सुधा मूर्ति

सुधा मूर्ति

बीते 75 सालों में हमने हर वर्ष देश की आज़ादी का जश्न मनाया है और हम उन सभी वीर-वीरांगनाओं को याद करते रहे हैं, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उन सभी पुण्यात्माओं को मेरा नमन।

आज कुछ अलग करते हुए हमें उन लोगों को भी याद करना चाहिए जिन्होंने 1947 के बाद से देश को सही राह पर चलना सिखाया, विश्व स्तर पर हमारी छवि को बेहतर बनाया या अलग-अलग तरह से योगदान देते हुए देश को बुलंदियों तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया। हम ऐसे अनेक महानायकों को नमन करते हैं जिन्होंने अपने विशिष्ट कार्यों से भारत को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया और उस भारत की नींव रखी जिस पर 135 करोड़ भारतीय आज गर्व करते हैं। इन महान लोगों में नेता, प्रशासनिक अधिकारी, सेनानी, उद्योगपति, डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और समाजसेवी सभी शामिल हैं। आज़ादी के अमृत महोत्सव में इन्हें याद न करने की भूल हम नहीं कर सकते।

आइए, आज आप सभी का परिचय एक ऐसी ही बहुमुखी प्रतिभा की धनी, देश की नायिका से करवाती हूँ, जिन्होंने अपने लिए सभी भारतीयों के दिलों में एक अलग जगह बनाई, उनका नाम है (पद्म श्री) श्रीमती सुधा नारायण मूर्ति। पहले आपको बताती हूँ कि मैंने इस लेख के लिए उन्हें ही क्यूँ चुना, जैसे ही मैंने ये जाना कि मुझे देश को आगे बढ़ाने वाले किसी व्यक्ति पर रचना लिखनी है, मेरे मन में सबसे पहले उन्हीं का नाम आया, क्योंकि 71 वर्ष की उम्र में भी वे एक ऐसी महिला हैं जो देश के हर वर्ग के लिए उत्तम आदर्श हो सकती हैं। सादगी ही उनका गहना है, वे साधारण हैं लेकिन ऊर्जस्वी भी, वे निर्भीक हैं लेकिन विनम्र भी, वे करोड़ों लोगों की प्रेरणा की स्त्रोत हैं। उनकी समाजसेवा और उनके मन की करुणा के लोग उदाहरण देते हैं और अब तो लेख और कहानियाँ भी लिखते हैं।
श्रीमति मूर्ति इंजीनियर होने के साथ-साथ लेखिका भी हैं और उनकी समाजसेवा के कारण वे हमेशा चर्चा में रहती हैं। उन्होंने महिला सशक्तीकरण के लिए कई तरह के अभियान चलाए हैं। उनका मानना है कि 100 करोड़ का दान देना या 100 बच्चों को शिक्षा दिलाना बराबर मायने रखता है। अपने पूरे जीवन में उन्होंने अपने बच्चों और सभी को पैसे का महत्व समझाया है, फ़िज़ूलखर्ची न करने का संदेश दिया है और असाधारण आदर्श बन कर शिक्षा दी है।

वे एक सच्ची देशभक्त हैं, और देश को आगे बढ़ाने से ले कर प्राकृतिक आपदाओं में भी देश की जनता की मदद के लिए उन्होंने आदर्श योग्य कार्य किया है। उन्होंने कई बार यह बात कही है कि देश की सेवा करना ही उनका परम उद्देश्य है। लोगों के जीवन में बदलाव ला कर, शिक्षा और कर्तव्य की राह दिखा कर भी देश की सेवा की जा सकती है। स्त्रियों का सशक्तीकरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास, निराश्रितों की देखभाल जैसे कई काम वे निरंतर करती हैं। उन्होंने शिक्षा देने के लिए कई स्कूल बनवाए हैं, अभी तक वे 50,000 लाइब्रेरी बनवा चुकी हैं, उनका मानना है कि पुस्तकें और ज्ञान ही मनुष्य का सच्चा साथी है, हमें बच्चों में पुस्तकें पढ़ने की आदत बनाना चाहिए। उन्होंने इंफ़ोसिस फ़ाउंडेशन की मदद से बाढ़ से प्रभावित लोगों के लिए 2,300 घर बनवाए हैं। बैंगलोर शहर और इसके आस-पास अब तक वे 10,000 सार्वजनिक शौचालय बनवा चुकी हैं। कच्छ के भूकंप, सूनामी के कारण तमिल नाडु और अंडमान, उडीसा और कर्नाटक में बाढ़ प्रभावित इलाकों में उन्होंने वृहद स्तर पर राहत कार्य किए हैं।
उनकी खासियत है कि वे इन सभी जगहों पर स्वयं भी मौजूद रहती हैं, और इसके लिए उन्होंने कभी भी पूँजी जमा नहीं की बल्कि बाँटी है। कई सालों से उन्होंने खरीदारी बंद कर दी वे केवल आवश्यक वस्तुएँ और किताबें ही खरीदती हैं और उपहार में भी पुस्तकें ही देती हैं। उनका मानना है कि शौक के लिए खरीदी गई एक साड़ी के पैसों में गरीब बच्चों की कई महीनों की फ़ीस भरी जा सकती है। उनकी बातें केवल शब्द नहीं होतीं वे इन्हें आचरण में ला कर आदर्श सामने रखती हैं। इसी वजह से देश और दुनिया में उन्हें सादगी और करुणा की जीती जागती मिसाल कहा जाता है। उनकी इसी सत्यनिष्ठा और सरलता ने करोड़ों लोगों को समाजसेवा और समाज की प्रगति में योगदान देने के लिए प्रेरित किया है।
श्रीमति मूर्ति का जन्म 19 अगस्त 1950 को कर्नाटक के शिगाँव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ, जहाँ शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता था। उन्होंने उस समय इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त की जब महिलाओं को पढ़ाना-लिखाना बेकार माना जाता था, लेकिन श्रीमति मूर्ति थीं भी अभूतपूर्व प्रतिभा की धनी और उनमें चाह थी कुछ बड़ा करने की। इसके बाद उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की। इन दोनों ही परिक्षाओं में वे अव्वल रहीं।

