वास्तविक आजादी से दूर

 

वास्तविक आजादी से दूर

हम भारतवासी पिछले 70 वर्षों से आज़ादी की खुशफ़हमी में जरूर जी रहे हैं, परन्तु क्या वास्तव में हम स्वछन्द, स्वतन्त्र और निर्भीक जीवन बिता पा रहे हैं। आज भी देश का एक बड़ा वर्ग जीवन के मूलभूत आवश्यकताओं, जैसे, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्याप्त सन्तुलित आहार इत्यादि से भी वंचित है। बेशक सरकार में कोढ़ की तरह व्याप्त भ्रष्टाचार, कर्तव्यविहीनता विकास के मार्ग में एक बड़ी बाधा है, परन्तु क्या सरकार पर दोष मढ़ कर हम आम नागरिकों को निश्चिंत हो कर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना चाहिये और देशप्रेम के नाम पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस पर तिरंगे के सामने देशभक्ति गीत गा कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर देनी चाहिये ? उससे भी ज्यादा हुआ तो किसी सरकार की आलोचना, किसी सरकार की प्रशंसा कर , सभी मूलभूत बातों को छोड़ कर कभी धर्म, कभी जातिवाद, कभी प्रान्तवाद पर उलझ कर खुद को राष्ट्रवादी समझ लिया।
आज हमारे देश की मूलभूत आवश्यकता जागरूकता और एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता है। क्यों हमें अपने आस पास फैली अशिक्षा नहीं दिखती, क्यों इलाज के अभाव में मरते बच्चे नहीं दिखते, क्यों उपेक्षित महिलाएं नहीं दिखतीं, क्यों असुरक्षित बेटियाँ नहीं दिखतीं, क्यों दिशाहीन बेचैन युवा नहीं दिखते … क्या ये हमारा कर्तव्य नहीं , क्या यही सही अर्थों में राष्ट्रवाद नहीं !!!
आईये थामें एक दूसरे को , भारत का जन जन अपना है, कोई पराया नहीं। यदि हम सब एक दूसरे को थाम लें, छोटे छोटे प्रयासों से सभी को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रयास करें ,तभी हम सही मायने में आज़ाद होंगे, खुश होंगे, निर्भीक होंगे।
जय भारत

डॉ. निधि श्रीवास्तव
मनोवैज्ञानिक, सह-प्रधानाध्यापिका
विवेकानन्द इंटरनेशनल स्कूल
जमशेदपुर

 

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