नैतिक शिक्षा की आवश्यकता
भारत माता ग्राम वासिनी,आज आजादी के 70 साल बाद भी यह तस्वीर नही बदली है,आज भी गरीबों के आँसू को देख भारतमाता कराहती है ।अपने करोड़ों बच्चों के नग्न तन को देख क्षुब्ध होती है।कभी हमने गहराई से सोचा कि इतने दिनों बाद अपने ही शासन में भी क्यों हमारी स्थिति ऐसी है? तो हर बार एक चेहरा ही नजर आता है वह है भ्रष्टाचार का,वह है अशिक्षा का,वह है बेरोजगारी का।इतने सालों में विभिन्न सरकारों ने कोशिश की तो इन कोशिशों पर हमारी बढ़ती आबादी ने पानी फेर दिया।हमारी मानसिकता ने पानी फेर दिया।हम आज मुफ्तखोर हो रहे है।विभिन्न योजनाओँ में सरकार ने गरीबी के नाम पर जो योजनाएं लागू की है उसकी वास्तविकता क्या है? इसकी तह तक कौन जाता है या क्या कोई दंड का प्रावधान है? उज्जवला योजना में धुएं से छुटकारा दिलाने के लिए सरकार ने चूल्हा और सिलेंडर तो दे दिया लेकिन फिर उसे दोबारा भरवाता कौन है,वहां तो पैसा देना पड़ता है जंगलों से लकड़ियां मुफ्त मिलती है।फिर शुरू होता है वही धुंआ।शौचालय के लिए या तो गड्ढों को दिखाकर पैसा ले लिया गया या फिर पुराने को दिखाकर ही पैसा मिल गया।हाँ, यह सच है कि कुछ संख्या जरूर बढ़ी है,शौचालय इस्तेमाल करनेवालों की।बी पी एल योजना में कम कीमत में जो अनाज मिलता है वह बाजार में या तो आसानी से बिक जाता है या फिर पेट भर जाता है तो गरीब काम क्यो करना।आरक्षण है 70 साल बाद भी ,लेकिन विद्वजन इस पर गहन चिंतन करें कि क्या वास्तविक लोगों को यह लाभ मिल पाता है।जो वास्तव में इसके हकदार है, वे अशिक्षा के कारण अपना अधिकार ही नही जानते है।
यानि मैं तो यह मानती हूं कि हमारी मानसिकता ही ऐसी हो गई है ।जीवटता धीरे धीरे समाप्त हो रही है।लोग आसान सी जिंदगी जीना चाहते है।स्व का बोलबाला हो रहा है।काम आसानी से हो जाये इसके लिए हम सुविधाशुल्क यानी घूस स्वयं देते है फिर घूसखोरी का रोना भी रोते है। सम्पन्न एवमं समृद्ध भारत की तस्वीर को फिर विश्व के नक्शे पर देखना है तो हमको स्वयं को सुधारना होगा।हर पढ़ा लिखा व्यक्ति सिर्फ एक व्यक्ति को साक्षर करने की कोशिश करें। पुनः विद्यालयों में नैतिक शिक्षा को शामिल किया जाए और नई पीढ़ी को एक बार एक सच्चा इंसान बनाने की कोशिश की जाए।
डॉ. अनिता शर्मा
साहित्यकार और शिक्षिका
जमेशदपुर