आजादी का अमृत महोत्सव :राष्ट्र प्रथम ,सर्वदा प्रथम
इस वर्ष,15 अगस्त 2023 को भारत ” राष्ट्र प्रथम, सर्वदा प्रथम ” की थीम के साथ 77वाँ स्वतंत्रता दिवस मना रहा है । इसके साथ ही यह खड़ा है-आजादी के अमृत महोत्सव की उत्सवभूमि पर।आज़ादी के अमृत महोत्सव की आधिकारिक यात्रा की शुरुआत 12 मार्च , 2021 को हुई थी जिसकी 75 सप्ताह की उल्टी गिनती हमारे स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के लिए शुरू हो गई तथा यह एक वर्ष के बाद 15 अगस्त, 2023 को अर्थात् आज ही समाप्त हो रही है।
12 मार्च, 1930 को ही गांधी जी के नेतृत्व में दांडी मार्च की शुरुआत हुई थी जो कि नमक पर ब्रिटिश एकाधिकार के खिलाफ प्रत्यक्ष अहिंसक प्रतिरोध अभियान था। गांधीजी ने 12 मार्च को साबरमती से अरब सागर (दांडी के तटीय शहर तक) तक 78 अनुयायियों के साथ 241 मील की यात्रा की थी। भारत की आजादी भी 77 वर्षों की लम्बी यात्रा पूरी कर चुकी है और आज इस यात्रा में उसके सहयात्री हैं लगभग 140 करोड़ लोग।
आज़ादी का अमृत महोत्सव भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक पहचान को प्रगति की ओर ले जाने वाली सभी चीजों का एक मूर्त रूप है, जिसके अन्तर्गत नौ महत्वपूर्ण विषयों के आधार पर अनेक अभियान संचालित हुए : महिलाएं एवं बच्चे,आदिवासी सशक्तिकरण, जल,सांस्कृतिक गौरव,पर्यावरण के लिए जीवन शैली,स्वास्थ्य और कल्याण,समावेशी विकास, आत्मनिर्भर भारत और एकता।
विस्मृत नायकों को याद करना ,75 वर्षों पर विचार,75 वर्षों की उपलब्धियां,75 वर्ष पर कदम,75 वर्ष पर संकल्प—-आजादी के अमृत महोत्सव के पांच मुख्य प्राण तत्व रहें।
13 से 15 अगस्त तक ,’हर घर तिरंगा ‘ के सम्मानजनक अभियान के साथ लाल किले पर देश के स्वतंत्रता दिवस समारोह में अट्ठारह सौ लोगों को विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है जो अलग-अलग क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं– जैसे 600 वाइब्रेंट विलेज के 400 सरपंच से लेकर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट से जुड़े 50 श्रमयोगी तक।50 खादी कामगार से लेकर सीमा सड़क निर्माण से जुड़े लोगों के साथ -साथ अमृतसरोवर और हर घर जल योजना से जुड़े कामगार शामिल होंगे। प्राथमिक स्कूलों के 50 शिक्षक,नर्स और मछुआरे आदि भी शामिल होंगे।जन भागीदारी विजन के तहत ये सभी मेहमान नेशनल वॉर मेमोरियल भी जाएंगे। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 75 जोड़े भी स्थानीय वेशभूषा में नजर आएंगे ..यह भी वैसा ही है जैसा कि जी-20 के विभिन्न स्थलों पर हो रही बैठकें भारत के सांस्कृतिक विरासत को ,उसके स्थानिक कौशल को जगत के पटल पर स्थापित करना चाहती हैं।
जगत के पटल पर स्थापित करनेवाली अनेक तस्वीरें हैं । हमारे चन्द्रयान -3 के चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने की उम्मीद हमें गौरवपूर्ण स्थिति प्रदान कर रहा है तो साथ ही खाद्य जगत हो या युद्ध उपकरणों का मामला, विदेश नीति हो या स्वास्थ्यलब्धता के लिए हो रहे कार्य,पर्यटन का क्षेत्र हो या शिक्षा जगत–विभिन्न मंचों पर सशक्त छवि उभर रही है।
कभी अन्न के लिए परनिर्भरता के कारण झेले अपमान व दुःख वाला भारत न केवल दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है वरन चावल का भी सबसे बड़ा निर्यातक बन चुका है।ऑर्गेनिक फार्मिंग को विस्तृत आयाम देने की योजनाएँ प्रस्तावित हैं तो गेहूं के निर्यात को भी बढ़ाने की कोशिश की जा रही है परंतु चिंताजनक है कि अनेक योजनाओं के बावजूद किसानों का जीवन स्तर–औसत किसान का , शोचनीय है और कई जगह किसान मजबूर हो खेती को छोड़ सस्ते श्रमिक बनने का विकल्प चयन कर रहे हैं।किसानी किसान के लिए लाभप्रद हो-इसे सर्वप्राथमिक चुनौती के रूप में स्वीकार किया जाना ही होगा।
