कोरोना की मार और 15 अगस्त

कोरोना की मार और 15 अगस्त

15 अगस्त … स्वतंत्रता-दिवस …खुशी और आनंद का दिवस…अंग्रेज़ी हुकूमत से भारत की आज़ादी का, बंधन-मुक्त होने का दिवस……

मुझे याद आते हैं, मेरे बचपन के दिन.. जब मैं स्कूल में थी और 15 अगस्त का दिन आता था… वह साठ का दशक था.. आज़ादी मिले चन्द साल ही बीते थे. उन दिनों देश-भक्ति का जूनून हर बड़े-बूढ़े-बच्चे के दिल में हिलोरें मारा करता था.. गांधी, नेहरू , सुभाष की तस्वीरें घरों, दुकानों, ऑफिसों की शोभा बढ़ाया करती थीं.. बच्चे देश के नाम पर कुर्बान हो जाने की कसमें खाया करते…भारत माता की जय और वन्दे मातरम की गूँज ह्रदय में जोश का संचार करती थी.. उन दिनों 15 अगस्त और 26 जनवरी का दिन किसी बड़े उत्सव या त्योहार की तरह मनाया जाता था. 15 अगस्त का माहात्म्य और उत्साह 26 जनवरी की अपेक्षा कहीं अधिक होता था.. इस दिन मिठाइयों की दुकाने सज़ जाती, लोग एक दूसरे का मुंह मीठा करते और बधाइयाँ देते…..
मनुष्य तो मनुष्य प्रकृति भी मानो इस जश्न में साथ देती… साफ़-शुद्ध हवा जीवन का संचार करती… नदी, झरने, तालाब, पेड़-पौधे सब खुशी से झूमते नज़र आते. घर-घर लहराते तिरंगे पर जान न्यौछावर करने की कसमें खाई जातीं.. अक्सर लोग 15 अगस्त के लिए नए कपड़े बनवाते.. सफ़ेद रंग के साथ तिरंगे रंग की ओढ़नी या गमछा प्रिय वस्त्र हुआ करता… .. साथ ही घरों की छतों या बालकनी में तिरंगा फहराकर लोग गर्व महसूस करते थे…
वो भी क्या दिन थे……
समय के साथ इस त्यौहार की रंगत फीकी पड़ने लगी.. देश की राजनीति में, नेताओं के दिलों में, देशभक्ति की जगह स्वार्थ हावी होने लगा.. देश का नाम ऊंचा हो, देश आगे बढ़े, के स्थान पर स्वनाम-धन्य प्रबल हो गया. एकता, अखण्डता, भाई-चारा, देश की प्रगति-उन्नति आत्म-तुष्टि की भेंट चढ़ गई.. धन का मोह हर मोह को निगल गया. अब 15 अगस्त आने की खुशी तो होती पर इसलिए कि छुट्टी मिलेगी… स्कूलों, दफ्तरों, कारखानों, प्रशासनिक सेवाओं में एक दिन का अवकाश जो घोषित हुआ था… आज भी खुशी का यही सबसे बड़ा कारण है..

आज प्रकृति भी अपने रंग बदलने लगी है. लोभ-वश प्राकृतिक सम्पदा का अत्यधिक खनन प्रकृति को मंज़ूर न था..बाढ़, तूफ़ान और धरती का फटना समय-असमय सुनाई देने लगा.. नदियों तालाबों का पानी साफ़ और मीठा न रहा.. पेड़ों की कटाई से पहाड़ दरकने लगे.. बड़े-बड़े बांधों ने नदियों की स्वाभाविक रवानगी, अल्हड़ता और उछाल पर बंदिश लगा दी… पाश्चात्य देशों की अंधाधुन्द नक़ल के भयानक परिणाम सामने आये.. प्रगति के नाम पर बिना समुचित प्रबंध किये कल-कारखानों की बाढ़ आ गई… मशीनों के साथ खेलते-खेलते मनुष्य की जिंदगी भी मशीनी हो गई.. प्रेम, सौहार्द्र, त्याग, बलिदान जैसी संवेदनाएं, कोमल भावनाएं गौड़ हो गईं.
हम फिर भी 15 अगस्त मनाते थे….मनाते आ रहे हैं….. और आगे भी मनाएंगे… पर……

