तस्वीर भीड़तंत्र की

तस्वीर भीड़तंत्र की

कुछ संसद में, कुछ सड़क पर चिल्ला रहे हैं
छुप भीड़ में, हमें मारने की योजना बना रहे हैं !

चाल सियासी हो या फिर बात हो धार्मिक उन्माद की
ताक पर रख मानवता, शिकार हमें बस बना रहे हैं !

योजना वद्ध तरीके से शिकार हमारे करते हैं
कौन जिन्दा, कौन मुर्दा, ख़ाका सब बना रहे हैं !

कभी घर वापसी, कभी लव जिहाद, तो कभी गोरक्षा
रह – रह अल्पसंखयक होने का हौआ बस बना रहे हैं !

लाशों पे लाशें गिर रही, नींद टूटी कहाँ किसी की
निज मंशा को, तस्वीर भीड़तंत्र की सब बता रहे हैं !

हम नहीं ज़िम्मेदार, इन सबका रह- रह समझाते
औकात़ हमारी क्या ? इल्ज़ाम भीड़ पर लगा रहे हैं !

बन एक हादसा, अखबार में आ गए हम भी, तुम भी
बीती क्या हम पर, कहानी हमारी हमें ही बस सुना रहे हैं !

कौन ज़ालिम यहाँ, ज़ुल्म हुआ किस पर, जानते हैं
फकत, अपनी दलील से सबको सब झुठला रहे हैं !

अब कहाँ ढूंढ़ने जाओगे तुम क़ातिल ‘अजय ‘
जब तेरी कलम को ही हथियार सब बता रहे हैं !

कुछ संसद में, कुछ सड़क पर चिल्ला रहे हैं
छुप भीड़ में, हमें मारने की योजना बना रहे हैं …

— अजय
साहित्यकार
जमशेदपुर

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