शिक्षा के क्षेत्र में आज देश में 15 लाख से ज्यादा प्राइमरी और माध्यमिक स्कूल हैं जिनमें 30 करोड़ बच्चे शिक्षा पाते हैं और एक करोड़ से ज्यादा शिक्षक इस क्रिया में संलग्न है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी विश्वविद्यालयों की संख्या लगभग 1113 है जिसमें कुल मिलाकर लगभग 4.2 करोड़ युवा उच्च शिक्षा पा रहे हैं। परंतु हकीकत में शैक्षिक संस्थानों में आधारभूत संरचनाओं का अभाव सबसे बड़ी चुनौती के रूप में मुंह बाए खड़ा है, जिसमें शिक्षकों के उपयुक्त संख्याबल का अभाव शिक्षा की गुणवत्ता की जड़ में दीमक की तरह कार्य कर रहा है। आने वाले समय में हमें संसाधनों के साथ-साथ दुनिया की चतुर्थ औद्योगिक क्रांति- इंटरनेट के साथ समरसता स्थापित करते हुए शिक्षा को एक अभूतपूर्व संभावना के रूप में उत्पन्न करना होगा ताकि हम अपने महान लोकतंत्र और उसके सक्रिय अंगों को योग्य कार्य बल प्रदान कर सकें और रोजगार के अन्य अवसरों का भी विकास कर सकें।
किसी भी देश की स्वास्थ्य संरचना उसके सामाजिक विकास का एक प्रमुख इंडेक्स है।भारत में पिछले 75 वर्षों में स्वास्थ्य की स्थिति में भारी बदलाव तो आया है। जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, गर्भवती माताओं और नवजात शिशुओं की मृत्युदर में कमी ,चेचक और पोलियो जैसी बीमारियों का खात्मा इस दिशा में संतोषजनक कदम है परंतु गैर संचारी रोगों की भयावह उपस्थिति बढ़ी है।जैसे – हृदय, लीवर ,किडनी रोग – आदि सभी मृत्युदर में लगभग दो – तिहाई का योगदान करते हैं।हर चार भारतीय में से एक को मधुमेह या पूर्व मधुमेह है, हर तीन में से एक उच्च रक्तचाप से ग्रस्त है। जेनेरिक दवाओं के प्रचलन पर जहाँ आज भी प्रश्नचिन्ह है तो लोकस्वास्थ्य में माफिया पद्धति चिंताजनक है। समाज के सबसे गरीब और सबसे हासिये पर रहने वाले लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं की लागत की चिंता के बिना आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक आसान पहुंच प्राप्त करवाना ,योगमय और पुरातनचिकित्सा प्रणाली पर आधारित जीवन प्रणाली का विस्तार– भविष्य की दिशाएं तय करेंगी।
5′ टी’ ,- टैलेंट, ,ट्रेडीशन , ट्रेड ,टेक्नोलॉजी , टूरिज्म—यह नया दृष्टिकोण पर्यटन के क्षेत्र में भारत को दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्रबनाने का स्वप्न संजो रहा है। इस क्षेत्र में धारा 370 का हटना एवं ‘हील इन इंडिया ‘ प्रोग्राम महत्वपूर्ण कदम स्थापित होंगे। ‘हील इन इंडिया ‘ प्रोग्राम विश्व के 44 देश को शामिल कर उन्हें कम कीमत के अच्छे उपचार और स्वास्थ्य के लिए भारत के अस्पतालों को उपलब्ध कराएगा।”प्रथम वैश्विक पर्यटन निवेशक सम्मेलन ‘ पर्यटन मंत्रालय जी-20 अभियान के तहत आयोजित भी करने जा रहा है।
आजादी का अमृत काल वैश्विक स्तर पर भारत की नई छवि के लिए अवश्य याद किया जाएगा । कोरोना कल में भारत की वैक्सीन नीति से लेकर वर्तमान कल में भारत का ” नेशन फर्स्ट “का अभियान “एडवांसिंग प्रोस्पेरिटी एंड इनफ्लुएंस ” की विशेषता के साथ आगे बढ़ रहा है। चीन की विस्तारवादी नीति और पाकिस्तान के आतंकवाद से जूझते हुए प्रधानमंत्री का ” थिंक बीग , ड्रीम बिग , एक्ट बिग का मंत्र ” विदेश नीति को एक नया आयाम दे सकता है। रूस और यूक्रेन के युद्ध के साथ दुनिया के दो हिस्सों में विभाजन की जो स्पष्ट रेखा दिख रही है ,इस दौर में भारत की विदेश नीति का अहम राग-” यह युद्ध का युग नहीं है।”– सशक्त जबाब है।
युद्ध संबंधी उपकरणों के क्षेत्र में भारत का बढ़ता स्वावलंबनऔर इस स्वावलंबन का पनपता वैश्विक बाजार एक सुखद संकेत है और इसके लिए हमारी डीआरडीओ संस्था और सरकार की नीतियां बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं। तेजस सिरमौर है हमारा।
परन्तु यथार्थ यह भी कि बहुत क्षेत्र है भारत के पास अभी काम करने के लिए– सर्वप्रथम तो अंदरूनी विरोधाभासों से लड़ना ;चाहे उसकी पृष्ठभूमि शैक्षिक विषमताओं का परिणाम हो,लैंगिंग शोषण का सूचक हो ,राजनीतिक विरोधाभासों और क्षुद्रताओं का परिणाम हो ,आर्थिक खाई से उत्पन्न विषमता हो या सामाजिक चेतना में अपेक्षित विकास न हो पाना हो ।प्राकृतिक आपदाओं से लड़ना और उससे कम से कम हानि हो- इसके लिए उपयुक्त रणनीतियां बनाना और व्यवस्था तैयार करना; उपलब्ध संसाधनों का सतत पोषणीय संरक्षण–अभी चुनौती रहेंगी।परंतु सारे सवालों का जवाब हमारे अंदर ही छुपा हुआ है।सबको आजादी के इस शुभ अवसर की आत्मिक बधाई।
रीता रानी
जमशेदपुर, झारखंड