बाहर और अंदर के रखवालों को मान, सम्मान, स्थान देने के लिए। आज इस नारे को आगे बढ़ाते हुए देश खद्यात्र उत्पादन में आत्मनिर्भर और दुग्ध उत्पादन और पशुपालन में दूसरे स्थान पर है। ‘हरित क्रांति’ ने ‘जय विज्ञान” के नारे को भी जन्म दिया। उन्होंने कल्पना की थी ऐसे भारत की जहाँ सामान्य जनता सर्वोपरि हो, उनकी आवाज शासन के कानों तक पहुँचे। प्रत्येक सोमवार को अन्न त्यागने और व्रत रखने की उन्होंने देशवासियों से अपील की थी। मुझे याद है कि छोटी दादी ने इस व्रत का आजीवन पालन किया, यह कहते हुए कि शास्त्री जी ने कहा था। “देश के प्रति निष्ठा सभी निष्ठाओं से पहले आती है। इसमें कोई प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि बदले में उसे क्या मिला’-शास्त्री जी की इस उक्ति में उनके जीवन का मूलमंत्र छिपा है। आज अगर हम चारों तरफ देखें तो देश बदल रहा है– और शायद देशवासी भी। पिछले तीस-चालीस सालों में लोकतंत्र में बड़े दुर्गुण आ गए हैं– देशभक्ति “स्वयम् भक्ति” में बदल गई है। स्वतंत्रता संग्राम जिन आदर्शों और मूल्यों पर लड़ा गया, वह शायद कहीं खो गया। जातिवाद, अवसरवाद, धोखाधड़ी जैसे नए मूल्य देश की राजनीति और सामान्य जीवन में धीरे-धीरे रेंगने लगे हैं। कभी सोचती हूँ कि शास्त्री जी अगर इस परिस्थिति में होते तो क्या करते? उनका कहना था कि आपस में मत लड़ो। लड़ना है तो गरीबी, बीमारी और अंधविश्वास से लड़ो। वह विश्वास करते थे कि शांति और विकास से देश ही नहीं, विश्व भी समृद्ध होगा। पड़ोसी अगर ठीक नहीं तो हमें भी तरक्की नहीं मिलेगी। कितना सच कहा था उन्होंने। पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के कारण देश में एक परेशानी का माहौल बना रहता है। कितना अच्छा हो, अगर हम मिलजुलकर शांति से अपनी समस्याओं का हल ढूँढें।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बहुत सत्तरंगी है। इसमें युवा, महिलाएँ, किसान, मजदूर, कवि, खेतिहर, गृहणियाँ, आदिवासी सभी शामिल हैं। गाँधी जी की एक आवाज पर लोगों ने घर की, विलासिता की, आराम की बेड़ियाँ काटी, अपनी दहलीज लांघी और कूद पड़े देश के लिए। लाल बहादुर श्रीवास्तव, जो कि हमारे ‘शास्त्री’ जी हैं, भी उनसे बहुत प्रभावित थे। यह संयोग ही है कि दोनों का जन्मदिन भी 2 अक्टूबर है और दोनों ही हैं भारत के “लाल”| 4964 में लालकिले की प्राचीर से भारत के बतौर प्रधानमंत्री उन्होंने देश के जवानों, सैनिकों और युवाओं से अनुशासन पालन की अपील की थी और देश की एकता और उन्नति के लिए प्रतिबद्ध होने को कहा था। आज जब हम चारों तरफ देखते हैं तो थोड़ी आशा की किरण नजर आती है। देश में तरक्की हुई है। बहुत क्षेत्रों में हम आगे बढ़े हैं– कारखाने खुले हैं, सड़कें बनी हैं, बाँधों का निर्माण हुआ है, सिंचाई के नए आयाम स्थापित हुए हैं। देश का किसान आज पहले से ज्यादा समृद्ध है। लेकिन मुसीबतें उसके लिए आज भी शायद कम नहीं हुई हैं। शास्त्री जी के दृढ़ व्यक्तित्व के कारण ही देश में आई.ए.एस. अधिकारियों को प्रशिक्षण देने वाला संस्थान उनके नाम से जाना जाता है ताकि देश के प्रशासनिक अधिकारी उनके आदर्शों को समझें और सत्यनिष्ठा से सही काम करें। लाल बहादुर शास्त्री एकादमी, मसूरी में उनकी एक बड़ी आदमकद प्रतिमा है। वहाँ रहते हुए न जाने कितने अधिकारियों ने आम आदमी की सेवा के उनके प्रण को दोहराया होगा। उन्होंने अपने सपनों के भारत की नींव रखी थी। इमारत अभी शायद उतनी चमकदार नहीं बनी है अब तक, लेकिन कर्तव्यरत रहकर ही उसे बचाया, सँवारा, चमकाया और सुधारा जा सकता है।
मुझे शास्त्री जी का यह कथन “अपने देश की आजादी की रक्षा करना केवल सैनिकों का काम नहीं बल्कि पूरे देश का कर्तव्य है”, उनकी सबसे बड़ी विरासत लगती है।
✍️ डॉ. अमिता प्रसाद