1970 में उन्होंने टेल्को (अब टाटा) कंपनी में इंजीनियर के रूप में कार्यभार संभाला उस पोस्ट के लिए किए गए विज्ञापन में लिखा था महिलाएँ आवेदन ना दें। श्रीमति मूर्ति से यह अन्याय सहा नहीं गया और उन्होंने कंपनी के मालिक श्री जे आर डी टाटा को इसकी शिकायत करते हुए एक पोस्टकार्ड लिख डाला। 10 दिनों के अंदर ही उन्हें श्री टाटा की ओर से जवाब मिला और उन्हें इंटर्व्यू में आने के लिए कहा गया, अपनी प्रतिभा के दम पर उन्हें नौकरी भी मिल गई। कहा जाता है कि उन्होंने हमेशा ही वह रास्ता चुना जिस पर अधिक चुनौतियाँ होती थीं। 150 लड़कों की कक्षा में वे अकेली लड़की थीं और कोई भी साथी उनकी मदद नहीं करता था, इसलिए उन्होंने शुरू से ही अपने ऊपर आने वाली अड़चनों को अपनी ढाल बनाना सीख लिया था।
1978 में उनका विवाह श्री नारायण मूर्ति से हुआ, जिनसे वे प्रेम करती थीं। श्री नारायण मूर्ति की सफलता में उनका बहुत बड़ा योगदान है, और वे स्वयं भी अपने आप में एक महान हस्ति हैं जिन पर पूरी किताब लिखी जा सकती है। नारायण मूर्ति ने अपने 6 मित्रों के साथ इंफोसिस की नींव रखी, सुधा मूर्ति ने अपनी 10,000 रुपयों की पूरी जमा पूँजी कंपनी के लिए दे दी और अपनी नौकरी छोड़ कर बच्चों का ज़िम्मा उठाया ताकि तीन साल तक श्री नारायण मूर्ति केवल अपनी नई कंपनी पर ध्यान दे सकें। श्रीमति मूर्ति को इंफोसिस में माँ का स्थान दिया गया है, इस कंपनी में उनकी तपस्या. त्याग और उनकी मेहनत सब कुछ लगा है। एक इंटर्व्यू के दौरान उन्होंने बताया था कि किस तरह कंपनी के शुरुआती दिनों में वे अकेले ही घर और बच्चों की ज़िम्मेदारी संभालती थीं यहाँ तक कि उन्होंने कपड़े खरीदना भी बंद कर दिया था और पूरा परिवार कंपनी को बड़ा बनाने की कोशिश कर रहा था। आज भारत को तकनीक के क्षेत्र में पहचान दिलाने वाली टाटा और इंफ़ोसिस दो बड़ी कंपनियाँ हैं। जो लाखों लोगों को काम देने के साथ-साथ विश्व पटल पर भारत का नाम ऊँचा करती हैं।
इंजीनियर, शिक्षाविद और समाजसेवी होने के साथ ही श्रीमति सुधा मूर्ति एक उम्दा लेखिका भी हैं। उनकी प्रभावशाली लेखनी के बच्चे भी दीवाने हैं। वे कन्नड और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिखती हैं और उनकी किताबें बहुत ही प्रेरक होती हैं। अधिकतर किताबों में उनके जीवन के अनुभवों को उन्होंने साझा किया है। बड़ी कठिन बातें भी वे बड़ी सहजता से कह जाती हैं और बच्चों के प्रति उनका लगाव गहरा है, जिसके कारण उन्होंने कई किताबें केवल बच्चों के लिए लिखीं हैं, यहाँ तक के वे स्कूलों में जा कर बच्चों से मिलना बात करना बहुत पसंद करती हैं। अभी तक वे 17 किताबें कन्नड में और 22 किताबें अंग्रेज़ी में लिख चुकी हैं।

श्रीमति मूर्ति का कहना है कि लक्ष्य पाने के लिए हमें अपनी शक्ति और अपनी कमियों को पहचानते हुए दृढ़ विश्वास रख कर लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए। वे इतनी कर्तव्यनिष्ठ हैं कि वे रविवार को भी काम करती हैं, हर सुबह 6 बजे ऑफिस जाती हैं और ये मानती हैं कि “छुट्टी के दिन हम वो करते हैं जो करने में हमें मज़ा आता है, और मुझे अपने काम में मज़ा आता है”। भारत के शिक्षा और तकनीक जगत में श्रीमति मूर्ति का अभिन्न योगदान है। समाज सेवा में उनका कोई सानी नहीं है, वे कभी भी प्रसिद्धि के लिए काम नहीं करतीं और उनका जीवन एक खुली किताब की तरह है जिसका वे हर दिन हर मिनट भारतीयों की सहायता करने में खर्च करती हैं। ऐसी देशभक्ति और जज़्बे को सलाम।

भारत की ऐसी निष्ठावान और उदार बेटी को मेरा शत शत प्रणाम।

महिमा सेंगर
लैंग्वेज एक्सपर्ट और लेखिक
दार ए सलाम ,तंज़ानिया

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