सच तो यह है कि चूहा-दौड़ में भागोगे… प्रकृति के साथ खिलवाड़ करोगे तो नतीजा तो भुगतना ही पडेगा… 2020 में कोरोना महामारी फैली.. जन-जीवन ठप्प हो गया. लोग अपने-अपने घरों में बंद हो गए. कल-कारखाने, दुकानें सब बंद. जो लोग रोज़ कमाने और खाने पर निर्भर थे, रोटी को मोहताज हो गए…. चारों ओर महामारी की चपेट में आये लोगों का चीत्कार गूंजने लगा. परिवार के सदस्यों की असमय मृत्यु से घर परिवार बिखरने लगे. किसी का पति, किसी का जवान बेटा, किसी का बूढ़ा बाप तो किसी की प्राणप्यारी पत्नी ने कोरोना से लड़ते-लड़ते दम तोड़ दिया… जिनकी जान बच गई या यूं कहिये बचा ली गई वे बेहद भयभीत, कमज़ोर और टूट गए..
कहते हैं कि ईश्वर महामारी के रूप में कर्मों की सज़ा देते हैं. ओफ़! ये कैसे कर्मों की सज़ा है जो धरती से लेकर आकाश तक हर जीव को मिली है, चाहे वो किसी भी देश, जाति, धर्म का हो.. कभी-कभी मुझे इस कथन में सच्चाई दिखने लगती है. क्या हमने अपने पर्यावरण को दूषित करने में कोई कसर छोड़ी है? नदियों में कूड़ा-कचड़ा और कारखानों का जहरीला अवशेष निर्बाध रूप से बहाने के कारण नदियों की स्वच्छंदता, निर्मलता, पवित्रता नष्ट हो गई… फैक्टरियों से छोड़ी जाने वाली जहरीली गैसों के कारण ‘ओजोन’ की परत में, जो हमारे लिए रक्षा-कवच का काम करती है, दरार पड़ने लगी, चटकने लगी. कोरोना महामारी के रूप में कहीं यह हमारे कर्मों की ही तो सज़ा नहीं है…

इतना सब जान लेने के बाद हमें निश्चित रूप से सचेत होना होगा…कोरोना महामारी से आज़ादी आज हमारी सबसे बड़ी ज़रुरत है… घरों में बंद हो जाना, आय के स्रोत कम होने के कारण सीमित संसाधनों में गुज़र-बसर करना, मानसिक संतुलन बनाये रखना, ईश्वर की सत्ता पर अटूट विश्वास और भरोसा ही कुछ ऐसे हथियार हैं जो हमें महामारी से आज़ादी दिलाएंगे…
हमें अपनी गलतियों से आज़ादी चाहिए …. स्वार्थ और भौतिकता के मोह में ईश्वर प्रदत्त नैसर्गिक, उन्मुक्त, स्वच्छंद न वातावरण रहा है न मनुष्य… आज के माहौल से आज़ादी के लिए जन-जन में तड़प देखी जा सकती है…
तो आइये हम संकल्प लें कि 2021 का 15 अगस्त निराला होगा.. हम एक बार फिर अपनी मनःशक्ति का जौहर दिखा देंगे..तब दुश्मन अँगरेज़ थे, आज कोरोना है. हमें उसे हराना है, हमें जीतना और जीतना है. कोरोना से जीतना है.. हम उन सब नियमों, वर्जनाओं का पालन करेंगे जो हथियार बनकर कोरोना से मुक्ति दिलाने में साधन बनेंगे.. एक बार फिर हम एक-दूसरे के गले मिलकर कोरोना से स्वतंत्रता का जश्न मनाएंगे.. एक बार फिर मिठाई की दुकानें सजेंगी… नए कपड़े पहन लोग एक दूसरे के घर जायेंगे.. बाहों में बाहें डाल नाचेंगे… एक दूसरे के हाथ से खाना खाएंगे.. खिलाएंगे… और 15 अगस्त की तरह आज़ादी का त्योहार मनाएंगे…

सुधा गोयल ‘नवीन’
जमशेदपुर, झारखंड

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