” सपनो का भारत “
हो न अमन की कमी इस जहां में
मिलजुल सब रहें इस जहां में
हर विस्थापितों को मिले आशियाना
रहे अनाथ ना कोई इस जहां में
आतंकी के आतंक का हो खात्मा
उन्हें भी प्यार मिले इस जहां में
बागों में खिले हर इक कली
कहीं कुम्भला न जाए इस जहां में
अधिकार हर औरत को यूं मिले
हक के लिए न लड़ें इस जहां में
नेता हम चुने अपने विवेक से
धर्म के नाम पर न बटें इस जहां में
फर्क बेटे बेटियों का जब मिटे
इज्जत भी तब मिले इस जहां में
फूलों में खुशबू हो तभी
कुसुम न बने मौसमी इस जहां में
निज स्वार्थ से ऊपर रहे देश हित
यही सपनो का भारत इस जहां में
कुसुम ठाकुर
वरिष्ठ साहित्यकार और समाजसेविका
संपादक और प्रकाशक
आर्यावर्त