शहादत
शहादत
जो हुआ सो हुआ
अब तू संभाल ले खुद को
दूर चलना है,
रास्ता अभी बाकी
आशाओं की तरह |
आसान नहीं है रास्ता
यहाँ जंगल भी है
फूलों भरी बगिया भी,
खूंखार शेर भी है
मासूम तितली भी |
फिर भी चलना है
लक्ष्य के लिए
और दिल में प्रेम लिए.. |
तू उठ ,
जाग,
गिर के लड़खड़ा के ,
बिखर के
खून से लतपत
जैसे भी हो तू उठ |
पकड़ ले अस्त्र
प्यार का,
दोस्ती का
अहिंसा, सत्य अौर न्याय का |
भले भाई के बदले शत्रु निकले ,
प्रेम के बदले खून मांगे,
तू भी उठा लेना बंदूक ..
किसी का बेटा, पति का शहादत होगा
देश के लिए फिर से ..
आस जगाके रखना राही ..!
कदम मिला के चलना |
देश का पुकार है ..दिलों को जोड़े रखना |
डॉ. मौसमी परिड़ा
साहित्यकार,
जगतसिंहपुर ,
ओडिशा