सुभाषचन्द्र बोस–देश का गौरव

सुभाषचन्द्र बोस–देश का गौरव

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास हजारों स्तवत्रता सेनानियों, देशभक्तों, युवा ओ के बलिदान का साक्षी रहा है, गांधी के पदचिह्नों पर चलने वालों ने जहां सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाया वहीं युवा जोश और उत्साह से भरे कुछ देशभक्तों ने बलिदान और संघर्ष का रास्ता चुना, ऐसे महान सेनानियों में सुभाष चन्द्र बोस का नाम अग्रणी है, जिन्होंने सचमुच एक सेनानी की तरह अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी लड़ाई लडी और आजाद हिंद फौज नाम से एक सेना का गठन किया,पूरे सैन्य अनुशासन और नियमों के आधार पर देशभक्त सैनिकों का चयन किया, और महिला ब्रिगेड भी बनाई गई,जो लगातार निरंतर युद्ध रत रह कर अपने लक्ष्य के लिए प्रयत्नशील बनी रही थी,, सुभाष चन्द्र बोस उस समय युवाओं के हृदय की धड़कन बन गये थे, उनके नेतृत्व में देश ने अपनी आजादी का सपना देखा था,, आत्मविश्वास और उत्साह के प्रबल आवेग को उमड़ते हुए देखा था,वे देश पर मर मिटना जानते थे, क्योंकि उनकी सेना का प्रयाण गीत ही था कदम कदम बढ़ाए जा
खुशी के गीत गाए जा
ये जिंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पर लुटाए जा,
तू शेरेहिद आगे बढ़
मरने से तू तनिक न डर**
और इस आह्वान ने देश के हर हृदय को झकझोर दिया था,नयी चेतना का संचार कर दिया था,,,,,
23 जनवरी 1897 का दिन विश्व इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाषचंद्र बोस का जन्म कटक के प्रसिद्ध वकील जानकीनाथ तथा प्रभावतीदेवी के यहां हुआ।उनके पिता ने अंगरेजों के दमनचक्र के विरोध में ‘रायबहादुर’ की उपाधि लौटा दी। इससे सुभाष के मन में अंगरेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया। अब सुभाष अंगरेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र कराने का आत्मसंकल्प ले, चल पड़े राष्ट्रकर्म की राह पर।
आईसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सुभाष ने आईसीएस से इस्तीफा दिया और कर्तव्य की राह पर चल पड़े, इस बात पर उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा-
‘जब तुमने देशसेवा का व्रत ले ही लिया है, तो कभी इस पथ से विचलित मत होना।’
दिसंबर 1927 में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव बननेके बाद 1938 में उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुना गया, उन्होंने कहा था –
मेरी यह कामना है कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में ही हमें स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना है। हमारी लड़ाई केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद से नहीं, विश्व साम्राज्यवाद से है
धीरे-धीरे कांग्रेस से सुभाष का मोह भंग होने लगा,,16 मार्च 1939 को सुभाष ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया,,, सुभाष ने स्वतंत्रता के आंदोलन को एक नई राह देते हुए युवाओं को संगठित करने का प्रयास पूरी निष्ठा से शुरू कर दिया, इसकी शुरुआत 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में ‘भारतीय स्वाधीनता सम्मेलन’ के साथ हुई,,5 जुलाई 1943 को ‘आजाद हिन्द फौज’ का विधिवत गठन हुआ,, 21 अक्टूबर 1943 को एशिया के विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीयों का सम्मेलन कर उसमें अस्थायी स्वतंत्र भारत सरकार की स्थापना कर नेताजी ने आजादी प्राप्त करने के संकल्प को साकार किया,
12 सितंबर 1944 को रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतीन्द्र दास के स्मृति दिवस पर नेताजी ने अत्यंत मार्मिक भाषण देते हुए कहा- ‘***
अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांगती है,, आप मुझे खून दो, मैं आपको आजादी दूंगा*’
यही देश के नौजवानों में प्राण फूंकने वाला वाक्य था, जो भारत ही नहीं विश्व के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है,,
16 अगस्त 1945 को टोक्यो के लिए निकलने पर ताइहोकु हवाई अड्डे पर नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और स्वतंत्र भारत की अमरता का जयघोष करने वाला, भारत मां का दुलारा सदा के लिए, राष्ट्रप्रेम की दिव्य ज्योति जलाकर अमर हो गया,, परंतु देश उन्हें याद करता है,आज के संदर्भ में सुभाष जैसे ही युवाओं की आवश्यकता है,जो देश के भविष्य का सुखद निर्माण कर सकें और नये मनोबल और विश्वास के साथ,प्रगति के पथ को आलोकित कर सकें,, मैं कुछ स्वरचित पंक्तियां समर्पित करना चाहती हूं…

देश को सुभाष सा ही नौनिहाल चाहिए,
जागरण का गीत बन जले हमारी साधना में ,
सोच को पुनीत क्रांति की मशाल चाहिए,
जो झुका सके महान -शक्तियों को राह में ,
देश को सुभाष सा ही नौनिहाल चाहिए,
घिर रही थीं आंधियां,स्वदेश के विहान में ,
शृंखला में कैद थी,माँ भारती की चाहतें ,
स्वतंत्रता की ज्योति को नूतन प्रकाश चाहिए
देश को सुभाष सा ही नौनिहाल चाहिए,
तुमने दी आवाज,सब चले ,मिला कदम -कदम,
गूंजे फिर ‘जय हिन्द’ की पुकार ,
बाजुओं में दम,आज फिर आह्वान में,गर्जन कराल चाहिए,”

ऐसे वीर सेनानी को मेरा शत-शत नमन!!!

पद्मा मिश्रा
जमशेदपुर, झारखंड

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